यूपी के जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में पुलिस और प्रशासन पर विपक्षी दलों के प्रत्याशियों के खिलाफ कार्रवाई के आरोप लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं. समाजवादी पार्टी की ज़िला पंचायत अध्यक्ष पद की उम्मीदवार पूजा यादव के नाम का प्रस्ताव करने वाली अंकिता दुबे के घर पर प्रशासन ने सोमवार को जेसीबी से तोड़फोड़ की. अंकिता के पति मोनू दुबे ने तोड़फोड़ का वीडियो ट्वीट कर आरोप लगाया है कि प्रशासन का दबाव था कि अंकिता प्रस्तावक के तौर पर अपना नाम वापस ले लें. ऐसा न करने पर यह कार्रवाई की गई.
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अंकिता के ससुर राजाराम दुबे ने आरोप लगाया कि प्रशासन ने उनके घर के बाहर 70 साल से बनी गौशाला तोड़ दी. सड़क खोद दी और एक शौचालय गिरा दिया. राजाराम दुबे का कहना है कि जब उनकी बहू अंकिता चुनाव जीती तो प्रशासन और बीजेपी के लीगों ने उन्हें रुपयों का लालच देकर समर्थन देने कहा. जब वे लोग तैयार नहीं हुए तो उनके घर पर बिना किसी सूचना के बुलडोज़र लेकर तोड़फोड़ की गई. इस तोड़फोड़ की चपेट में एक विधवा नजमुन की झोपड़ी भी आ गयी जिसे गिरा दिया गया और उसकी पानी की लाइन उखाड़ कर उसका नल भी तोड़ दिया गया.
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इससे पहले बनारस (Varanasi) में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के प्रत्याशी का जिला पंचायत में पर्चा रद्द कर दिया गया था. सपा ने जिलाधिकारी पर आरोप लगाया था कि वो योगी सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं. रात में 11:30 बजे पर्चा रद्द करने की बात जाहिर की गई. दरअसल,बनारस ज़िला पंचायत अध्यक्ष पद पर दो प्रत्याशियों चंदा यादव और पूनम मौर्या ने 2-2 नामांकन पत्र दाखिल किए थे. इनकी स्क्रूटनी हुई.
दोनों पक्षों ने एक दूसरे के नोटरी अधिवक्ताओं की वैधता को लेकर लिखित आपत्ति दाखिल की. स्क्रूटनी के के बाद पूनम मौर्या का एक नामांकन पत्र नामंजूर हुआ और एक मंजूर. जबकि चंदा यादव के दोनों नामांकन निरस्त हो गए. इस तरह पूनम मौर्या की जीत का रास्ता साफ हो गया.
गौरतलब है कि यूपी में बीजेपी के 16 जिला पंचायत अध्यक्ष पद प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं. विपक्षी दलों खासकर सपा का कहना है कि प्रशासन ने उनके कई प्रत्याशियों औऱ सदस्यों को अपहृत कर बंधक बना लिया. कई प्रत्याशियों को नामांकन पत्र तक दाखिल नहीं करने दिया गया. इसी आरोप-प्रत्यारोप के बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पार्टी के 11 जिलाध्यक्षों को बर्खास्त कर दिया था.
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