आईआईटी कानपुर जांच करेगा कि क्या उर्दू के महान शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का मशहूर तराना “लाज़िम है कि हम भी देखेंगे, वो दिन कि जिसका वादा है” हिंदू विरोधी है? जामिया कैंपस में पुलिस कार्रवाई के बाद छात्रों से एकजुटता ज़ाहिर करने के लिए आईआईटी कानपुर के छात्रों ने कैंपस में एक जुलूस निकाला था जिसमें उन्होंने फ़ैज़ का यह तराना गाया था. जामिया के छात्रों पर पुलिस कार्रवाई पर देश भर के छात्रों में तीखी प्रतिक्रियाएं हुईं. आईआईटी कानपुर के छात्रों ने जामिया के छात्रों से एकजुटता ज़ाहिर करने को जुलूस निकाला जिससे पहले उन्होंने फ़ैज़ का तराना गया…''हम देखेंगे…लाज़िम है कि हम भी देखेंगे.”
इसके खिलाफ आईआईटी से जुड़े दो लोगों ने शिकायत की, जिस पर जांच बिठा दी गई है. जांच के तीन विषय हैं, पहला दफा 144 तोड़कर जुलूस निकालना, दूसरा सोशल मीडिया पर छात्रों की पोस्ट और तीसरा यह कि क्या फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म हिंदू विरोधी है?
आईआईटी कानपुर के डिप्टी डायरेक्टर मनींद्र अग्रवाल के मुताबिक ''वीडियो में उन्होंने दिखाया था कि मार्च से पहले स्टूडेंट्स ने फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की एक कविता पढ़ी थी. जिसका मतलब इस प्रकार से भी निकल सकता है कि वह हिंदुओं के विरुद्ध है.''
फैज अहमद फैज उर्दू के वह महान शायर हैं जिनका नाम साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट हुआ था. वे कम्युनिस्ट और नास्तिक थे. उनकी क्रांतिकारी शायरी के लिए पाकिस्तानी शासकों ने उन्हें सालों तक जेल में बंद रखा. यह नज़्म उन्होंने पाकिस्तान के फ़ौजी तानाशाह ज़ियाउल हक की सत्ता के खिलाफ 1979 में लिखी थी. मशहूर पाकिस्तानी गायिका इक़बाल बानो ने ज़ियाउल हक के मार्शल लॉ को चुनौती देने के लिए लाहौर में 50000 दर्शकों के सामने यह नज़्म गाई थी. इसके बोल हैं-
हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जब अर्ज़े खुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएंगे
हम अहले सफा मरदूदे हरम
मसनद पे बिठाए जाएंगे
सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख्त गिराए जाएंगे
इसका मतलब है कि हम वो दिन भी देखेंगे...जब खुदा की ज़मीन पर बुत बनकर बैठे फ़ौजियों को उससे बेदखल किया जाएगा. जब तानाशाह के ताज उछाले जाएंगे…तख्त गिराए जाएंगे… तब शोषित और वंचित लोगों का शासन होगा..
शिकायत करने वालों ने शायरी के प्रतीकों को धर्म से जोड़कर उसे हिंदू-मुस्लिम रंग दे दिया. हालांकि उर्दू शायरी में ऐसे तमाम प्रतीक मिलते हैं. मशहूर शायर मीर तक़ी मीर ने लिखा कि-
मीर के दीन-ओ-मज़हब को/ अब पूछते क्या हो/ उन ने तो क़शक़ा खींचा, दायर में बैठा/ कब का तर्क इस्लाम किया
इसका मतलब है कि मीर का मज़हब क्या पूछते हो..वो तो तिलक लगाकर मंदिर में बैठ गए हैं, और बहुत पहले इस्लाम छोड़ चुके हैं.
आईआईटी के छात्रों का कहना है कि जिस शख्स की शिकायत पर उन पर जांच बिठाई गई है, ट्विटर उस पर कम्युनल पोस्ट डालने के लिए बैन लगा चुका है. लेकिन छात्रों ने अपनी ऑनलाइन मैगज़ीन में अपनी सफाई में एडिटोरियल लिखा तो आईआईटी प्रशासन ने उसे हटवा दिया.
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