जीएसएलवी-डी5
                                                                                                                        इसरो अपने ड्रीम प्रोजेक्ट जीएसएलवी-डी5 को श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर चुका था, लेकिन अब इसके प्रक्षेपण को टाल दिया गया है। पहले यह शाम 4.50 बजे पर भारत में ही बने क्राइजोनिक इंजन की मदद से इसे अंतरिक्ष में स्थापित किया जाना 
                                            
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                                                                                हैदराबाद: 
                                        अंतरिक्ष विज्ञान की दिशा में भारत सोमवार को एक अहम कदम रखने की तैयारी कर रहा है। इसरो अपने ड्रीम प्रोजेक्ट जीएसएलवी-डी5 को श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर चुका था, लेकिन अब इसके प्रक्षेपण को टाल दिया गया है। पहले यह शाम 4.50 बजे पर भारत में ही बने क्राइजोनिक इंजन की मदद से इसे अंतरिक्ष में स्थापित किया जाना था। इसकी उलटी गिनती फिलहाल रोक दी गई है।
सूत्र बता रहे हैं कि यान में कुछ लीकेज देखा गया है। इसे दुरुस्त करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
आज के अभियान में जीएसएलवी-डी5 की मदद से करीब 2000 किलो के सेटेलाइट जीएसटी 14 को अंतरिक्ष में स्थापित करने की कोशिश की जा रही थी।
जीएसटी 14 को भारत में संचार माध्यमों को प्रगति के लिए काफी अहम माना जा रहा है। इसरो के इस अभियान की सफलता के साथ ही भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा, जो अपनी इस तकनीक का इस्तेमाल व्यावसायिक तौर पर कर पाएगा। इसरो का आज का अभियान इसलिए भी खास है कि तीन साल पहले इस तरह की कोशिश दो बार नाकाम हो चुकी है।
                                                                        
                                    
                                सूत्र बता रहे हैं कि यान में कुछ लीकेज देखा गया है। इसे दुरुस्त करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
आज के अभियान में जीएसएलवी-डी5 की मदद से करीब 2000 किलो के सेटेलाइट जीएसटी 14 को अंतरिक्ष में स्थापित करने की कोशिश की जा रही थी।
जीएसटी 14 को भारत में संचार माध्यमों को प्रगति के लिए काफी अहम माना जा रहा है। इसरो के इस अभियान की सफलता के साथ ही भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा, जो अपनी इस तकनीक का इस्तेमाल व्यावसायिक तौर पर कर पाएगा। इसरो का आज का अभियान इसलिए भी खास है कि तीन साल पहले इस तरह की कोशिश दो बार नाकाम हो चुकी है।
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