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सरकार ने पहली बार राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार कानून के दायरे से बाहर रखने के अपने प्रस्ताव पर तैयार किए गए ‘गोपनीय’ कैबिनेट नोट को जनता के सामने ऑनलाइन पेश कर दिया है।
भाजपा, कांग्रेस, राकांपा, माकपा, भाकपा और बसपा समेत छह राजनीतिक दलों को इस पारदर्शी कानून के दायरे के भीतर लाने के केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले के बाद 23 जुलाई को तैयार किए गए नोट को कार्मिक मंत्रालय की वेबसाइट पर डाला गया है।
इसमें कहा गया है, ‘आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन की प्रक्रिया के समय, इसकी कभी कल्पना ही नहीं की गई या राजनीतिक दलों को इसके दायरे में लाने पर विचार ही नहीं किया गया। यदि राजनीतिक दलों को आरटीआई अधिनियम के तहत लोक प्रशासन माना जाएगा तो इससे उनका अंदरूनी कामकाज बाधित होगा।’
नोट कहता है, ‘इससे आगे, ऐसी आशंका है कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी दुर्भावना के साथ राजनीतिक दलों के केंद्रीय जन सूचना अधिकारियों के पास आरटीआई आवेदन दाखिल करेंगे जिससे उनका राजनीतिक कामकाज बुरी तरह प्रभावित होगा।’
सीआईसी ने अपने तीन जून के आदेश में कहा था कि छह राजनीतिक दल लोक प्रशासन हैं और आरटीआई अधिनियम के दायरे में आते हैं। सीआईसी के इस आदेश की राजनीतिक दलों, विशेष रूप से कांग्रेस की ओर से तीखी प्रतिक्रिया हुई थी जिसे इस पारदर्शी कानून को लाने का श्रेय जाता है।
कार्मिक मंत्रालय के नोट के आधार पर केंद्रीय कैबिनेट ने पिछले माह आरटीआई अधिनियम में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की थी। सूचना का अधिकार (संशोधन)) विधेयक 2013, 12 अगस्त को कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री वी नारायणसामी ने लोकसभा में पेश किया था।
हालांकि इसे व्यापक विचार विमर्श के लिए राज्यसभा सदस्य शांताराम नाइक की अध्यक्षता वाली कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी संसद की स्थाई समिति को भेज दिया गया था।
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