हैदराबाद:
तेलंगाना के मंदिरों में पुजारियों ने सत्ता में बैठे लोगों तक अपनी फरियाद पहुंचाने के लिए ईश्वर की प्राथना रोक दी है। उन्हें उम्मीद है कि ऐसा करने से वेतन बढ़ाने की उनकी फरियाद उन ताकतों की कानों तक पहुंचेंगी, जो राज्य में हुकूमत कर रही हैं।
राज्य के करीब 6000 से अधिक पुजारी काला पट्टा बांध कर, बाइक रैली निकाल कर उनका वेतन राज्य के दूसरे कर्मचारियों जितना करने की मांग कर रहे हैं।
राज्य में धार्मिक अनुदान विभाग के तहत क़रीब 12000 मंदिर हैं। पुजारी कहते हैं कि उन्हें मनमाने ढंग से वेतन दिया जाता है। उनका कहना है कि नियमित कर्मचारियों को करीब 20,000 रुपये का मासिक वेतन मिलता है, जबकि उन्हें हर महीने मात्र 3,000 से 5,000 रुपये ही दिए जाते हैं।
राज्य में गुरुवार से ही, करीब 2000 बड़ें और 10,000 मंदिर दिन के ज्यादातर समय बंद हैं। उनके गर्भगृह भी बहुत कम समय के लिए खोले जा रहे हैं।
एक पुजारी कहते हैं, 'हम सुबह की पूजा कर रहे हैं, लेकिन अर्चना सेवा और आरती पूजा नहीं। ये सब अभी बंद हैं।'
तेंलगाना अर्चक संघ के अध्यक्ष रंगा रेड्डी कहते हैं, 'अगर ऐसे ही हालात बने रहे तो कोई अर्चक के तौर पर काम करने को तैयार नहीं होगा। ऐसे में फिर मंदिरों का अस्तित्व कैसे बचेगा?'
वक़्त किसी का इंतज़ार नहीं करता, लेकिन वह कहते हैं कि जब तक पुजारियों की बात राजनीति के भगवान सुन नहीं लेते, तब तक ईश्वर को धीरज धरना होगा।
राज्य के करीब 6000 से अधिक पुजारी काला पट्टा बांध कर, बाइक रैली निकाल कर उनका वेतन राज्य के दूसरे कर्मचारियों जितना करने की मांग कर रहे हैं।
राज्य में धार्मिक अनुदान विभाग के तहत क़रीब 12000 मंदिर हैं। पुजारी कहते हैं कि उन्हें मनमाने ढंग से वेतन दिया जाता है। उनका कहना है कि नियमित कर्मचारियों को करीब 20,000 रुपये का मासिक वेतन मिलता है, जबकि उन्हें हर महीने मात्र 3,000 से 5,000 रुपये ही दिए जाते हैं।
राज्य में गुरुवार से ही, करीब 2000 बड़ें और 10,000 मंदिर दिन के ज्यादातर समय बंद हैं। उनके गर्भगृह भी बहुत कम समय के लिए खोले जा रहे हैं।
एक पुजारी कहते हैं, 'हम सुबह की पूजा कर रहे हैं, लेकिन अर्चना सेवा और आरती पूजा नहीं। ये सब अभी बंद हैं।'
तेंलगाना अर्चक संघ के अध्यक्ष रंगा रेड्डी कहते हैं, 'अगर ऐसे ही हालात बने रहे तो कोई अर्चक के तौर पर काम करने को तैयार नहीं होगा। ऐसे में फिर मंदिरों का अस्तित्व कैसे बचेगा?'
वक़्त किसी का इंतज़ार नहीं करता, लेकिन वह कहते हैं कि जब तक पुजारियों की बात राजनीति के भगवान सुन नहीं लेते, तब तक ईश्वर को धीरज धरना होगा।
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