संसद ने बाल मजदूरी के खिलाफ नया कानून पास किया है
नई दिल्ली:
पिछले महीने संसद में बाल मजूदरी के खिलाफ एक नए कानून को पास किया गया जिसमें 14 साल से कम उम्र के बच्चों के मजदूरी करने को गैरकानूनी करार दिया गया. सुनने में तो स्वतंत्रता दिवस पर भारत में 5 से 17 साल के करीब 50 लाख 70 हज़ार बाल मजदूरों के लिए इससे अच्छा तोहफा कुछ नहीं हो सकता लेकिन इस नए कानून में एक छूट भी दी गई है.
नए कानून के एक अनुच्छेद के मुताबिक अभिभावक और रिश्तेदार अपने बच्चों को स्कूल खत्म होने के बाद काम पर लगा सकते हैं, क्योंकि सरकार मानती है कि भारत की आर्थिक सच्चाईयों से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि यह कानून बच्चों से मजदूरी करवाने की नहीं, परिवारों को सिर्फ अपने बच्चों की मदद लेने की अनुमति देता है. हालांकि कागज़ों से बाहर निकलकर ज़मीनी स्तर पर हक़ीकत कुछ और ही है.
स्कूल भी काम भी
हम उत्तरी दिल्ली के नरेला में एक पुनर्वास बस्ती में पहुंचे जहां हमारी मुलाकात 10 साल के नसीर से हुई जो पान में इस्तेमाल किए जाने वाले चूने को बोतलों में भरने के काम में अपनी मां की मदद करता है. वहीं से कुछ दूरी पर 10 साल का संजय अपनी मां के साथ चाय का ठेला चलाता है. इस काम में वक्त काफी लगता है लेकिन कमाई कुछ खास नहीं होती. संजय की मां ने बताया कि हर दिन वह करीब 300-500 रुपए कमा लेते हैं.
जहां तक नसीर की बात है तो वह जो काम करता है उसमें काफी खतरा भी है. वह बताता है कि सर्दियों में खासतौर पर उसके हाथ चूने से कट जाते हैं. इस इलाके के करीब हर दूसरे घर में 7 साल जितने बच्चे बकायदा मजदूरी में संलग्न हैं. सरकार का दावा है कि नया कानून स्कूल के घंटे खत्म होने के बाद किए जाने वाले काम को कानूनी बता रहा है. लेकिन जानकारों के मुताबिक इससे बच्चे के विकास पर असर पड़ेगा.
नसीर की मां बताती हैं कि वह स्कूल जाने से पहले 4-5 घंटे काम करता है और फिर लौटने के बाद भी हाथ बंटाता है. वह कहती हैं 'लेकिन वह भी एक बच्चा है, थक जाता है, ऊपर से स्कूल का काम भी पूरा करना पड़ता है.'
अनियमित ईकाइयों में बाल श्रम
नरेला में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था डॉ एबी बलागा ट्रस्ट के संचालक अमर पहाड़ी कहते हैं कि जो बच्चे घर पर काम करते हैं, स्कूल में उनके नंबरों पर असर पड़ता है. कुछ तो पूरी तरह स्कूल ही छोड़ देते हैं. वहीं मंत्री का दावा है कि कानून में कड़ी सज़ा का प्रावधान है जो अभिभावक को अपने बच्चों को प्रताड़ित करने से रोकेगा.
अगर घर पर काम करने वालों बच्चों को अलग भी कर दिया जाए, तब भी सरकार के लिए उन नियमित और अनियमित ईकाइयों पर नज़र रखना मुश्किल है जहां बच्चे काम करते हैं. एनडीटीवी की रिपोर्टर एक स्थानीय एनजीओ की महिलाओं के साथ छुपे हुए कैमरे को लेकर पानीपत की उन अनियमित ईकाइयों में गईं जहां बाल मजदूरी धड़ल्ले से जारी है. इनमें से ज्यादातर ईकाइयों में सूत कातने का काम होता है, लगभग हर एक युनिट में बच्चे काम कर रहे हैं. ऐसी ही एक 9 साल की बच्ची फैक्ट्री में लगी स्पिंडल मशीन के पास काम कर रही है जो बहुत खतरनाक है. उसके पास ही उसकी बहन भी काम में जुटी हुई है.
नए कानून के मुताबिक इस तरह बच्चों का काम करना गैरकानूनी है लेकिन इसके बावजूद यह खुलेआम हो रहा है. यहां जांच करने के लिए इंस्पेक्टर शायद ही आते हैं. श्रम आयोग के दफ्तर में इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है कि अभी तक इस मामले में कितने छापे मारे गए या कितने बच्चों को बचाया गया.
नए कानून के एक अनुच्छेद के मुताबिक अभिभावक और रिश्तेदार अपने बच्चों को स्कूल खत्म होने के बाद काम पर लगा सकते हैं, क्योंकि सरकार मानती है कि भारत की आर्थिक सच्चाईयों से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि यह कानून बच्चों से मजदूरी करवाने की नहीं, परिवारों को सिर्फ अपने बच्चों की मदद लेने की अनुमति देता है. हालांकि कागज़ों से बाहर निकलकर ज़मीनी स्तर पर हक़ीकत कुछ और ही है.
स्कूल भी काम भी
हम उत्तरी दिल्ली के नरेला में एक पुनर्वास बस्ती में पहुंचे जहां हमारी मुलाकात 10 साल के नसीर से हुई जो पान में इस्तेमाल किए जाने वाले चूने को बोतलों में भरने के काम में अपनी मां की मदद करता है. वहीं से कुछ दूरी पर 10 साल का संजय अपनी मां के साथ चाय का ठेला चलाता है. इस काम में वक्त काफी लगता है लेकिन कमाई कुछ खास नहीं होती. संजय की मां ने बताया कि हर दिन वह करीब 300-500 रुपए कमा लेते हैं.
जहां तक नसीर की बात है तो वह जो काम करता है उसमें काफी खतरा भी है. वह बताता है कि सर्दियों में खासतौर पर उसके हाथ चूने से कट जाते हैं. इस इलाके के करीब हर दूसरे घर में 7 साल जितने बच्चे बकायदा मजदूरी में संलग्न हैं. सरकार का दावा है कि नया कानून स्कूल के घंटे खत्म होने के बाद किए जाने वाले काम को कानूनी बता रहा है. लेकिन जानकारों के मुताबिक इससे बच्चे के विकास पर असर पड़ेगा.
नसीर की मां बताती हैं कि वह स्कूल जाने से पहले 4-5 घंटे काम करता है और फिर लौटने के बाद भी हाथ बंटाता है. वह कहती हैं 'लेकिन वह भी एक बच्चा है, थक जाता है, ऊपर से स्कूल का काम भी पूरा करना पड़ता है.'
अनियमित ईकाइयों में बाल श्रम
नरेला में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था डॉ एबी बलागा ट्रस्ट के संचालक अमर पहाड़ी कहते हैं कि जो बच्चे घर पर काम करते हैं, स्कूल में उनके नंबरों पर असर पड़ता है. कुछ तो पूरी तरह स्कूल ही छोड़ देते हैं. वहीं मंत्री का दावा है कि कानून में कड़ी सज़ा का प्रावधान है जो अभिभावक को अपने बच्चों को प्रताड़ित करने से रोकेगा.
अगर घर पर काम करने वालों बच्चों को अलग भी कर दिया जाए, तब भी सरकार के लिए उन नियमित और अनियमित ईकाइयों पर नज़र रखना मुश्किल है जहां बच्चे काम करते हैं. एनडीटीवी की रिपोर्टर एक स्थानीय एनजीओ की महिलाओं के साथ छुपे हुए कैमरे को लेकर पानीपत की उन अनियमित ईकाइयों में गईं जहां बाल मजदूरी धड़ल्ले से जारी है. इनमें से ज्यादातर ईकाइयों में सूत कातने का काम होता है, लगभग हर एक युनिट में बच्चे काम कर रहे हैं. ऐसी ही एक 9 साल की बच्ची फैक्ट्री में लगी स्पिंडल मशीन के पास काम कर रही है जो बहुत खतरनाक है. उसके पास ही उसकी बहन भी काम में जुटी हुई है.
नए कानून के मुताबिक इस तरह बच्चों का काम करना गैरकानूनी है लेकिन इसके बावजूद यह खुलेआम हो रहा है. यहां जांच करने के लिए इंस्पेक्टर शायद ही आते हैं. श्रम आयोग के दफ्तर में इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है कि अभी तक इस मामले में कितने छापे मारे गए या कितने बच्चों को बचाया गया.
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