सर्वोच्च न्यायालय से 'पिंजड़े में बंद तोता' की उपमा पा चुके केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सरकार आसानी से आजादी देने के पक्ष में नहीं दिख रही है। देश की प्रमुख जांच एजेंसी ने सरकार से दो सुविधाएं प्रदान किए जाने की मांग अदालत में रखी, जिसका सरकार के वकील ने पुरजोर विरोध किया।
सीबीआई ने कोयला ब्लॉक आवंटन मामले की सुनवाई कर रही सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के सामने अपनी दलील में कहा था कि उसके निदेशक को सरकार के सचिव के बराबर पदेन अधिकार निहित हो ताकि नौकराशाही के जाल में उलझे बगैर निदेशक कार्मिक मंत्रालय से सीधे संपर्क साध सकें। शीर्ष अदालत ने मंगलवार को सरकार से सीबीआई की दलीलों पर अपना पक्ष रखने के लिए कहा।
अदालत ने सरकार से सीबीआई की उस दलील पर अपनी स्थिति साफ करने के लिए कहा, जिसमें एजेंसी ने अदालतों के सामने उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए स्वतंत्र वकील रखने का अधिकार जांच एजेंसी के निदेशक को दिए जाने की मांग की थी।
सरकार की ओर से पैरवी करते हुए सोलिसीटर जनरल मोहन पराशरन ने सीबीआई की दोनों दलीलों का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कहा, "यह प्रशासनिक भावना के विरुद्ध होगा..इससे गलत संकेत जाएगा... इसमें शक्ति संतुलन बनाए रखा गया है। सीबीआई को ढेर सारी शक्तियां प्रदान की गई हैं।"
सीबीआई ने सरकार के दावों का विरोध किया। सीबीआई की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अमरेंद्र शरण ने अदालत से कहा, "हम अपरिमित शक्तियों की बात नहीं कर रहे हैं। हम सरकार के प्रति जवाबदेह हैं। यह लालफीताशाही की पुरानी धारणा है। बड़ी संख्या में नौकरशाही का नियंत्रण रहेगा तो उससे संचालन क्षमता में वृद्धि होगी।"
शरण के यह कहने पर कि देश के सभी राजनीतिक संघटक सीबीआई पर नियंत्रण की इच्छा रखते हैं, न्यायूर्ति आरएम लोढ़ा ने कहा, "इस मोर्चे पर सभी राजनीतिक दलों में आम राय है।"
ज्ञात हो कि इसी वर्ष मई महीने में कोयला ब्लॉक आवंटन मामले पर सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायाल ने अदालत में पेश होने से पहले स्थिति रिपोर्ट की मंत्रियों और नौकरशाहों द्वारा 'छानबीन' किए जाने पर नाराजगी जताई थी और सीबीआई को 'पिंजड़े में बंद तोता जो अपने मालिक की भाषा बोलता है' कहा था।
अदालत ने सीबीआई के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप पर ऐतराज जताते हुए सरकार से जांच एजेंसी को स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए कहा था और कहा था कि यदि सरकार इसमें चूकती है तो अदालत यह काम करेगी।
उल्लेखनीय है कि अदालत के कड़े रुख के कारण केंद्र सरकार के तत्कालीन कानून मंत्री अश्विनी कुमार को कोयला ब्लॉक आवंटन जांच पर स्थिति रिपोर्ट में 'संपादन' करने के कारण पद से त्यागपत्र देना पड़ा था।
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