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This Article is From Oct 21, 2020

अब आया CNG से भी साफ़ ईंधन 'हाइड्रोजन CNG', पहला प्लांट दिल्ली में चालू हुआ

अभी तक हम मानते हैं कि वाहन चलाने के लिए सबसे साफ इंधन है सीएनजी. लेकिन अब सीएनजी से भी ज्यादा साफ इंधन बन गया है इसको ' हाइड्रोजन सीएनजी या HCNG कहा जाता है

अब आया CNG से भी साफ़ ईंधन 'हाइड्रोजन CNG', पहला प्लांट दिल्ली में चालू हुआ
नई दिल्ली:

अभी तक हम मानते हैं कि वाहन चलाने के लिए सबसे साफ इंधन है सीएनजी. लेकिन अब सीएनजी से भी ज्यादा साफ इंधन बन गया है इसको ' हाइड्रोजन सीएनजी या HCNG कहा जाता है. दिल्ली के राजघाट बस डिपो में देश का पहला हाइड्रोजन सीएनजी प्लांट मंगलवार से शुरू हो गया है. दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत और केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इसका उद्घाटन किया. दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड के साझा प्रयास से यह प्लांट और वितरण केंद्र बनकर शुरू हुआ है.

 क्या है हाइड्रोजन CNG

हाइड्रोजन सीएनजी  या एच-सीएनजी ईंधन में 18 प्रतिशत हाइड्रोजन और 82 फीसदी सीएनजी गैस का मिश्रण होगा. इस प्लांट में CNG को ही स्टीम करके 18% हाइड्रोजन को रिफॉर्म किया जाता है. हाइड्रोजन होने से जलने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है. बिना जला हुआ फ्यूल कम हो जाता है.

दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत के मुताबिक 'अभी तक की स्टडी में पाया गया है कि CNG में 18% हाइड्रोजन मिलाकर जो एचसीएनजी इस्तेमाल करते हैं तो उससे 70-75% कार्बन मोनोऑक्साइड और 25 परसेंट हाइड्रोकार्बन कम होगा और तीन से चार पर्सेंट फ्यूल एफिशिएंसी बढ़ेगी'. उन्होंने बताया कि फिलहाल सीएनजी बसों में हाइड्रोजन सीएनजी इस्तेमाल करने के लिए किसी बड़े फिजिकल चेंज की नही होगी ज़रूरत ,सिर्फ टेक्निकल तौर पर वाहन के सॉफ्टवेयर में बदलाव करना होगा.

 6 महीने का ट्रायल

दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने बताया की प्लांट भी बनकर तैयार हो गया है और यहां से वितरण का काम भी शुरू हो गया है लेकिन हाइड्रोजन सीएनजी कितनी कारगर है, सीएनजी बसों में हाइड्रोजन सीएनजी भरकर चलाने से किस तरह के नतीजे आते यह देखने के लिए मंगलवार से अगले 6 महीने तक डीटीसी और क्लस्टर की 50 बसों में इसका ट्रायल होगा. इसके बाद एक स्वतंत्र संस्था जिसका नाम आई कैट है इसपर अपनी रिपोर्ट सरकार को देगी जिसके बाद आगे की रणनीति बनाई जाएगी.

क्या कहते हैं जानकार?

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के एयर पोलूशन डिपार्टमेंट के सीनियर प्रोग्राम मैनेजर विवेक चट्टोपाध्याय बताते हैं कि 'ये एक अच्छा कदम है. इससे दिल्ली की हवा साफ करने में मदद मिलेगी क्योंकि इससे कार्बन मोनोऑक्साइड में कमी आएगी'. विवेक चट्टोपाध्याय बताते हैं कि वैसे तो दिल्ली में कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर सुरक्षित दायरे में है. साल 2019 में दिल्ली में कार्बन मोनोऑक्साइड का औसत स्तर 1.44 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था जबकि सुरक्षित स्तर 2 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है. लेकिन घनी आबादी के इलाके में, किसी संकरे इलाके में, ट्रैफिक जाम या धीमे ट्रैफिक के इलाके में कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर बहुत बढ़ जाता है.

विवेक चट्टोपाध्याय ने बताया कि कार्बन मोनोऑक्साइड एक जहरीली गैस है. ये गैस गंधरहित होती है इसलिए और भी खतरनाक हो जाती है. यह गैस जब शरीर में जाती है तो रक्त में मौजूद हीमोग्लोबिन के साथ रिएक्शन करके कार्बोक्सि हीमोग्लोबिन बनाती है. इसके चलते शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई में बाधा आती है. इस गैस के संपर्क में आने पर थकान अनिद्रा की शिकायत होने लगती है और अगर किसी बंद उलाक़े में कोई व्यक्ति लगातार इसके संपर्क में व्यक्ति रहे तो जानलेवा भी हो सकता है.

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