नई दिल्ली:
भारत ने विश्व के सबसे बड़े टेलीस्कोप की मेजबानी करने का अवसर गवां दिया है. इस बात को लेकर भारी कयास लगाए जा रहे थे कि 30 मीटर के विशालकाय टेलीस्कोप (टीएमटी) को जम्मू-कश्मीर के लद्दाख में अत्यधिक ऊंचाई का सुदूर स्थान दिया जाएगा.
इसका नेतृत्व कर रहे एक बहु-देशीय गठबंधन के सदस्यों ने इस सप्ताह यह फैसला किया कि इस टेलीस्कोप को अटलांटिक महासागर में स्थित कैनेरी द्वीपसमूह पर बनाया जाएगा. वर्ष 2025 में सक्रिय होने वाले इस टेलीस्कोप पर दो अरब डॉलर से अधिक खर्च आएगा.
कई लोगों का कहना है कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंदीदा परियोजना थी. उनके पद संभालने के चार माह के भीतर टीएमटी परियोजना को राजग की ओर से समर्थन मिला था और यह पीएम मोदी के मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर की गई पहली बड़ी विज्ञान परियोजनाओं में से एक थी.
इस वृहद वैश्विक कार्य का प्रमुख उद्देश्य ब्रह्मांड की उत्पत्ति और गुप्त ऊर्जा का अध्ययन करना है. भारत सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया था, टीएमटी के जरिए वैज्ञानिक ब्रह्मांड में धरती से बेहद दूर के पिंडों का अध्ययन कर सकेंगे, जिससे ब्रह्मांड के विकास के शुरुआती चरणों के बारे में जानकारी मिलती है. इससे वैज्ञानिकों को पास के पिंडों के बारे में भी अच्छी जानकारी मिलेगी. ये पिंड सौर मंडल के वे ग्रह या पिंड हैं, जिन्हें अब तक नहीं खोजा जा सका है. इनमें अन्य तारों के आसपास के ग्रह भी शामिल हैं.
उत्तरी गोलार्ध के सबसे बड़े प्रकाशीय और अवरक्त दूरदर्शी टीएमटी की मदद से कई खोजें हो सकेंगी. वर्ष 2024 में टीएमटी से प्रतिस्पर्धा करने वाले 39 मीटर व्यास के ‘यूरोपियन एक्सट्रीमली लार्ज टेलीस्कोप’ के चिली में स्थापित होने की संभावना है.
टीएमटी को स्थापित करने की पसंदीदा जगह हवाई में 4050 मीटर ऊंचे पर्वत मौउना कीया थी, लेकिन हवाई की स्थानीय अदालतों में स्थानीय लोगों की ओर से विरोध की याचिकाएं डाली गईं. इन लोगों का कहना था कि टेलीस्कोप के निर्माण ने एक ‘पवित्र स्थल’ का उल्लंघन किया है. वर्ष 2015 में अदालत के आदेश के चलते हवाई में टेलीस्कोप के निर्माण को वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय की इच्छाओं के विपरीत रोक दिया गया. इसके कारण भारी अनिश्चितता पैदा हो गई. उसके बाद से बेहतर वैकल्पिक स्थान की तलाश शुरू हो गई और भारत में हिमालय के अत्यधिक ठंडे क्षेत्र में 4500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हानले पर गंभीरता से विचार किया गया. भारत स्थित हानले में, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजीक्स (आईआईएपी), बेंगलुरु द्वारा संचालित विश्व का सबसे ऊंचा प्रकाशीय टेलीस्कोप पहले से मौजूद है.
आईआईएपी की परियोजना के प्रमुख वैज्ञानिक, प्रोफेसर एस्वार रेड्डी ने कहा, हानले एक अच्छा स्थान है, लेकिन बाधाकारी हवाओं के कारण एक विशालकाय टेलीस्कोप को लगाने के लिहाज से काफी ऊंचा स्थान है. इसके अलावा हानले के हाथों मेजबानी छिनने की अन्य वजहों में से कुछ वजहें इस प्रकार हैं कि इसका निकटतम बंदरगाह मुंबई में था और हानले तक सड़क से जाने का रास्ता कई महीने तक भारी बर्फ के कारण बंद रहता है. इसके बावजूद भारत सरकार ने टीएमटी परियोजना को भारत में लगाने के लिए अपनी बाहें पसार दी थीं.
24 सितंबर, 2014 को पीएम मोदी की अध्यक्षता वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अमेरिका के हवाई स्थित मौउना कीया में टीएमटी परियोजना में भारत की भागीदारी के लिए अपनी मंजूरी दी थी. इसपर वर्ष 2014-23 तक 1299.8 करोड़ रुपए का खर्च आएगा.
सरकार की ओर से कहा गया था कि टीएमटी का निर्माण अमेरिका, कनाडा, जापान, भारत और चीन के संस्थानों वाले एक अंतरराष्ट्रीय संघ द्वारा 1.47 अरब की लागत से किया जाएगा. भारतीय पक्ष की ओर से यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और परमाणु उर्जा विभाग की संयुक्त परियोजना होगी. अपने योगदान के आधार पर भारत की साझेदारी 10 प्रतिशत की होगी.
इसके तहत भारतीय वैज्ञानिक प्रति वर्ष 25 से 30 रातों के लिए अवलोकन करेंगे. इससे भारतीय वैज्ञानिकों को आधुनिक विज्ञान के कुछ बेहद मूलभूत सवालों के जवाब पाने के लिए अत्याधुनिक टेलीस्कोप का इस्तेमाल करने का मौका मिलेगा.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
इसका नेतृत्व कर रहे एक बहु-देशीय गठबंधन के सदस्यों ने इस सप्ताह यह फैसला किया कि इस टेलीस्कोप को अटलांटिक महासागर में स्थित कैनेरी द्वीपसमूह पर बनाया जाएगा. वर्ष 2025 में सक्रिय होने वाले इस टेलीस्कोप पर दो अरब डॉलर से अधिक खर्च आएगा.
कई लोगों का कहना है कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंदीदा परियोजना थी. उनके पद संभालने के चार माह के भीतर टीएमटी परियोजना को राजग की ओर से समर्थन मिला था और यह पीएम मोदी के मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर की गई पहली बड़ी विज्ञान परियोजनाओं में से एक थी.
इस वृहद वैश्विक कार्य का प्रमुख उद्देश्य ब्रह्मांड की उत्पत्ति और गुप्त ऊर्जा का अध्ययन करना है. भारत सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया था, टीएमटी के जरिए वैज्ञानिक ब्रह्मांड में धरती से बेहद दूर के पिंडों का अध्ययन कर सकेंगे, जिससे ब्रह्मांड के विकास के शुरुआती चरणों के बारे में जानकारी मिलती है. इससे वैज्ञानिकों को पास के पिंडों के बारे में भी अच्छी जानकारी मिलेगी. ये पिंड सौर मंडल के वे ग्रह या पिंड हैं, जिन्हें अब तक नहीं खोजा जा सका है. इनमें अन्य तारों के आसपास के ग्रह भी शामिल हैं.
उत्तरी गोलार्ध के सबसे बड़े प्रकाशीय और अवरक्त दूरदर्शी टीएमटी की मदद से कई खोजें हो सकेंगी. वर्ष 2024 में टीएमटी से प्रतिस्पर्धा करने वाले 39 मीटर व्यास के ‘यूरोपियन एक्सट्रीमली लार्ज टेलीस्कोप’ के चिली में स्थापित होने की संभावना है.
टीएमटी को स्थापित करने की पसंदीदा जगह हवाई में 4050 मीटर ऊंचे पर्वत मौउना कीया थी, लेकिन हवाई की स्थानीय अदालतों में स्थानीय लोगों की ओर से विरोध की याचिकाएं डाली गईं. इन लोगों का कहना था कि टेलीस्कोप के निर्माण ने एक ‘पवित्र स्थल’ का उल्लंघन किया है. वर्ष 2015 में अदालत के आदेश के चलते हवाई में टेलीस्कोप के निर्माण को वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय की इच्छाओं के विपरीत रोक दिया गया. इसके कारण भारी अनिश्चितता पैदा हो गई. उसके बाद से बेहतर वैकल्पिक स्थान की तलाश शुरू हो गई और भारत में हिमालय के अत्यधिक ठंडे क्षेत्र में 4500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हानले पर गंभीरता से विचार किया गया. भारत स्थित हानले में, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजीक्स (आईआईएपी), बेंगलुरु द्वारा संचालित विश्व का सबसे ऊंचा प्रकाशीय टेलीस्कोप पहले से मौजूद है.
आईआईएपी की परियोजना के प्रमुख वैज्ञानिक, प्रोफेसर एस्वार रेड्डी ने कहा, हानले एक अच्छा स्थान है, लेकिन बाधाकारी हवाओं के कारण एक विशालकाय टेलीस्कोप को लगाने के लिहाज से काफी ऊंचा स्थान है. इसके अलावा हानले के हाथों मेजबानी छिनने की अन्य वजहों में से कुछ वजहें इस प्रकार हैं कि इसका निकटतम बंदरगाह मुंबई में था और हानले तक सड़क से जाने का रास्ता कई महीने तक भारी बर्फ के कारण बंद रहता है. इसके बावजूद भारत सरकार ने टीएमटी परियोजना को भारत में लगाने के लिए अपनी बाहें पसार दी थीं.
24 सितंबर, 2014 को पीएम मोदी की अध्यक्षता वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अमेरिका के हवाई स्थित मौउना कीया में टीएमटी परियोजना में भारत की भागीदारी के लिए अपनी मंजूरी दी थी. इसपर वर्ष 2014-23 तक 1299.8 करोड़ रुपए का खर्च आएगा.
सरकार की ओर से कहा गया था कि टीएमटी का निर्माण अमेरिका, कनाडा, जापान, भारत और चीन के संस्थानों वाले एक अंतरराष्ट्रीय संघ द्वारा 1.47 अरब की लागत से किया जाएगा. भारतीय पक्ष की ओर से यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और परमाणु उर्जा विभाग की संयुक्त परियोजना होगी. अपने योगदान के आधार पर भारत की साझेदारी 10 प्रतिशत की होगी.
इसके तहत भारतीय वैज्ञानिक प्रति वर्ष 25 से 30 रातों के लिए अवलोकन करेंगे. इससे भारतीय वैज्ञानिकों को आधुनिक विज्ञान के कुछ बेहद मूलभूत सवालों के जवाब पाने के लिए अत्याधुनिक टेलीस्कोप का इस्तेमाल करने का मौका मिलेगा.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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