बेंगलुरु:
देश में फूलों के व्यापार में बेंगलुरु के फूल बाजार की हिस्सेदारी तक़रीबन 75 फीसदी है. 500 और 1000 रुपये के नोटों की वैधता खत्म होने के बाद इस बाजार के कारोबार में 50 फीसदी की गिरावट आई है. इंटरनेशनल फ्लावर्स ऑक्शन बेंगलुरु लिमिटेड के अध्यक्ष विश्वनाथ के मुताबिक हालांकि लेन-देन चेक के जरिये होता है लेकिन इसके बावजूद ट्रांसपोर्टेशन और दिहाड़ी मज़दूरों को देने के लिए नक़द राशि की ज़रूरत होती है. इसमें आ रही दिक्कतों की वजह से बाजार नोटबंदी के बाद 50 फीसदी गिरा है.
वहीं इस ऑक्शन सेंटर से लंबे अरसे से जुड़े फूलों के व्यापारी अशोक कुमार के मुताबिक नवंबर-दिसंबर और जनवरी के महीने में व्यापार तिगुना बढ़ जाता है क्योंकि इस दरमियां काफी शादियां होती हैं. इसके साथ-साथ नए साल और क्रिसमस में भी फूलों की मांग देसी और विदेशी बाजार में उछाल लाता है लेकिन 500 और हज़ार रुपये के नोटों पर रोक की वजह से व्यापार ठप हो गया है.
कुछ ऐसा ही मानना है बेंगलुरु शहर से तक़रीबन 55 किलोमीटर दूर दूदबलपुर के पास के गांव का जहां रवींद्र नाम का किसान लंबे अर्से से फूलों का व्यापार कर रहा है. रवींद्र सजावटी फूलों की खेती करते हैं. उनका कहना है कि एक फूल जो नोटबंदी से पहले 8 से 10 रुपये का था, वो अब 2 रुपये के आसपास बेचने को मजबूर हैं. उनके खेत लहलहा रहे हैं. लेकिन नकदी की कमी कारोबार को खराब कर रहा है. खेतों में काम करने वाले मजदूरों के मेहनताना के साथ-साथ ट्रांसपोर्टरों के लिए नकदी की कमी की वजह से दुसरे किसानों की तरह उनकी फसल भी ख़राब हो रही है.
बेंगलुरु के फूल बाजार को लंबे अरसे से अफ़्रीकी बाजार पहले से ही चुनौती दे रहे हैं जहां भारत की तुलना में मजदूरी 35 फीसदी के आसपास सस्ती है और यहां की तुलना में वहां की खेती का आकार भी 10 गुना बड़ा है. भारत में जहां चार एकड़ के प्लाट को स्टैंडर्ड माना जाता है वहीं अफ़्रीकी देशों में स्टैंडर्ड साइज 40 एकड़ का है. दुनिया के फूल बाजार में महज़ एक से दो फीसदी की हिस्सेदारी वाले इस बाजार में अभी देश को आगे ले जाने के लिए ठोस नीति बनानी होगी.
वहीं इस ऑक्शन सेंटर से लंबे अरसे से जुड़े फूलों के व्यापारी अशोक कुमार के मुताबिक नवंबर-दिसंबर और जनवरी के महीने में व्यापार तिगुना बढ़ जाता है क्योंकि इस दरमियां काफी शादियां होती हैं. इसके साथ-साथ नए साल और क्रिसमस में भी फूलों की मांग देसी और विदेशी बाजार में उछाल लाता है लेकिन 500 और हज़ार रुपये के नोटों पर रोक की वजह से व्यापार ठप हो गया है.
कुछ ऐसा ही मानना है बेंगलुरु शहर से तक़रीबन 55 किलोमीटर दूर दूदबलपुर के पास के गांव का जहां रवींद्र नाम का किसान लंबे अर्से से फूलों का व्यापार कर रहा है. रवींद्र सजावटी फूलों की खेती करते हैं. उनका कहना है कि एक फूल जो नोटबंदी से पहले 8 से 10 रुपये का था, वो अब 2 रुपये के आसपास बेचने को मजबूर हैं. उनके खेत लहलहा रहे हैं. लेकिन नकदी की कमी कारोबार को खराब कर रहा है. खेतों में काम करने वाले मजदूरों के मेहनताना के साथ-साथ ट्रांसपोर्टरों के लिए नकदी की कमी की वजह से दुसरे किसानों की तरह उनकी फसल भी ख़राब हो रही है.
बेंगलुरु के फूल बाजार को लंबे अरसे से अफ़्रीकी बाजार पहले से ही चुनौती दे रहे हैं जहां भारत की तुलना में मजदूरी 35 फीसदी के आसपास सस्ती है और यहां की तुलना में वहां की खेती का आकार भी 10 गुना बड़ा है. भारत में जहां चार एकड़ के प्लाट को स्टैंडर्ड माना जाता है वहीं अफ़्रीकी देशों में स्टैंडर्ड साइज 40 एकड़ का है. दुनिया के फूल बाजार में महज़ एक से दो फीसदी की हिस्सेदारी वाले इस बाजार में अभी देश को आगे ले जाने के लिए ठोस नीति बनानी होगी.
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