पीएम नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
दिल्ली को रोहतक से जोड़ने वाले करीब 64 किमी लंबे हाई-वे प्रोजेक्ट को पूरा करने का काम पांच साल देरी से चल रहा है और तकनीकी तौर पर आज भी तैयार नहीं हो पाया है। एनडीटीवी ने जब इस प्रोजेक्ट का जायज़ा लिया तो पता चला कि इस प्रोजेक्ट को 2010 में पूरा किया जाना चाहिये था लेकिन पांच साल की देरी के बाद भी ये पूरी तरह से ऑपरेशनल नहीं हो पाया है।
इस हाई-वे को तैयार करने वाली कंपनी एरा ग्रुप के डायरेक्टर आलोक खन्ना कहते हैं, 'सबसे बड़ा कारण ज़मीन अधिग्रहण में देरी है। NHAI ने हमें समय पर ज़मीन नहीं दिलाई। फिर वेस्टर्न रेलवे ने रेलवे ओवरब्रिज बनाने के लिए 10-12 करोड़ का रखरखाव शुल्क मांगा, इस तरह की अड़चनों को दूर करने के लिए PMO को हस्तक्षेप करना चाहिये।
इस पांच साल की देरी की वजह से बनाने वाली कंपनी पर पैसे का बोझ तीन गुना तक बढ़ गया। मुश्किल ये है कि इस नए दिल्ली-रोहतक हाई-वे पर तीन साल से गाड़ियां चल रही हैं लेकिन कंपनी टोल बूथ करीब ढ़ाई साल पहले ही तैयार होने के बावजूद इन गाड़ियों से टोल कलेक्ट नहीं कर पा रही है क्योंकि NHAI ने अभी तक टोल वसूलने का हक़ नहीं दिया है। एरा ग्रुप के सीनियर मैनेजर जी.के. सिंह कहते हैं, 'हाई-वे तकनीकि तौर पर तैयार नहीं होने की वजह से NHAI हमें टोल कलेक्ट करने की इज़ाज़त नहीं दे रही है। इसकी वजह से हमें 40 लाख का रोज़ नुकसान हो रहा है।'
हालात लगभग हर तरफ ऐसे ही हैं। सांख्यिकी मंत्रालय की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक सड़क-परिवहन सेक्टर में 133 में से 99 प्रोजेक्ट्स समय से पीछे चल रहे हैं। दरअसल सवाल सभी सेन्ट्रल सेक्टर प्रोजेक्ट्स को लेकर उठ रहे हैं। फिलहाल देश में कुल 758 सेन्ट्रल सेक्टर प्रोजेक्टेस चल रहे हैं जिनमें से 323 प्रोजेक्ट तय समय से पीछे चल रहे हैं। यानी 40 फीसदी से ज़्यादा प्रोजेक्ट समय पर लागू नहीं हो पाए।
नेशनल हाइवेज़ बिल्डर्स फेडरेशन के डायरेक्टर जनरल एम मुरली ने एनडीटीवी से कहा, 'अलग-अलग मंत्रालयों में आपसी मतभेद की वजह से मंज़ूरी मिलने में देरी होती है। सरकार को एक एकल खिड़की सिस्टम तैयार करना चाहिए जिससे अलग-अलग विभागों से मंज़ूरी मिलने में देरी ना हो।'
बात हमेशा से कामकाज के तौर तरीके में बदलाव लाने की होती रही है पर सवाल है कि सरकार के अपने ही मंत्रालयों में तालमेल कब बेहतर होगा।
इस हाई-वे को तैयार करने वाली कंपनी एरा ग्रुप के डायरेक्टर आलोक खन्ना कहते हैं, 'सबसे बड़ा कारण ज़मीन अधिग्रहण में देरी है। NHAI ने हमें समय पर ज़मीन नहीं दिलाई। फिर वेस्टर्न रेलवे ने रेलवे ओवरब्रिज बनाने के लिए 10-12 करोड़ का रखरखाव शुल्क मांगा, इस तरह की अड़चनों को दूर करने के लिए PMO को हस्तक्षेप करना चाहिये।
इस पांच साल की देरी की वजह से बनाने वाली कंपनी पर पैसे का बोझ तीन गुना तक बढ़ गया। मुश्किल ये है कि इस नए दिल्ली-रोहतक हाई-वे पर तीन साल से गाड़ियां चल रही हैं लेकिन कंपनी टोल बूथ करीब ढ़ाई साल पहले ही तैयार होने के बावजूद इन गाड़ियों से टोल कलेक्ट नहीं कर पा रही है क्योंकि NHAI ने अभी तक टोल वसूलने का हक़ नहीं दिया है। एरा ग्रुप के सीनियर मैनेजर जी.के. सिंह कहते हैं, 'हाई-वे तकनीकि तौर पर तैयार नहीं होने की वजह से NHAI हमें टोल कलेक्ट करने की इज़ाज़त नहीं दे रही है। इसकी वजह से हमें 40 लाख का रोज़ नुकसान हो रहा है।'
हालात लगभग हर तरफ ऐसे ही हैं। सांख्यिकी मंत्रालय की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक सड़क-परिवहन सेक्टर में 133 में से 99 प्रोजेक्ट्स समय से पीछे चल रहे हैं। दरअसल सवाल सभी सेन्ट्रल सेक्टर प्रोजेक्ट्स को लेकर उठ रहे हैं। फिलहाल देश में कुल 758 सेन्ट्रल सेक्टर प्रोजेक्टेस चल रहे हैं जिनमें से 323 प्रोजेक्ट तय समय से पीछे चल रहे हैं। यानी 40 फीसदी से ज़्यादा प्रोजेक्ट समय पर लागू नहीं हो पाए।
नेशनल हाइवेज़ बिल्डर्स फेडरेशन के डायरेक्टर जनरल एम मुरली ने एनडीटीवी से कहा, 'अलग-अलग मंत्रालयों में आपसी मतभेद की वजह से मंज़ूरी मिलने में देरी होती है। सरकार को एक एकल खिड़की सिस्टम तैयार करना चाहिए जिससे अलग-अलग विभागों से मंज़ूरी मिलने में देरी ना हो।'
बात हमेशा से कामकाज के तौर तरीके में बदलाव लाने की होती रही है पर सवाल है कि सरकार के अपने ही मंत्रालयों में तालमेल कब बेहतर होगा।
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