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This Article is From Nov 01, 2014

दिल्ली में विधानसभा उपचुनाव के नतीजों पर टिका सरकार बनाने का दांव

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

बीजेपी को इस 25 नवंबर को हो रहे तीन विधानसभा सीटों के उपचुनाव से खासी उम्मीदें हैं। लेकिन इस उपचुनाव को लड़ने के लिए किसी भी पार्टी का कोई भी उम्मीदवार ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है।

इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि नामांकन की तारीख के पांच दिन बाद भी किसी उम्मीदवार ने अपना नामांकन नहीं भरा है। बीजेपी अपने उम्मीदवारों की लिस्ट तीन तारीख को और कांग्रेस अपनी लिस्ट रविवार देर शाम तक निकाल सकती है।
हालांकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के पास इस चुनाव में खोने को कुछ नहीं है। लेकिन उपचुनाव सभी पार्टियों की लोकप्रियता का लिटमस टेस्ट जरूर साबित होगा।

बीजेपी के पास ये तीनों ही सीटें थी, इसलिए अगर कहीं चुनाव में कोई बड़ा उलट फेर होता है तो उससे दिल्ली बीजेपी की
साख पर धक्का जरूर लगेगा। इसीलिए बीजेपी इस उपचुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकना चाहती है।

दिल्ली बीजेपी के प्रभारी प्रभात झा कहते हैं कि उन्हें अब चिड़ियां की आंख दिख रही है। यानि ये चुनाव पूरी ताकत से लड़ा जाएगा।
सूत्रों की माने तो मेहरौली विधानसभा से खुद प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय, तुगलकाबाद से सांसद रमेश बिधूड़ी अपने भतीजे विक्रम बिधूड़ी और कृष्णा नगर से पूर्व मेयर कंवर सेन और कुलदीप चहल का नाम भी चर्चा में है।

इस उपचुनाव में कृष्णानगर सीट की खासी अहमियत है क्योंकि यहां से खुद स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्द्धन विधायक रहे चुके हैं।
इसी के चलते डॉक्टर हर्षवर्द्धन के विधानसभा में कांग्रेस अपने दमदार नेता और डॉक्टर एके वालिया को उतारनी चाहती है।
हालांकि डॉक्टर एके वालिया अंदरखाते अपनी लक्ष्मी नगर विधानसभा सीट छोड़कर कृष्णानगर से चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं। लेकिन कांग्रेस का एक धड़ा उन्हें चुनाव लड़वाकर उस इलाके में मजबूत चुनौती देना चाहता है।

उपचुनाव के नतीजे पर टिकी है दिल्ली सरकार की संभावना
बीजेपी के नेता इस बात के संकेत देना नहीं भूलते हैं कि इन तीनों ही विधानसभा कृष्णा नगर, तुगलकाबाद और मेहरौली से चुनाव जीतती है, तो उसके पास दिल्ली विधानसभा में 32 सीटें हो जाएगी।

आम आदमी पार्टी से अलग हुए बिन्नी और निर्दलीय रामवीर शौकीन अगर बीजेपी का समर्थन करते हैं, तब भी उसे दो सीटों की जरूरत होगी।

यह नंबर वह कहां से लाएगी... इस बात का बीजेपी के पास कोई जवाब नहीं है, लेकिन राजनीति संभावनाओं का खेल है और उसी संभावना का सहारा लेकर बीजेपी सरकार बनाने और चुनाव में जाने की अजीब दुविधा में खुद फंसी है और दूसरी पार्टियों को फंसा रही है।

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