कर्नाटक की नंदिनी के. आर. ने इस बार सिविल सर्विसेज में टॉप किया है
नई दिल्ली:
बुधवार की शाम जब यह पता चला कि सिविल सर्विसेस के नतीजे घोषित कर दिए गए है, तब किसने टॉप किया है उसे लेकर जांच पड़ताल शुरू हो गई. थोड़ी देर में यह भी पता चल गया कि कर्नाटक की नंदिनी के. आर. ने इस बार सिविल सर्विसेज में टॉप किया है. अच्छी बात यह रही कि नंदिनी का नंबर भी मिल गया. फोन पर बात करने पर नंदिनी ने बताया कि वह फ़रीदाबाद के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ कस्टम्स एक्साइज एंड नारकोटिक्स के ऑफिस में है. जहां उनकी ट्रेनिंग चल रही है. जब उनसे इंटरव्यू की बात कही तो नंदिनी तुरंत मान गईं और ट्रेनिंग सेंटर आने के लिए कहा. इंटरव्यू की हरीझंडी मिलते ही ऑफिस से जल्दी-जल्दी कैमरा लेकर निकल गया.
ऑफिस से फ़रीदाबाद के रास्ते में हमेशा ट्रैफिक ज्यादा होता है. करीब घंटे भर के इस सफर में दिमाग में तमाम सवाल और समय पर पहुंचने को लेकर चिंता बढ़ती ही जा रही थी.
एक घंटे के बाद हम फ़रीदाबाद के उस ट्रेनिंग सेंटर में पहुंच गए जहां नंदिनी ट्रेनिंग ले रही थीं. मुझे लगा कि शायद सबसे पहले मैं ही इंटरव्यू लेने के लिए पहुंचा हूं लेकिन, ट्रेनिंग सेंटर के अंदर घुसते ही देखा वहां, कई पत्रकार पहले से ही नंदनी का इंतज़ार कर रहे थे. मैने नंदनी के बारे में पूछा तो किसी ने बताया कि नंदिनी नीचे मेस में हैं. मैं मेस के अंदर घुसा तो देखा एक लड़की फ़ोन पर किसी से बात कर रही है. वहां इंतज़ार कर रहे पत्रकारों ने कहा कि यही नंदिनी है. नंदिनी फोन के जरिए किसी को इंटरव्यू दे रही थी. फोन से मुक्त होते ही पत्रकारों ने नंदनी को घेर लिया. थोड़ी देर बाद मेरा भी नंबर आ गया. नंदनी ने बड़े ही आराम से मेरे सभी सवालों के जवाब दिए.
कई बार हम यही देखते हैं कि ज्यादातर टॉपर सबसे पहले अपने परिवार को श्रेय देते हैं लेकिन, नंदिनी ने सबसे पहले श्रेय समाज को दिया फिर, अपने परिवार को. नंदिनी ने बताया कि उसके पिता सरकारी स्कूल में टीचर हैं और मां गृहणी. वह पिछले चार सालों से इस परीक्षा की तैयारी कर रही थी और यह उसका चौथा प्रयास था.
जब नंदिनी से पूछा गया कि जो लोग लड़कियों को बोझ मानते हैं उनके लिए क्या संदेश है. नंदिनी ने कहा कि लड़की और लड़कों में कोई फर्क नहीं करना चाहिए. अगर आप दोनों को मौका देते हैं तो खुद ही देख सकते हैं कि लड़की कितना आगे निकल सकती हैं. नंदिनी ने कहा, 'उन्होंने एग्जाम में तो अच्छा किया, लेकिन उम्मीद नहीं कर रही थीं कि वह टॉप कर जाएंगी.'
नंदिनी ने बताया, 'सबसे पहले उनके दोस्तों ने बताया कि मैंने टॉप किया है, लेकिन मुझे लगा कि दोस्त मजाक कर रहे हैं, क्योंकि वे पहले भी ऐसे मजाक कर चुके थे, लेकिन इस बार यह सच निकाला.' नंदिनी ने कहा कि आप किस बैकग्राउंड से हैं, कोई फर्क नहीं पड़ता. अपने लक्ष्य को सामने रखकर पूरे समर्पण के साथ तैयारी करनी चाहिए,अपने ऊपर भरोसा होना चाहिए.
नंदिनी से बात करने के बाद स्टोरी करने के लिए मैं फौरन ऑफिस आने वाला था. मुझे लगा कि यहां सिर्फ नंदिनी ने टॉप किया होगा. लेकिन मेस के अंदर ऐसे कई लड़के मिले जो टॉपर्स की लिस्ट में थे. एक जगह इतने टॉपर्स से मिलना मेरे लिए आश्चर्य की बात थी.
मुझे इलाहाबाद के अभिलाष मिश्रा मिले.अभिलाष ने इस बार पांचवीं रैंक हासिल की है. यह उनका आखिरी मौका था. अभिलाष ने बताया कि वह 2012 से तैयारी कर रहे हैं. अभिलाष के पिता प्रशांत कुमार मिश्रा इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकील हैं और मां हाउस वाइफ. अभिलाष की पत्नी प्राची भी इंडियन फॉरेस्ट सर्विस में है.
अभिलाष ने कहा कि वह उम्मीद नहीं कर रहे थे कि उनकी पांचवी रैंक आएगी क्योंकि इस परीक्षा में बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा है. इंजीनियर होने के बावजूद अभिलाष ने लोक सेवा को अपना विषय चुना. वह बताते हैं कि यह जरुरी नहीं कि सफलता आप को तुरंत मिल जाए, कितनी भी मेहनत करो, हो सकता है अंत में आप को निराशा ही झेलनी पड़े. सबको सफलता जल्दी नहीं मिलती है, उसके लिए लगातार कोशिश करते रहनी चाहिए.
अभिलाष ने कहा जो बच्चे सिविल सर्विसेस की तैयारियों शुरू करना चाहते हैं उनको सफल लोगों बात करनी चाहिए,अनुभवी लोगों से बात करनी चाहिए. जो लोग सिविल सर्विसेस में सफल नहीं हो पाए हैं, उन से भी बात करनी चाहिए क्योंकि उनके पास अनुभव है.
वह बताते हैं कि सफलता में गाइडेंस की बहुत बड़ी भूमिका होती है और जो लोग तैयारी कर रहे हैं अगर, उनके पास कोई भी नौकरी है तो उसे नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि, इस परीक्षा में मेहनत के साथ-साथ बहुत सारे दूसरे फैक्टर भी होते हैं.
मेस में ही हमें राजस्थान के शैलेन्द्र सिंह इंदौलिया मिले. शैलेन्द्र की इस बार रैंक 38 है और उन्होंने हिंदी माध्यम से एग्जाम दिए थे. शैलेन्द्र भी फ़रीदाबाद के इस सेंटर में आईआरएस की ट्रेनिंग ले रहे हैं. पिछले साल शैलद्र ने 337 रैंक हासिल की थी.
ऑफिस से फ़रीदाबाद के रास्ते में हमेशा ट्रैफिक ज्यादा होता है. करीब घंटे भर के इस सफर में दिमाग में तमाम सवाल और समय पर पहुंचने को लेकर चिंता बढ़ती ही जा रही थी.
एक घंटे के बाद हम फ़रीदाबाद के उस ट्रेनिंग सेंटर में पहुंच गए जहां नंदिनी ट्रेनिंग ले रही थीं. मुझे लगा कि शायद सबसे पहले मैं ही इंटरव्यू लेने के लिए पहुंचा हूं लेकिन, ट्रेनिंग सेंटर के अंदर घुसते ही देखा वहां, कई पत्रकार पहले से ही नंदनी का इंतज़ार कर रहे थे. मैने नंदनी के बारे में पूछा तो किसी ने बताया कि नंदिनी नीचे मेस में हैं. मैं मेस के अंदर घुसा तो देखा एक लड़की फ़ोन पर किसी से बात कर रही है. वहां इंतज़ार कर रहे पत्रकारों ने कहा कि यही नंदिनी है. नंदिनी फोन के जरिए किसी को इंटरव्यू दे रही थी. फोन से मुक्त होते ही पत्रकारों ने नंदनी को घेर लिया. थोड़ी देर बाद मेरा भी नंबर आ गया. नंदनी ने बड़े ही आराम से मेरे सभी सवालों के जवाब दिए.
कई बार हम यही देखते हैं कि ज्यादातर टॉपर सबसे पहले अपने परिवार को श्रेय देते हैं लेकिन, नंदिनी ने सबसे पहले श्रेय समाज को दिया फिर, अपने परिवार को. नंदिनी ने बताया कि उसके पिता सरकारी स्कूल में टीचर हैं और मां गृहणी. वह पिछले चार सालों से इस परीक्षा की तैयारी कर रही थी और यह उसका चौथा प्रयास था.
जब नंदिनी से पूछा गया कि जो लोग लड़कियों को बोझ मानते हैं उनके लिए क्या संदेश है. नंदिनी ने कहा कि लड़की और लड़कों में कोई फर्क नहीं करना चाहिए. अगर आप दोनों को मौका देते हैं तो खुद ही देख सकते हैं कि लड़की कितना आगे निकल सकती हैं. नंदिनी ने कहा, 'उन्होंने एग्जाम में तो अच्छा किया, लेकिन उम्मीद नहीं कर रही थीं कि वह टॉप कर जाएंगी.'
नंदिनी ने बताया, 'सबसे पहले उनके दोस्तों ने बताया कि मैंने टॉप किया है, लेकिन मुझे लगा कि दोस्त मजाक कर रहे हैं, क्योंकि वे पहले भी ऐसे मजाक कर चुके थे, लेकिन इस बार यह सच निकाला.' नंदिनी ने कहा कि आप किस बैकग्राउंड से हैं, कोई फर्क नहीं पड़ता. अपने लक्ष्य को सामने रखकर पूरे समर्पण के साथ तैयारी करनी चाहिए,अपने ऊपर भरोसा होना चाहिए.
नंदिनी से बात करने के बाद स्टोरी करने के लिए मैं फौरन ऑफिस आने वाला था. मुझे लगा कि यहां सिर्फ नंदिनी ने टॉप किया होगा. लेकिन मेस के अंदर ऐसे कई लड़के मिले जो टॉपर्स की लिस्ट में थे. एक जगह इतने टॉपर्स से मिलना मेरे लिए आश्चर्य की बात थी.
मुझे इलाहाबाद के अभिलाष मिश्रा मिले.अभिलाष ने इस बार पांचवीं रैंक हासिल की है. यह उनका आखिरी मौका था. अभिलाष ने बताया कि वह 2012 से तैयारी कर रहे हैं. अभिलाष के पिता प्रशांत कुमार मिश्रा इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकील हैं और मां हाउस वाइफ. अभिलाष की पत्नी प्राची भी इंडियन फॉरेस्ट सर्विस में है.
अभिलाष ने कहा कि वह उम्मीद नहीं कर रहे थे कि उनकी पांचवी रैंक आएगी क्योंकि इस परीक्षा में बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा है. इंजीनियर होने के बावजूद अभिलाष ने लोक सेवा को अपना विषय चुना. वह बताते हैं कि यह जरुरी नहीं कि सफलता आप को तुरंत मिल जाए, कितनी भी मेहनत करो, हो सकता है अंत में आप को निराशा ही झेलनी पड़े. सबको सफलता जल्दी नहीं मिलती है, उसके लिए लगातार कोशिश करते रहनी चाहिए.
अभिलाष ने कहा जो बच्चे सिविल सर्विसेस की तैयारियों शुरू करना चाहते हैं उनको सफल लोगों बात करनी चाहिए,अनुभवी लोगों से बात करनी चाहिए. जो लोग सिविल सर्विसेस में सफल नहीं हो पाए हैं, उन से भी बात करनी चाहिए क्योंकि उनके पास अनुभव है.
वह बताते हैं कि सफलता में गाइडेंस की बहुत बड़ी भूमिका होती है और जो लोग तैयारी कर रहे हैं अगर, उनके पास कोई भी नौकरी है तो उसे नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि, इस परीक्षा में मेहनत के साथ-साथ बहुत सारे दूसरे फैक्टर भी होते हैं.
मेस में ही हमें राजस्थान के शैलेन्द्र सिंह इंदौलिया मिले. शैलेन्द्र की इस बार रैंक 38 है और उन्होंने हिंदी माध्यम से एग्जाम दिए थे. शैलेन्द्र भी फ़रीदाबाद के इस सेंटर में आईआरएस की ट्रेनिंग ले रहे हैं. पिछले साल शैलद्र ने 337 रैंक हासिल की थी.
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