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गुरदासपुर:
पंजाब के गुरदासपुर में हुआ हमला एक बार फिर उन दहशत भरे दिनों को सामने ले आया जिसे 20 साल पहले ये राज्य पीछे छोड़ चुका था। सोमवार की सुबह करीब साढ़े पांच बजे तीन से चार की संख्या में हमलावरों ने अंधाधुंध फ़ायरिंग करते हुए पंजाब के गुरदासपुर में एक बस और उसके बाद पुलिस थाने पर हमला किया जिसमें एसपी बलजीत सिंह भी शहीद हो गए। अभी तक इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली गई है लेकिन अचानक हुए इस हमले ने एक बार फिर पंजाब की सुरक्षा-व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सत्तर और अस्सी के दशक में सिखों के अलग देश खालिस्तान बनाने की मांग चरम पर थी जिसकी वजह से कई नौजवान आतंकवाद के रास्ते पर चल पड़े थे। ये विरोध कई हमलों और मुठभेड़ की वजह बना जिसने आगे चलकर ऑपरेशन ब्लूस्टार को जन्म दिया। जून, 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर ऑपरेशन ब्लू स्टार का आदेश दिया ताकि मंदिर में छुपे जरनैल सिंह भिंडरावाले को बाहर निकाला जा सके। भिंडरावाले पर आरोप था कि वह भारी मात्रा में हथियारों के साथ स्वर्ण मंदिर में छुपा है। इस ऑपरेशन में आतंकियों के साथ साथ निर्देोष लोगों के मारे जाने की भी खबर थी। ये घटना ही अक्टूबर,1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का सबब बनी जिसे उन्हीं के दो अंगरक्षकों ने अंजाम दिया। इसके बाद हुए '84 के सिख दंगों की याद आज भी कईयों के रोंगेट खड़े कर देती है।
कई आतंकी हमलों और निर्दोष जानों की बलि लेने के बाद इस विरोध में अगस्त,1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिएंत सिंह, एक आत्मघाती हमले में मौत के शिकार हो गये। खालिस्तान के पक्षधर बब्बर खालसा गुट ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी लेकिन ऐसी खबरें थी कि सुरक्षा अधिकारियों को इस दावे की सच्चाई पर शंका थी। आज से बीस साल पहले हुए इस हमले के बाद पंजाब आतंक के साये से धीरे धीरे बाहर निकलता दिखाई दिया लेकिन इस बात को कोई नकार नहीं सकता कि अस्सी और नब्बे के दशक में ये राज्य जिस खौफनाक दौर से गुज़र रहा था तब इसके 'अच्छे दिनों' की कल्पना कर पाना मुश्किल ही था।
2005 में अंग्रेजी अख़बार हिंदू के एक लेख में इतिहासविद् रामचंद्र गुहा ने लिखा था "करीब पंद्रह साल तक पंजाब से आने वाली खबरें इतनी मनहूसियत से भरी होती थी कि ऐसा लगता था कि राज्य और लोगों के बीच की ये जंग कभी खत्म नहीं होगी या फिर सिखों के अलग देश खालिस्तान के बनने के बाद ही इसका अंत होगा। लेकिन आखिरकार ये हिंसा की आग धुंधली होने लगी और वक्त के साथ बुझ भी गई। पंजाबियों ने सांप्रदायिक मतभेदों को अलग करके अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर करने पर जो़र दिया।"
वहीं खालिस्तान आंदोलन के दौरान पंजाब के डीजीपी रहे इज़हार आलम ने एनडीटीवी ख़बर से बातचीत में कहा कि खालिस्तान आंदोलन के दौरान हुए हमले, सोमवार की वारदात की तरह योजनाबद्ध नहीं होते थे। इस हमले को पंजाब-विशेष से जोड़कर देखना एकदम गलत होगा। ये किसी ऐसे आंतकवादी गुट का उठाया कदम हो सकता है जो अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने के लिए पंजाब क्या कहीं पर भी हमला कर सकता था।अस्सी के दशक को याद करते हुए आलम कहते हैं कि उस वक्त हालात बुरे थे लेकिन हम सबको यकीन था कि इससे बाहर निकला जा सकता है।
सत्तर और अस्सी के दशक में सिखों के अलग देश खालिस्तान बनाने की मांग चरम पर थी जिसकी वजह से कई नौजवान आतंकवाद के रास्ते पर चल पड़े थे। ये विरोध कई हमलों और मुठभेड़ की वजह बना जिसने आगे चलकर ऑपरेशन ब्लूस्टार को जन्म दिया। जून, 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर ऑपरेशन ब्लू स्टार का आदेश दिया ताकि मंदिर में छुपे जरनैल सिंह भिंडरावाले को बाहर निकाला जा सके। भिंडरावाले पर आरोप था कि वह भारी मात्रा में हथियारों के साथ स्वर्ण मंदिर में छुपा है। इस ऑपरेशन में आतंकियों के साथ साथ निर्देोष लोगों के मारे जाने की भी खबर थी। ये घटना ही अक्टूबर,1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का सबब बनी जिसे उन्हीं के दो अंगरक्षकों ने अंजाम दिया। इसके बाद हुए '84 के सिख दंगों की याद आज भी कईयों के रोंगेट खड़े कर देती है।
कई आतंकी हमलों और निर्दोष जानों की बलि लेने के बाद इस विरोध में अगस्त,1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिएंत सिंह, एक आत्मघाती हमले में मौत के शिकार हो गये। खालिस्तान के पक्षधर बब्बर खालसा गुट ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी लेकिन ऐसी खबरें थी कि सुरक्षा अधिकारियों को इस दावे की सच्चाई पर शंका थी। आज से बीस साल पहले हुए इस हमले के बाद पंजाब आतंक के साये से धीरे धीरे बाहर निकलता दिखाई दिया लेकिन इस बात को कोई नकार नहीं सकता कि अस्सी और नब्बे के दशक में ये राज्य जिस खौफनाक दौर से गुज़र रहा था तब इसके 'अच्छे दिनों' की कल्पना कर पाना मुश्किल ही था।
2005 में अंग्रेजी अख़बार हिंदू के एक लेख में इतिहासविद् रामचंद्र गुहा ने लिखा था "करीब पंद्रह साल तक पंजाब से आने वाली खबरें इतनी मनहूसियत से भरी होती थी कि ऐसा लगता था कि राज्य और लोगों के बीच की ये जंग कभी खत्म नहीं होगी या फिर सिखों के अलग देश खालिस्तान के बनने के बाद ही इसका अंत होगा। लेकिन आखिरकार ये हिंसा की आग धुंधली होने लगी और वक्त के साथ बुझ भी गई। पंजाबियों ने सांप्रदायिक मतभेदों को अलग करके अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर करने पर जो़र दिया।"
वहीं खालिस्तान आंदोलन के दौरान पंजाब के डीजीपी रहे इज़हार आलम ने एनडीटीवी ख़बर से बातचीत में कहा कि खालिस्तान आंदोलन के दौरान हुए हमले, सोमवार की वारदात की तरह योजनाबद्ध नहीं होते थे। इस हमले को पंजाब-विशेष से जोड़कर देखना एकदम गलत होगा। ये किसी ऐसे आंतकवादी गुट का उठाया कदम हो सकता है जो अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने के लिए पंजाब क्या कहीं पर भी हमला कर सकता था।अस्सी के दशक को याद करते हुए आलम कहते हैं कि उस वक्त हालात बुरे थे लेकिन हम सबको यकीन था कि इससे बाहर निकला जा सकता है।
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