केंद्रीय सूचना आयोग ने देश की आबादी की गणना करने वाले निकाय भारत के महापंजीयक को निर्देश दिया है कि वह इस बाबत एक हलफनामा दायर करे कि उसने देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के जनसंख्या संबंधी आंकड़ों को जमा नहीं किया है. देश में जाति आधारित अंतिम जनगणना 1931 में हुई थी और इसी साल के आंकड़ों के आधार पर केंद्र की वीपी सिंह सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने का ऐलान किया था. कई समूह जाति आधारित जनगणना कराने पर जोर देते रहे हैं ताकि सरकारी सेवाओं में विभिन्न जातियों का उचित प्रतिनिधित्व हो सके. सूचना के अधिकार के तहत प्रधानमंत्री कार्यालय में एक अर्जी दी गई थी और उसमें देश में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी के बारे में पूछा गया था.
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इस अर्जी को भारत के महापंजीयक के पास भेजा गया क्योंकि यह संस्था ही जनगणना का काम करती है. अर्जी के आवेदक ने कहा कि भारत के महापंजीयक कार्यालय ने यह कहते हुये सूचना देने से इंकार कर दिया कि यह काम उसके दायरे में नहीं आता. मुख्य सूचना आयुक्त सुधीर भार्गव ने कहा कि अपीलकर्ता ने कहा है कि भारत के महापंजीयक ने दशकीय सर्वेक्षण किया है और उसने नागरिकों की जाति सहित कई सूचनाएं एकत्र की हैं. इसलिए जो सूचना मांगी गई है उसे महापंजीयक के पास होना चाहिये.
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महापंजीयक ने अपने जवाब में आयोग से कहा कि उसने केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी से संबंधित आंकड़े ही जमा किए हैं. अन्य पिछड़ा वर्ग के सभी मामलों में सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय ही नोडल मंत्रालय है. हालांकि इस मंत्रालय ने कहा है कि वह महापंजीयक के जमा किए आंकड़ों पर निर्भर है. भार्गव ने कहा कि वह प्रतिवादी को निर्देश देते हैं कि वह आयोग में इस बावत एक शपथपत्र दायर करे कि भारत के महापंजीयक ने राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी को लेकर न तो कोई सूचना नहीं है और न ही उसे इकट्ठा की हैं.
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