प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
पांच सितंबर को शिक्षक दिवस के मौके पर देश भर में गुरुजनों और शिक्षकों को याद किया जा रहा है. दिल्ली समेत कई जगहों पर शिक्षकों को सम्मानित किया जा रहा है, सोशल मीडिया पर अपने स्कूल और कॉलेज के शिक्षकों को याद करते हुए पोस्ट लिखी जा रही हैं, कइयों में अपने शिक्षक की तस्वीर को साझा भी किया जा रहा है. लेकिन इन सबके बीच कई लोग ऐसे भी हैं जो इस विशेष दिन का इस्तेमाल शिक्षकों की बदहाली पर ध्यान खींचने के लिए कर रहे हैं.
हिंदी अखबार दैनिक जागरण में छपी खबर के अनुसार उत्तराखंड के अल्मोड़ा में त्रिस्तरीय व्यवस्था लागू नहीं होने की मांग को लेकर वहां के शिक्षकों ने शिक्षक दिवस का बहिष्कार किया है. वहीं बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक पटना में करीब चार लाख नियोजित शिक्षक महीनों-महीनों से वेतन न मिलने की शिकायत को लेकर शिक्षक दिवस के दिन 'शिक्षक अपमान दिवस' मना रहे हैं. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने अपने संपादकीय में एक संविदा शिक्षक का राष्ट्रपति के नाम पत्र छापा है जिसमें लेखक ने उन हालात का जिक्र किया है जिसके तहत एक शिक्षक बनने का सपना लेकर चला व्यक्ति महज़ 'एड हॉक' बनकर रह जाता है.
शिक्षक दिवस के उत्सवी माहौल में इस तरह की बातें यकीनन स्वाद बिगाड़ सकती हैं लेकिन एक दिन के लिए शिक्षकों और गुरुओं की मौजूदा हालात से मुंह फेर लेने से भी . वैसे इसी दिन के लिए हिंदी के दिग्गज व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने एक निबंध लिखा था जिसका शीर्षक था 'शिक्षक सम्मान से इंकार करें..' इस लेख में परसाई लिखते हैं कि किस तरह 5 सितंबर के मौके पर अलग अलग संस्थाएं और क्लब आदि रिटायर्ड शिक्षकों को ढूंढ ढूंढकर सम्मानित करते हैं.
इस निबंध के एक संपादित हिस्से में वह लिखते हैं 'देश में पांच सितंबर को शिक्षकों को सम्मानित करने का फैशन चल पड़ा है. राष्ट्रपति शिक्षकों को सम्मानित करते हैं तो यह भी सोचते हैं कि यह कार्यक्रम अच्छा रहेगा. अखबारों में छपेगा. लोग जानेंगे कि हम गुरु की महिमा जानते हैं और उसका सम्मान भी करते हैं. आप समझ लीजिए कि अगर डाकुओं का इसी तरह शान से आत्मसमर्पण होता रहा और ऐसी ही गरिमापूर्ण फिल्में बनती रहीं तो आगे चलकर डाकू सम्राट मानसिंह का जन्मदिवस दस्यु दिवस के रूप में मनाया जाएगा. मानसिंह अपने क्षेत्र में राधाकृष्णन से कम योग्य और सम्मानित नहीं था. फिर एक 'मिलावटी दिवस' होगा, 'कालाबाजारी दिवस', 'तस्करी दिवस', 'घूसखोर दिवस' होगा. शिक्षक दिवस तो इसलिए जबरदस्ती चल रहा है क्योंकि डॉ राधाकृष्णन राष्ट्रपति रहे. अगर वह सिर्फ महान अध्यापक मात्र रहे होते तो शिक्षक दिवस नहीं मनाया जाता.'
शिक्षकों की समस्याओं पर मानो हाथ रखते हुए इसी निबंध के एक और हिस्से में परसाई लिखते हैं 'पांच सितंबर शिक्षकों का अपमान दिवस है. झूठ है, पाखंड है. गरीब अध्यापक का उपहास है. प्रहसन है. वेतन ठीक नहीं देंगे. सुभीते नहीं देंगे. सम्मान करके उल्लू बनाएंगे. इस देश के शिक्षकों को पांच सितंबर को सम्मान करवाने से इंकार कर देना चाहिए. लोग बुलाएं तो शिक्षक कह दें हमें अपना सम्मान नहीं करवाना. आप जबरदस्ती करेंगे तो हम पुलिस में रिपोर्ट कर देंगे.'
दिलचस्प बात यह है कि परसाई द्वारा काफी पहले लिखा जा चुका यह लेख वर्तमान दौर में काफी प्रासंगिक है. देश के विकास में शिक्षकों से जुड़ी कई समस्याएं ज्यों की त्यों हैं. आगे उम्मीद ही की जा सकती है कि अाने वाले समय में परसाई का लिखा यह निबंध अप्रासंगिक होता चला जाए, तब तक झूठा ही सही 'हैप्पी टीचर्स डे'...
हिंदी अखबार दैनिक जागरण में छपी खबर के अनुसार उत्तराखंड के अल्मोड़ा में त्रिस्तरीय व्यवस्था लागू नहीं होने की मांग को लेकर वहां के शिक्षकों ने शिक्षक दिवस का बहिष्कार किया है. वहीं बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक पटना में करीब चार लाख नियोजित शिक्षक महीनों-महीनों से वेतन न मिलने की शिकायत को लेकर शिक्षक दिवस के दिन 'शिक्षक अपमान दिवस' मना रहे हैं. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने अपने संपादकीय में एक संविदा शिक्षक का राष्ट्रपति के नाम पत्र छापा है जिसमें लेखक ने उन हालात का जिक्र किया है जिसके तहत एक शिक्षक बनने का सपना लेकर चला व्यक्ति महज़ 'एड हॉक' बनकर रह जाता है.
शिक्षक दिवस के उत्सवी माहौल में इस तरह की बातें यकीनन स्वाद बिगाड़ सकती हैं लेकिन एक दिन के लिए शिक्षकों और गुरुओं की मौजूदा हालात से मुंह फेर लेने से भी . वैसे इसी दिन के लिए हिंदी के दिग्गज व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने एक निबंध लिखा था जिसका शीर्षक था 'शिक्षक सम्मान से इंकार करें..' इस लेख में परसाई लिखते हैं कि किस तरह 5 सितंबर के मौके पर अलग अलग संस्थाएं और क्लब आदि रिटायर्ड शिक्षकों को ढूंढ ढूंढकर सम्मानित करते हैं.
इस निबंध के एक संपादित हिस्से में वह लिखते हैं 'देश में पांच सितंबर को शिक्षकों को सम्मानित करने का फैशन चल पड़ा है. राष्ट्रपति शिक्षकों को सम्मानित करते हैं तो यह भी सोचते हैं कि यह कार्यक्रम अच्छा रहेगा. अखबारों में छपेगा. लोग जानेंगे कि हम गुरु की महिमा जानते हैं और उसका सम्मान भी करते हैं. आप समझ लीजिए कि अगर डाकुओं का इसी तरह शान से आत्मसमर्पण होता रहा और ऐसी ही गरिमापूर्ण फिल्में बनती रहीं तो आगे चलकर डाकू सम्राट मानसिंह का जन्मदिवस दस्यु दिवस के रूप में मनाया जाएगा. मानसिंह अपने क्षेत्र में राधाकृष्णन से कम योग्य और सम्मानित नहीं था. फिर एक 'मिलावटी दिवस' होगा, 'कालाबाजारी दिवस', 'तस्करी दिवस', 'घूसखोर दिवस' होगा. शिक्षक दिवस तो इसलिए जबरदस्ती चल रहा है क्योंकि डॉ राधाकृष्णन राष्ट्रपति रहे. अगर वह सिर्फ महान अध्यापक मात्र रहे होते तो शिक्षक दिवस नहीं मनाया जाता.'
शिक्षकों की समस्याओं पर मानो हाथ रखते हुए इसी निबंध के एक और हिस्से में परसाई लिखते हैं 'पांच सितंबर शिक्षकों का अपमान दिवस है. झूठ है, पाखंड है. गरीब अध्यापक का उपहास है. प्रहसन है. वेतन ठीक नहीं देंगे. सुभीते नहीं देंगे. सम्मान करके उल्लू बनाएंगे. इस देश के शिक्षकों को पांच सितंबर को सम्मान करवाने से इंकार कर देना चाहिए. लोग बुलाएं तो शिक्षक कह दें हमें अपना सम्मान नहीं करवाना. आप जबरदस्ती करेंगे तो हम पुलिस में रिपोर्ट कर देंगे.'
दिलचस्प बात यह है कि परसाई द्वारा काफी पहले लिखा जा चुका यह लेख वर्तमान दौर में काफी प्रासंगिक है. देश के विकास में शिक्षकों से जुड़ी कई समस्याएं ज्यों की त्यों हैं. आगे उम्मीद ही की जा सकती है कि अाने वाले समय में परसाई का लिखा यह निबंध अप्रासंगिक होता चला जाए, तब तक झूठा ही सही 'हैप्पी टीचर्स डे'...
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