
Chemistry professor murder case: एक प्रोफेसर जिसने रसायन विज्ञान पढ़ाया, कोर्ट में खड़ी होकर खुद अपनी पैरवी की, लेकिन अंत में उन्हें वही सजा मिली जो पहले दी गई थी...उम्रकैद. ये कहानी है मध्यप्रदेश के छतरपुर की ममता पाठक की, जो कभी कॉलेज में केमिस्ट्री की प्रोफेसर थीं, लेकिन अब हत्या की दोषी बन चुकी हैं. 2021 में उनके पति, रिटायर्ड सरकारी डॉक्टर नीरज पाठक की रहस्यमयी मौत ने सबको चौंका दिया था. शुरू में इसे बिजली के झटके से हुई मौत बताया गया, लेकिन पोस्टमार्टम और फॉरेंसिक रिपोर्ट्स ने शक के दरवाजे खोल दिए. बाद में पुलिस ने ममता पाठक के खिलाफ हत्या का केस दर्ज किया.
केमिस्ट्री प्रोफेसर ने रखे वैज्ञानिक तर्क (Mamta Pathak case)
2022 में जिला अदालत ने मेडिकल रिपोर्ट और सबूतों के आधार पर उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. ममता को मानसिक रूप से अस्वस्थ बेटे की देखभाल के लिए जमानत मिली. इसी दौरान उन्होंने जबलपुर हाई कोर्ट में फैसले के खिलाफ अपील की. वकील की कमी के चलते उन्होंने खुद ही केस की पैरवी करने का फैसला किया.
INTERESTING 🚨 Name Mamta Pathak is accused of murdering her husband, who is also a chemistry professor.
— Shruti Dhore (@ShrutiDhore) May 27, 2025
🚨Listen to the defendant's response below 👇
🚨 Jabalpur High court Judge: "You are accused of electrocoding your husband."
🚨 Defendant Mamta Pathak, who was a chemistry… pic.twitter.com/kzOFwNCeBQ
पति की हत्या की दोषी प्रोफेसर (woman argues own case)
कोर्टरूम में उनका आत्मविश्वास, तर्क और वैज्ञानिक समझ ने सभी को चौंका दिया. जब उन्होंने कहा कि, थर्मल बर्न और इलेक्ट्रिक बर्न में अंतर सिर्फ केमिकल विश्लेषण से साबित हो सकता है, तो जज ने पूछा, क्या आप केमिस्ट्री प्रोफेसर हैं? ममता ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, जी हां. इस पल का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. लाखों लोगों ने उनके आत्मबल की सराहना की. परंतु हाई कोर्ट ने उनके तर्कों को खारिज करते हुए पहले दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा.
छतरपुर हत्या मामला (Chhatarpur murder case)
सरकारी वकील मानस मणि वर्मा के अनुसार, कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेंद्र सिंह को amicus curiae नियुक्त किया, ताकि ममता को निष्पक्ष सुनवाई मिल सके. अंततः कोर्ट ने सभी सबूतों और परिस्थितियों का मूल्यांकन करते हुए यह तय किया कि अपराध गंभीर था और ममता पाठक को तुरंत आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया.
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