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This Article is From Sep 26, 2019

करप्ट सरकार चलाने का आरोप झेलने वाले मनमोहन सिंह ने ही दिया था इससे निपटने का सबसे 'घातक हथियार'

पीवी. नरसिम्हा राव की सरकार में वित्तमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार यानी खुली अर्थव्यवस्था बनाने के शिल्पकार हैं. लेकिन जब वह खुद प्रधानमंत्री बने तो उनको वामदलों का समर्थन लेना पड़ा जो इस आर्थिक नीति के सबसे बड़े विरोधी थे.

करप्ट सरकार चलाने का आरोप झेलने वाले मनमोहन सिंह ने ही दिया था इससे निपटने का सबसे 'घातक हथियार'
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) का 26 सितंबर को जन्मदिन है. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:


लगातार 10 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह का आज (26 सितंबर) जन्मदिन है. डॉ. मनमोहन सिंह  (Manmohan Singh )को एक ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में याद किया जाता है, जो बड़े से बड़े मौके पर चुप्पी साधे रहे. उन पर आरोप लगा कि उनकी सरकार में शामिल मंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, लेकिन वह गठबंधन धर्म निभाने के लिए चुप रहे और भ्रष्ट सरकार चलाते रहे. हालांकि यहां एक बात यह भी ध्यान देने वाली है कि उन पर व्यक्तिगत भ्रष्टाचार का आरोप कभी नहीं लगा, लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान विपक्ष हमेशा यह कहकर ताने मारता रहा कि ऐसी व्यक्तिगत ईमानदारी किस काम की, जब आपकी नाक के नीचे भ्रष्टाचार हो रहा हो. यहां ध्यान देने वाली एक बात यह भी है कि मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री बनना एक संयोग था. साल 2004 में चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी प्रधानमंत्री पद की सबसे बड़ी दावेदार थीं, लेकिन BJP ने विदेशी मूल का मुद्दा उठा दिया. इसके बाद, सोनिया ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. प्रणब मुखर्जी को दरकिनार कर मनमोहन सिंह को इस पद के लिए चुना था. मनमोहन सिंह ने UPA का पहला कार्यकाल कई दलों को साथ लेकर चलाया, जिनमें वामदल भी शामिल थे. पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार में वित्तमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार, यानी खुली अर्थव्यवस्था बनाने के शिल्पकार हैं, लेकिन जब वह खुद प्रधानमंत्री बने, तो उन्हें वामदलों का समर्थन लेना पड़ा, जो इस आर्थिक नीति के सबसे बड़े विरोधी थे. इसके बाद अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर वामदलों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया. हालांकि, मनमोहन सिंह ने सदन में बहुमत साबित कर दिया था, लेकिन 'कैश फॉर वोट' जैसी कलंकित घटना भी इस दौरान हुई. मनमोहन सिंह अमेरिका के साथ परमाणु डील को देशहित में मानते थे, लेकिन कहा जाता है कि इस मुद्दे पर सरकार में अंदर ही अंदर मतभेद थे. UPA-1 से लेकर UPA-2 तक कोयला घोटाला, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला जैसे कई दाग सरकार पर लगे, लेकिन इन सब के बीच भी अगर मनमोहन सरकार का कार्यकाल याद किया जाएगा, तो कुछ उपलबब्धियां ऐसी हैं, जिनका श्रेय मनमोहन सिंह से कोई छीन नहीं सकता है.

1- सूचना का अधिकार (RTI)
सरकारी भ्रष्टाचाक पर आज अगर कोई सबसे बड़ा लगाम लगाने का काम कर रहा है तो वह सूचना का अधिकार. इस कानून को मनमोहन सिंह की सरकार ही लेकर आई थी. इसमें देश का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी विभाग (रक्षा और खुफिया मामलों को छोड़कर) से किसी भी मुद्दे पर जानकारी पाने का अधिकार रखता है और कोई भी अधिकारी इस सूचना देने से इनकार नहीं कर सकता है. आज कई घोटाले आरटीआई की वजह से सामने आए हैं. 

2- आधार कार्ड 
आज सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में आधार की संवैधानिकता बरकरार रखी है. पूर्व पीएम मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) अपने कार्यकाल में इस योजना को लेकर आए थे. देश के हर व्यक्ति को पहचान देने और प्राथमिक तौर पर प्रभावशाली जनहित सेवाएं उस तक पहुंचाने के लिए इसे शुरू किया था. उस दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) ने भी इसकी तारीफ की थी. यूएन की ओर से कहा गया था कि आधार स्कीम भारत की बेहतरीन स्कीम है.

3- मनरेगा
पीएम रहते हुए मनमोहन सिंह महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MNREGA) लेकर आए. बेरोजगारी से जूझते देश में यह योजना काफी लाभदायक साबित हुई. विशेषज्ञों ने इसकी तारीफ की. योजना के तहत साल में 100 दिन का रोजगार और न्यूनतम दैनिक मजदूरी 100 रुपये तय की गई. खास बात यह भी है कि इसके तहत पुरुषों और महिलाओं के बीच किसी भी भेदभाव की अनुमति नहीं है. 

4-  शिक्षा का अधिकार कानून
डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही राइट टु एजुकेशन यानी शिक्षा का अधिकार अस्तित्व में आया.  RTE के तहत 6 से 14 साल के बच्चे को शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित किया गया. कहा गया कि इस उम्र के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दी ही जाएगी. यह योजना भी बदलाव का वाहक बनी. तमाम विशेषज्ञों ने इसकी तारीफ की. 

5- सामरिक मोर्चे पर भी बड़ी कामयाबी 
यूपीए सरकार में अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील भी उनके बड़े कामों में शुमार है. इस डील की बदौलत  भारत न्यूक्लियर हथियारों के मामले में एक पावरफुल नेशन बनकर उभरा. डील के तहत यह सहमति बनी थी कि भारत अपनी इकॉनमी की बेहतरी के लिए सिविलियन न्यूक्लियर एनर्जी पर काम करता रहेगा. आज पड़ोसी देशों से खतरे को देखते हुए यह डील अहम मानी जा रही है. 

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