पीएम नरेंद्र मोदी की कैबिनेट (PM Narendra Modi's Cabinet) का हाल का बड़ा फेरबदल, डैमेज कंट्रोल के साथ उन राज्यों में भविष्य पर ध्यान देने की कोशिश भी प्रतीत होता है जहां बीजेपी 'विस्तार' की उम्मीद लगाए हुए है. मंत्रिमंडल से बाहर किए गए चेहरों की इसमें शामिल नए चेहरों से अधिक चर्चा रही. बाहर किए गए चेहरों में से सबसे चौंकाने वाला नाम रविशंकर प्रसाद (Ravi Shankar Prasad) का रहा है जो सरकार के सबसे अधिक दिखने वाले चेहरों (most visible faces) में से एक थे.
लोगों की धारणा यह रही कि प्रसाद अपने 'डोमेन' की समस्याओं को नहीं सुलझा पाए. नए डिजिटल रूल्स को लेकर ट्विटर जैसे सोशल मीडिया दिग्गज के साथ विवाद ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का खासा ध्यान खींचा और इसके कारण सरकार को नकारात्मक प्रचार मिला. सूत्र यह भी बताते हैं कि कि विवाद को सुलझाने में प्रसाद की नाकामी और तकनीकी कंपनियों (tech firms) का सरकार के सामने आना उनके खिलाफ गया.
सूत्रों के बताया कि अन्य बड़ा कारण यह रहा कि पूर्व मंत्री, पीएम के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम 'आत्मनिर्भर भारत' को लागू करने में 'संघर्ष' कर रहे थे, इसके तहत हर गांव में इंटरनेट पहुंचाया जाना है. उच्च प्रभाव छोड़ने वाल सरकार का फ्लैगशिप कार्यक्रम Bharatnet उम्मीद के अनुरूप नहीं चल रहा था और जून 2021 की समयसीमा से चूक गया था. सूत्र बताते हैं कि कानून मंत्री के तौर पर प्रसाद की कार्यप्रणाली भी सवालों के दायरे में थी.
तकनीकी उलझनों (tech jumble) को सुलझाने की जिम्मेदारी अब अश्विनी वैष्णव पर आ गई है जो आईआईटी कानपुर और पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के वार्टन स्कूल Wharton School से डिग्री हासिल हुए हैं. उन्होंने जनरल इलेक्ट्रिक और सीमंस (General Electric and Siemens) जैसी प्रमुख वैश्विक कंपनियों में अहम जिम्मेदारियां निभाई हैं.
समझा जाता है कि उनकी खास बात PPP (Public Private Partnership) को लेकर उनका कौशल है, उम्मीद की जा रही है कि इससे भारतनेट कार्यक्रम को अपेक्षित गति मिल सकेगी.
ओडिशा से इस आईएएस अफसर का प्रशासनिक अनुभव रेल मंत्रालय के लिए भी उपयोगी साबित हो सकता है. रेल मंत्रालय का प्रभार भी वैष्णव को मिला है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजेपी के निजी सचिव भी वैष्णव रह चुके हैं.
नए स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया की बात करें तो कोविड की संभावित तीसरी लहर में उनके कौशल की सबसे कठिन परीक्षा होगी. कोरोना संकट से निपटने को लेकर सरकार की नाकामी और टीकाकरण की धीमी गति को डॉक्टर हर्षवर्धन की विदाई से जोड़ा जा रहा है. अगले कुछ दिनों में उठाए जाने वाले कदमों से तय होगा कि कोरोनावायरस के खिलाफ आगे की 'लड़ाई' कैसी होने वाली है.
सूत्र बताते हैं कि गुजरात से सांसद मंडाविया, जहाजरानी मंत्री के रूप में पीएम की प्रशंसा हासिल कर चुके हैं. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान उन्होंने ऑक्सीजन आयात के लिहाज से अहम क्रायोजनिक टैंकर पर निगरानी रखी.
कैबिनेट में स्थान पाने वाले दो अन्य शख्स की एंट्री के सियासी मायने हैं. कौशल किशोर को यूपी से मंत्री बनाए गया है, जहां अगले वर्ष चुनाव होने हैं. इसी तरह नीतीश प्रमाणिक, पश्चिम बंगाल से हैं, जिस राज्य में बीजेपी भविष्य में जीत की उम्मीद लगाए है.
कौशल किशोर यूपी के अवध क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और उन्हें शामिल किए जाने को क्षेत्रीय संतुलन कायम करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.
वैसे यह बात सबको मालूम नहीं होगी कि किशोर, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के आलोचक हैं और उन्होंने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान इंतजाम को लेकर सीएम को लेकर शिकायती लेटर भी लिखा था.
दूसरी ओर बंगाल से युवा सांसद प्रमाणिक को सीएम ममता बनर्जी के मुखर आलोचकों में गिना जाता है. उन्हें गृह मंत्रालय में अमित शाह का राज्य मंत्री बनाया गया है, इससे अटककलें लगने लगी हैं कि बंगाल में कानून व्यवस्था पर, केंद्र सरकार की बारीक निगरानी रहने वाली है.
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