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This Article is From Jan 30, 2013

कभी बॉक्सिंग में नाम कमाने वाला कमल कुमार आज उठा रहा है कूड़ा

कभी बॉक्सिंग में नाम कमाने वाला कमल कुमार आज उठा रहा है कूड़ा
कानपुर: बॉक्सिंग के राज्यस्तरीय खिलाड़ी कमल कुमार कई मेडल जीत चुके हैं, लेकिन गरीबी से तंग आकर वह आजकल कूड़ा उठाने का काम कर रहे हैं। कानपुर के ग्वालटोली इलाके में वह रिक्शे पर घर-घर जाकर कूड़ा उठाते हैं और बचे हुए समय में पान की दुकान लगाते हैं।

वैसे, कमल ऐसे नौजवानों के लिए मिसाल हैं, जो स्नातक कि पढ़ाई के बाद मिले छोटे-मोटे कामों को छोड़ देते हैं। उनके अनुसार, कोई काम छोटा नहीं होता।

गौरतलब है कि बचपन से ही बॉक्सिंग का शौक रखने वाले कमल ने पूरी मेहनत से किए अभ्यास से 1991 में जिलास्तरीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता और 1993 में यूपी ओलिंपिक में कांस्य पदक और उसी साल जूनियर नेशनल चैम्पियनशिप अहमदाबाद में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद 2004 में जिलास्तरीय प्रतियोगिता में रजत और 2006 के राज्य खेलों में कांस्य पदक जीता। इन सभी उपलब्धियों के बाद भी सूबे के इस बॉक्सर को अपने परिवार का पेट पालने के लिए एक अदद नौकरी की दरकार थी, लेकिन सरकार ने इस खिलाड़ी की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। आखिरकार उसे कूड़ा उठाने का काम करना पड़ा।

कमल को तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा और राज्य खेलों में पूर्व मंत्री कलराज मिश्रा ने कांस्य पदक से सम्मानित किया था, लेकिन गरीबी के चलते खेल पीछे छूट गया और कहीं सरकारी नौकरी भी न मिली। इसके बाद जब परिवार पर भूखे मरने की नौबत आई तो कमल ने सारे मेडल घर में टांग दिए और स्नातक की डिग्री भी धरी की धरी रह गई।

वैसे, आज कमल के तीन बेटे हैं और उनमें से दो बेटे कमल के पदचिन्हों पर चलते हुए बॉक्सिंग सीख रहे हैं। कमल का सपना है कि वह अपने बच्चों को अच्छा बॉक्सर बनाए ताकि बच्चे देश का नाम रोशन कर सकें। कमल का दूसरा बेटा आदित्य धनराज कक्षा आठ का छात्र है और नेशनल बॉक्सिंग खेल चुका है। बेटे का कहना है कि वह पिता के सपनों को पूरा करना चाहता है।

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