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This Article is From Jun 09, 2021

सबसे बड़े हीरा भंडार बकस्वाहा में खनन का विरोध तेज, लाखों पेड़ कटने के खिलाफ एकजुट हुए लोग

India's largest diamond deposit : छतरपुर जिले के बक्सवाहा में पन्ना के मुकाबले 15 गुना ज्यादा मात्रा में हीरा मौजूद है. लेकिन हीरे की इस खदान की कीमत 382.131 हेक्टेयर जंगल और 2,15,875 पेड़ों की कुर्बानी देकर चुकानी पड़ेगी.

सबसे बड़े हीरा भंडार बकस्वाहा में खनन का विरोध तेज, लाखों पेड़ कटने के खिलाफ एकजुट हुए लोग
Largest diamond deposit in Chhatarpur : यहां 342 करोड़ कैरेट के हीरे मौजूद होने की संभावना
छतरपुर:

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के बकस्वाहा में बंदर डायमंड माइन्स के नाम से विख्यात हीरा परियोजना का विरोध एक बार फिर शुरू हो गया है. पहले भी इस योजना का विरोध हुआ था तब दोगुने पेड़ काटने की योजना था, नतीजतन सालों काम करने के बाद विश्व विख्यात रियो टिंटो को उल्टे पैर वापस होना पड़ा था. अब खनन का काम बिरला को करना है, लेकिन लोगों ने बकस्वाहा को बचाने की मुहिम शुरू कर दी है.यहां देश का सबसे बड़ा हीरा भंडार यानी 342 करोड़ कैरेट के हैं. एक अनुमान है यहां पन्ना के मुकाबले 15 गुना ज्यादा मात्रा में हीरा मौजूद है. लेकिन हीरे की इस खदान की कीमत 382.131 हेक्टेयर जंगल और 2,15,875 पेड़ों की कुर्बानी देकर चुकानी पड़ेगी. इसमें सागौन, पीपल, तेंदू, जामुन, बहेड़ा, अर्जुन जैसे कई पेड़ हैं, जो जैव विविधता से भरपूर हैं.

बकस्वाहा में निमानी गांव में रहने वाले कुर्रा आदिवासी इन्हीं जंगलों से रोटी कमाते हैं. कभी महुआ, कभी गोली चुनते हैं और महीने के 2000-3000 रुपये वो कमा लेते हैं. उनका कहना है कि जंगल खत्म हो गया तो वो भी खत्म हो जाएंगे.
कुर्रा आदिवासियों का कहना है कि जंगल में महुआ मिलता है, चराई हो जाती है. सब मिलाकर 25-26 हजार रुपया हो जाता है, कट जाएगा तो जीवन ही बेकार है. बकस्वाहा के रहने अरुण तिवारी भी जंगलों को लेकर फिक्रमंद हैं. अरुण का कहना है कि ये गलत कट रहा है. प्राकृतिक ऑक्सीजन को नष्ट करने का प्रयास चल रहा है. रोजगार तो तब रहेगा जब हम रहेंगे, हम नहीं रहेंगे तो रोजगार का क्या करेंगे वन ही यहां पालता है.साल 2000 में कांग्रेस के शासनकाल में रियो टिंटो को हीरा खोजने के लिए 25 वर्ग किमी क्षेत्र में सर्वेक्षण की अनुमति मिली थी.

रियो टिंटो के मिला था पहले ठेका
2012 में रियो टिंटो ने माइनिंग लीज के लिए 954 हेक्टेयर के संरक्षित वन में खनिज पट्टे के लिए आवेदन किया. यहां 3.42 करोड़ कैरेट हीरों का अनुमानित भंडार है. वन विभाग के सर्वे में पता लगा वहां 5 लाख पेड़ हैं. पर्यावरण मंजूरी नहीं मिलने से कंपनी बैकफुट पर आ गई और 364 हेक्टेयर के पट्टे की मांग करने लगी. लंबे इंतजार के बाद 2017 में इस परियोजना से कंपनी ने हाथ खींच लिए. 2019 में कमलनाथ सरकार ने फिर से नीलामी कराई. सरकार ने इस खदान का खरीद मूल्य 56 हजार करोड़ रुपये, बेस रॉयल्टी 11.50 प्रतिशत रखी थी.10 दिसंबर 2019 को हुई नीलामी में आदित्य बिड़ला समूह की कंपनी एस्सेल माइनिंग लिमिटेड ने 50 साल के लिये ठेका हासिल किया.जंगल में 62.64 हेक्टेयर क्षेत्र हीरे निकालने के लिए चिह्नित किया गयालेकिन कंपनी ने 382.131 हेक्टेयर का जंगल मांगा है,बाकी 205 हेक्टेयर जमीन का उपयोग खनन करने और प्रोसेस के दौरान खदानों से निकला मलबा डंप करने में किया जा सके.

सरकार को इस बार ज्यादा कमाई
रियो टिंटो की तुलना में राज्य सरकार को इस बार चार गुना राजस्व मिला है. 50 साल की लीज अवधि में राज्य सरकार को हर साल 1550 करोड़ का राजस्व मिलने की उम्मीद है.लेकिन इस जंगल को बचाने लोग पेड़ों से चिपकने लगे हैं. देश के कई जगहों में आंदोलन हो रहा है, खुद बकस्वाहा के युवा यहां सोशल मीडिया पर ‘सेव बक्सवाहा फॉरेस्ट' कैंपन चला रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका लगी है.सेफ बक्सवाहा फॉरेस्ट मूवमेंट के दीपेश जैन का कहना है कि महुआ, गोली छोटी फसलें आती हैं. साल में 4-5 महीने का रोजगार मिलता है, भूजल स्तर, जैव विविधता सब महत्वपूर्ण है. कंपनी आती है और माइनिंग करेगी तो हमें फायदा नहीं नुकसान होगा.

सेफ बक्सवाहा फॉरेस्ट के आकाश तिवारी ने कहा कि ये एक मुहिम है सरकार को जाग्रत करने के लिए वास्तविक सुविधाएं पर ध्यान दीजिये फिर पेड़ काटिये. ढाई लाख पेड़ों को खत्म कर देंगे लेकिन उससे पहले कोई पौधरोपण नहीं किया. 6 करोड़ का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था लेकिन लाख भी नहीं बचे.ऑनलाइन और जमीनी स्तर पर भी बकस्वाहा के ढाई लाख पेड़ों को बचाने की मुहिम चल रही है,15 गांव के लोग इस परियोजना से सीधे तौर पर प्रभावित होंगे, जो अपनी आजीविका चलाने के लिए इस जंगल पर निर्भर हैं। लेकिन इस क्षेत्र के लोग बंटे नजर आते हैं, कई ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें रोजगार चाहिए, बाहरी हस्तक्षेप नहीं.

वहीं रामसिंगा का कहना है कि लड़कों को लगता है कि कंपनी आ जाए तो अच्छी बात है, खेती बाड़ी है नहीं. स्थानीय ग्रामीण पीआय ठाकुर का कहना है कि हमारी आमदनी के पेड़ हैं वो कम हैं. वो कह रहे हैं रोजगार देंगे तो हमारे लिये ठीक है.  पूर्व सरपंच जगदीश यादव ने कहा कि स्थानीय लोगों को अगर कंपनी काम देती हैं हम स्वागत करेंगे,अगर वो काम नहीं देती तो हम विरोध करेंगे. खेतिहर मजदूर राजेश अहिरवार ने कहा कि जो कंपनी आए अच्छी बात है, हमारे पास अच्छे जंगल है 10 करोड़ में एक लाख पेड़ कट जाएं, कंपनी आएगी तो काम हमें देगी हमारे लिये अच्छा है.

मध्य प्रदेश में घट गया वन क्षेत्र
वैसे हीरा खदान के लिए 62.64 हेक्टेयर जंगल चिह्नित है, नियमों के मुताबिक 40 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र के खनन का प्रोजेक्ट में केन्द्र से अनुमति लेनी होती है जो अभी तक मिला नहीं है. एक और बात ढाई लाख पेड़ के बदले सरकार 10 लाख पेड़ लगाने की बात कर तो रही हैलेकिन सिस्टम की एक और बानगी देखिये.वन विभाग का दावा है कि 6 साल में उसने 1638 करोड़ रु. खर्च कर 20, 92, 99, 843 पेड़ लगाएलेकिन भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट कहती है राज्य में इस अवधि में 100 वर्ग किमी. जंगल घट गया.

संरक्षित वन्य जीवों की बात ही नहीं
जब पहली बार कंपनी ने बकस्वाहा में सर्वे किया तो वहां बहुत बंदर दिखे इसलिये प्रोजेक्ट का नाम हीरा बंदर प्रोजेक्ट पड़ा. पेड़ काटने से पर्यावरण का नुकसान तय है लेकिन वन्यजीवों पर भी संकट आ जाएगा. 2017 में जो रिपोर्ट आई थी उसमें यहां तेंदुआ, बाज , भालू, बारहसिंगा, हिरण जैसे कई जानवरों के होने की बात कही गई थी लेकिन 3 साल बाद नई रिपोर्ट में आश्चर्यजनकर रूप से यहीं संरक्षित वन्यप्राणी के आवास नहीं होने का दावा किया है.

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