पठानकोट:
पठानकोट एयरफोर्स बेस के कड़े पहरे वाले मेन गेट से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर मोटर ट्रांसपोर्ट सेक्शन में एक जला हुआ ट्रक दिखाई दे रहा है, और उसी के पास पड़ी है एक फौजी जैकेट (camouflage jacket - खास डिज़ाइन वाली इन जैकेटों को फौजी खुद को पेड़-पौधों के बीच छिपाने के लिए इस्तेमाल किया करते हैं)... दरअसल, यही वह जगह है, जहां गरुड़ कमांडो गुरसेवक सिंह ने शनिवार तड़के आतंकवादियों से लड़ते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे...
यहां से कुछ ही दूरी पर नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (एनएसजी) के लगभग 50 कमांडो बैठे हैं, जिनके हथियार उनकी गोद में ही पड़े हैं... ज़्यादातर ने चेहरों पर से नकाब उतार दिए हैं, और कोई भी कुछ भी बोल नहीं रहा है... इन चेहरों पर इस वक्त सिर्फ एक ही भाव है - थकान का... दरअसल, एयरफोर्स बेस पर हमला करने वाले छह आतंकवादियों से लगभग साढ़े तीन दिन तक चली मुठभेड़ अभी कुछ ही घंटे पहले खत्म हुई है...
मोटर ट्रांसपोर्ट सेक्शन से लगभग 100 मीटर की दूरी पर दिख रही है दूर-दूर तक फैले बेस की चारदीवारी... कहीं-कहीं इसकी ऊंचाई 10 फुट है, और उस पर गोल-गोल लिपटी हई कांटेदार तार भी लगी हुई है... कुछ जगहों पर दीवार की गैरमौजूदगी में सिर्फ तार की चारदीवारी का काम कर रही है...
इस ट्रांसपोर्ट सेक्शन के काफी नज़दीक दिख रहे हैं सलीके से बने हुए कुछ मकान, जिनके साथ खूबसूरत बगीचे भी दिख रहे हैं... ये दरअसल घर हैं वायुसेना अधिकारियों के, जो अपने परिवारों के साथ यहीं रहते हैं... इनके सामने से गुज़रती सड़क पर हथियारबंद गाड़ियों के गुज़रने के निशान भी साफ दिखाई दे रहे हैं... यह सड़क टेक्निकल एरिया की ओर जाती है, जहां बहुत सफाई से टेप के जरिये बनाए गए लगभग 15 फुट बाई 20 फुट के एक एन्क्लोज़र में पांच आतंकवादियों की लाशें पड़ी हैं, जिनके शरीरों पर हरे रंग के फौजी लिबास दिखाई दे रहे हैं...
लड़ने के लिए पहनी जाने वाली वर्दी में लिपटा एक गरुड़ कमांडो पत्रकारों से बातचीत करते हुए बता रहा है, "यहां कुछ जगह हैं छिपने की, क्योंकि इमारत की बनावट पुरानी है, और काफी घनी झाड़ियां भी हैं... शायद इसीलिए आतंकवादियों ने छिपने के लिए यह जगह चुनी... हम लोगों ने झाड़ियों को हटाने के लिए बुलडोज़रों का इस्तेमाल किया, और उसके बाद धीरे-धीरे आगे बढ़कर पहले उन्हें एक किनारे में समेट दिया, और फिर मार डाला..."
यह वही जगह है, जहां लेफ्टिनेंट कर्नल निरंजन कुमार शहीद हुए, और उनका एक साथी गंभीर रूप से घायल हुआ था... वैसे, सरकार के उच्चतम हलकों में घूम रहा एक नोट कहता है, "लेफ्टिनेंट कर्नल निरंजन एक आतंकवादी के शव की जांच करते हुए दुर्घटनावश मारे गए..."
बेस के इस इलाके में मौजूद सभी इमारतों को खाली करा लिया गया था... गरुड़ कमांडो ने बताया, "अगर आतंकवादी रिहाइशी इलाके में घुस गए होते, यहां बंधकों वाले हालात बन गए होते, और मारे गए लोगों की तादाद भी बहुत ज़्यादा होती..."
जब इन पंक्तियों के लेखक ने उस कमांडो का नाम पूछा, उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "ऑपरेशन अभी जारी है, और हम अपने नाम या रैंक का टैग नहीं पहनते..."
रिहाइशी मकानों के तीन ब्लॉकों और सैन्य साजोसामान की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले पूर्व फौजियों के संगठन डिफेंस सिक्योरिटी कॉर्प्स (डीएससी) की मेस के बीच एक खुला मैदान है, और यही वह जगह है, जहां चार फौजी शहीद हुए, जब आतंकवादियों ने गोलियां चलाना शुरू किया... बेस के कमांडर एयर कमोडोर जेएस धमून ने बताया, "डीएससी के हवलदार जगदीश ने खाली हाथ ही एक आतंकवादी का पीछा किया और उसे जकड़ लिया, और जान गंवाने से पहले उसे मार डाला..." चार आतंकवादी शनिवार को ही मार गिराए गए थे...
इस मेस की इमारत के सामने खड़े होकर तिरछी दिशा में देखने पर नज़र आती है वह लगभग तबाह हो चुकी दो-मंज़िली रिहाइशी इमारत, जहां आतंकवादियों के साथ आखिरी मुठभेड़ हुई... इमारत का एक हिस्सा भारी गोलीबारी और विस्फोटों की वजह से ढह गया था... पेड़ों के जले हुए हिस्से साफ बता रहे हैं कि आखिरी दो आतंकवादियों को मार गिराने के लिए हुए लड़ाई कितनी भयंकर रही थी... इस इमारत की पहली मंज़िल से सोमवार को अचानक गोलीबारी शुरू हुई थी...
खैर, अब उस बात को 24 घंटे से ज़्यादा बीत चुके हैं, और अब भी सैकड़ों कमांडो और खोजी कुत्ते इलाके को खंगाल रहे हैं, ताकि पता लगाया जा सके कि कहीं कोई बारूदी सुरंग तो नहीं छिपी हुई है...
(सुधी रंजन सेन ने मंगलवार देर शाम को पठानकोट एयरफोर्स बेस का दौरा किया था...)
यहां से कुछ ही दूरी पर नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (एनएसजी) के लगभग 50 कमांडो बैठे हैं, जिनके हथियार उनकी गोद में ही पड़े हैं... ज़्यादातर ने चेहरों पर से नकाब उतार दिए हैं, और कोई भी कुछ भी बोल नहीं रहा है... इन चेहरों पर इस वक्त सिर्फ एक ही भाव है - थकान का... दरअसल, एयरफोर्स बेस पर हमला करने वाले छह आतंकवादियों से लगभग साढ़े तीन दिन तक चली मुठभेड़ अभी कुछ ही घंटे पहले खत्म हुई है...
मोटर ट्रांसपोर्ट सेक्शन से लगभग 100 मीटर की दूरी पर दिख रही है दूर-दूर तक फैले बेस की चारदीवारी... कहीं-कहीं इसकी ऊंचाई 10 फुट है, और उस पर गोल-गोल लिपटी हई कांटेदार तार भी लगी हुई है... कुछ जगहों पर दीवार की गैरमौजूदगी में सिर्फ तार की चारदीवारी का काम कर रही है...
इस ट्रांसपोर्ट सेक्शन के काफी नज़दीक दिख रहे हैं सलीके से बने हुए कुछ मकान, जिनके साथ खूबसूरत बगीचे भी दिख रहे हैं... ये दरअसल घर हैं वायुसेना अधिकारियों के, जो अपने परिवारों के साथ यहीं रहते हैं... इनके सामने से गुज़रती सड़क पर हथियारबंद गाड़ियों के गुज़रने के निशान भी साफ दिखाई दे रहे हैं... यह सड़क टेक्निकल एरिया की ओर जाती है, जहां बहुत सफाई से टेप के जरिये बनाए गए लगभग 15 फुट बाई 20 फुट के एक एन्क्लोज़र में पांच आतंकवादियों की लाशें पड़ी हैं, जिनके शरीरों पर हरे रंग के फौजी लिबास दिखाई दे रहे हैं...
लड़ने के लिए पहनी जाने वाली वर्दी में लिपटा एक गरुड़ कमांडो पत्रकारों से बातचीत करते हुए बता रहा है, "यहां कुछ जगह हैं छिपने की, क्योंकि इमारत की बनावट पुरानी है, और काफी घनी झाड़ियां भी हैं... शायद इसीलिए आतंकवादियों ने छिपने के लिए यह जगह चुनी... हम लोगों ने झाड़ियों को हटाने के लिए बुलडोज़रों का इस्तेमाल किया, और उसके बाद धीरे-धीरे आगे बढ़कर पहले उन्हें एक किनारे में समेट दिया, और फिर मार डाला..."
यह वही जगह है, जहां लेफ्टिनेंट कर्नल निरंजन कुमार शहीद हुए, और उनका एक साथी गंभीर रूप से घायल हुआ था... वैसे, सरकार के उच्चतम हलकों में घूम रहा एक नोट कहता है, "लेफ्टिनेंट कर्नल निरंजन एक आतंकवादी के शव की जांच करते हुए दुर्घटनावश मारे गए..."
बेस के इस इलाके में मौजूद सभी इमारतों को खाली करा लिया गया था... गरुड़ कमांडो ने बताया, "अगर आतंकवादी रिहाइशी इलाके में घुस गए होते, यहां बंधकों वाले हालात बन गए होते, और मारे गए लोगों की तादाद भी बहुत ज़्यादा होती..."
जब इन पंक्तियों के लेखक ने उस कमांडो का नाम पूछा, उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "ऑपरेशन अभी जारी है, और हम अपने नाम या रैंक का टैग नहीं पहनते..."
रिहाइशी मकानों के तीन ब्लॉकों और सैन्य साजोसामान की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले पूर्व फौजियों के संगठन डिफेंस सिक्योरिटी कॉर्प्स (डीएससी) की मेस के बीच एक खुला मैदान है, और यही वह जगह है, जहां चार फौजी शहीद हुए, जब आतंकवादियों ने गोलियां चलाना शुरू किया... बेस के कमांडर एयर कमोडोर जेएस धमून ने बताया, "डीएससी के हवलदार जगदीश ने खाली हाथ ही एक आतंकवादी का पीछा किया और उसे जकड़ लिया, और जान गंवाने से पहले उसे मार डाला..." चार आतंकवादी शनिवार को ही मार गिराए गए थे...
इस मेस की इमारत के सामने खड़े होकर तिरछी दिशा में देखने पर नज़र आती है वह लगभग तबाह हो चुकी दो-मंज़िली रिहाइशी इमारत, जहां आतंकवादियों के साथ आखिरी मुठभेड़ हुई... इमारत का एक हिस्सा भारी गोलीबारी और विस्फोटों की वजह से ढह गया था... पेड़ों के जले हुए हिस्से साफ बता रहे हैं कि आखिरी दो आतंकवादियों को मार गिराने के लिए हुए लड़ाई कितनी भयंकर रही थी... इस इमारत की पहली मंज़िल से सोमवार को अचानक गोलीबारी शुरू हुई थी...
खैर, अब उस बात को 24 घंटे से ज़्यादा बीत चुके हैं, और अब भी सैकड़ों कमांडो और खोजी कुत्ते इलाके को खंगाल रहे हैं, ताकि पता लगाया जा सके कि कहीं कोई बारूदी सुरंग तो नहीं छिपी हुई है...
(सुधी रंजन सेन ने मंगलवार देर शाम को पठानकोट एयरफोर्स बेस का दौरा किया था...)
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