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This Article is From Nov 23, 2021

चुनावी वादे पर आधारित सरकारी योजना नहीं है संवैधानिक रूप से संदिग्ध: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने ने तमिलनाडु की तत्कालीन AIDMK सरकार की योजना को सही ठहराते हुए कहा कि अगर चुनावी वादे पर कोई सरकारी योजना है तो वो संवैधानिक रूप से संदिग्ध नहीं मानी जाएगी. संविधान की रूपरेखा के भीतर ही योजना को संदिग्ध माना जा सकता है.

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चुनावी वादे पर आधारित सरकारी योजना नहीं है संवैधानिक रूप से संदिग्ध: सुप्रीम कोर्ट
चुनावी वादे पर आधारित सरकारी योजना नहीं है संवैधानिक रूप से संदिग्ध.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु की तत्कालीन AIDMK सरकार की योजना को सही ठहराते हुए कहा कि अगर चुनावी वादे पर कोई सरकारी योजना है तो वो संवैधानिक रूप से संदिग्ध नहीं मानी जाएगी. संविधान की रूपरेखा के भीतर ही योजना को संदिग्ध माना जा सकता है. कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट का योजना को अंसवैधानिक ठहराने का फैसला भी रद्द कर दिया. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस ए एस बोपन्ना की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी सरकारी योजना को केवल इसलिए संवैधानिक रूप से संदिग्ध नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि यह एक चुनावी वादे पर आधारित है. किसी योजना को केवल संविधान की रूपरेखा के भीतर ही संदिग्ध माना जा सकता है, भले ही इस योजना को किसी भी इरादे से पेश किया गया हो.

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सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में AIDMK द्वारा सरकार में रहते हुए छोटे और सीमांत किसानों के लिए कर्ज माफी योजना को सही ठहराया और मद्रास हाईकोर्ट का योजना को रद्द करने का फैसला रद्द किया. अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि उच्च न्यायालय का विचार था कि चूंकि यह योजना चुनावी वादे के अनुसरण में थी, इसलिए यह संवैधानिक रूप से संदेहास्पद है. यह विचार इस धारणा पर बनाया गया था कि चुनावी वादा किए जाने से पहले कोई अध्ययन नहीं किया गया होगा. यह स्थापित कानून है कि तमिलनाडु राज्य द्वारा प्रस्तावित योजना संविधान के खिलाफ होती तो ये रद्द की जा सकती थी. हाईकोर्ट ने अन्यथा रोक लगाने में गलती की है. लिहाजा मद्रास उच्च न्यायालय के मदुरै खंडपीठ के 4 अप्रैल 2017 के फैसले को रद्द किया जाता है. 

सुप्रीम कोर्ट ने छोटे और सीमांत किसानों का वर्गीकरण भी किया है. ये केवल छोटे और सीमांत किसान दो कारणों से उचित हैं: (i) सूखा और बाढ़ जैसे संकट के कारण छोटे किसानों को पूंजी और प्रौद्योगिकी के अभाव के कारण बड़े किसानों की तुलना में ज्यादा नुकसान होता है (ii) छोटे और सीमांत किसान आर्थिक रूप से समाज में कमजोर वर्ग के हैं. इसलिए, ऋण माफी योजना ग्रामीण आबादी के कमजोर वर्ग के लिए बनाई गई है. योजना से समाज में वास्तविक सामाजिक समानता लाने और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के उत्थान का प्रयास किया गया है. न्यायोचित है कि योजना का लाभ केवल एक निर्दिष्ट वर्ग को प्रदान किया जाए. छोटे और सीमांत किसान अपने आप में एक वर्ग बनाते हैं.

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दरअसल 2017 मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने AIDMK सरकार के उस फैसले को रद्द कर दिया था जिसने छोटे और सीमांत किसानों को ऋण माफी दी थी. हाईकोर्ट ने केवल छोटे और सीमांत किसानों को ऋण माफी के अनुदान को मनमाना बताया था और सरकार को सभी किसानों को समान लाभ देने का निर्देश दिया चाहे उसके पास कितनी भी खेती की जमीन हो. दरअसल तमिलनाडु सरकार ने 2016 में छोटे और सीमांत किसानों को जारी किए गए बकाया फसल ऋण, मध्यम अवधि (कृषि) ऋण और लंबी अवधि (कृषि क्षेत्र) ऋण की छूट देने के लिए 13 मई 2016 "स्कीम" जारी की. इसमें प्रावधान किया गया कि किसानों को छोटे और सीमांत के रूप में वर्गीकृत करने के लिए, कृषि ऋण की स्वीकृति के समय भूमि रजिस्टर और ऋण रजिस्टर में वर्णित भूमि की सीमा को लिया जाएगा.
  
जहां तक ​​'छोटे किसान' और 'सीमांत किसान' की परिभाषा का सवाल है, यह प्रावधान  किया गया कि 'छोटे किसान' का मतलब वह किसान है जिसके पास 2.5 एकड़ से लेकर 5 एकड़ तक की जमीन है. 'सीमांत किसान' का मतलब वह किसान है जिसके पास 2.5 एकड़ तक की जमीन है. इसके बाद, 1 जुलाई 2016 को सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार द्वारा एक परिपत्र जारी किया गया जिसमें योजना के कार्यान्वयन के लिए और दिशानिर्देश दिए गए.  इस योजना को असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी गई और सभी किसानों के लिए ऋण माफी प्रदान करने के लिए दिशा-निर्देश मांगा गया चाहे जोत की सीमा कुछ भी हो.

याचिका में ये भी कहा गया कि AIDMK ने चुनावों में ये वादा किया था कि वो छोटे और सीमांत किसानों के लोन माफ करेगी. हाईकोर्ट ने ये कहते हुए योजना को रद्द कर दिया कि भूमि माफी योजना से 'अन्य किसानों' जिनके पास 5 एकड़ से अधिक भूमि है, का बहिष्कार भेदभावपूर्ण और समानता के अधिकार का उल्लंघन है. हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि इस योजना को किसानों सहित सभी किसानों तक बढ़ाया जाए, जिनके पास खेती की जमीन 5 एकड़ से अधिक है, हालांकि 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी थी.

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