हाथरस केस: यूपी सरकार का हलफनामा नहीं आया, सुप्रीम कोर्ट में 15 अक्टूबर को सुनवाई

यूपी सरकार की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा था कि वे गुरुवार तक कोर्ट की ओर से पूछे गए तीन अहम सवालों के जवाब तफसील से देंगे

हाथरस केस: यूपी सरकार का हलफनामा नहीं आया, सुप्रीम कोर्ट में 15 अक्टूबर को सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट.

नई दिल्ली:

Hathras Case: हाथरस मामले में सुप्रीम कोर्ट 15 अक्तूबर को सुनवाई करेगा. उत्तर प्रदेश सरकार (Uttar pradesh Government) का अब तक कोई हलफनामा (Affidavit) नहीं आया है. हालांकि पिछले मंगलवार को सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा था कि वे गुरुवार तक इस मामले में अपनी कार्रवाई और कोर्ट की ओर से पूछे गए तीन अहम सवालों के जवाब तफसील से दे देंगे. सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से मुख्य रूप से तीन बातें पूछी थीं, ये कि पीड़ित परिवार और गवाहों की सुरक्षा के क्या इंतजाम किए गए हैं? क्या पीड़ित परिवार के पास पैरवी के लिए कोई वकील है? और इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमे की क्या स्थिति है? 

इस मामले में कानून के जानकारों का कहना है कि यूपी सरकार शायद इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में हुई सुनवाई और लगातार हो रहे डेवलपमेंट के आधार पर अधिकतम जानकारी देते हुए हलफनामा दाखिल करेगी. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने हाथरस मामले में अगली सुनवाई दो नवम्बर तक टाल दी है.

उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन (President Rule) लगाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) में पांच अक्टूबर को जनहित याचिका दाखिल की गई थी. तमिलनाडु के रहने वाले वकील सीआर जयासुकिन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. इस याचिका में हाथरस मामले (Hathras Case) का हवाला देते हुए कहा गया कि यूपी में मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है, लिहाजा राष्ट्रपति शासन लगाया जाए. यूपी के हाथरस में युवती के साथ कथित दुष्कर्म और हत्या के मामले को लेकर देशभर में आक्रोश है. मामले को लेकर देश में कई जगह प्रदर्शन हुए हैं. 

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हाथरस में गैंगरेप की शिकार 20 साल की युवती की 29 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मौत हो गई थी. इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है. हैवानियत की हदें पार करने वाली यह घटना यूपी के हाथरस में 14 सितंबर को हुई थी. इस मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट (High Court) ने स्वत: संज्ञान (Suo Moto Cognizance) लिया है. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा कि एक क्रूरता अपराधियों ने पीड़िता के साथ दिखाई और इसके बाद जो कुछ हुआ, अगर वो सच है तो उसके परिवार के दुखों को दूर करने की बजाए उनके जख्मों पर नमक छिड़कने के समान है. मृतक के शव को उनके घर ले जाया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. हमारे समक्ष मामला आया जिसके बारे में हमने संज्ञान लिया है यह केस सार्वजनिक महत्व और सार्वजनिक हित का है क्योंकि इसमें राज्य के उच्च अधिकारियों पर आरोप शामिल हैं, जिसके परिणामस्वरूप न केवल मृतक पीड़िता बल्कि उसके परिवार के सदस्यों की भी मूल मानवीय और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है.