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This Article is From Apr 18, 2013

जर्मन बेकरी धमाका : हिमायत बेग को फांसी की सजा

पुणे: पुणे की जर्मन बेकरी धमाका केस में दोषी करार दिए गए हिमायत बेग को अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है। 2010 में हुए इस धमाके में पांच विदेशियों समेत 17 लोगों की मौत हो गई थी। मामले में कुल छह आरोपी थे, जिसमें से पांच अब भी फरार हैं, जबकि छठे गिरफ्तार शख्स को कोर्ट ने सोमवार को दोषी करार दिया था।

सत्र अदालत के न्यायाधीश एन पी धोटे ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि गवाहों पर विचार करते हुए मैं बेग को दोषी करार देता हूं।

बेग को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 435, 474 (जालसाजी), 153 (ए) (धर्म, नस्ल, जन्मस्थान, भाषा के आधार पर विभिन्न वर्गों में वैमनस्य फैलाना और सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों को अंजाम देना) तथा 120 (बी) (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत दोषी ठहराया गया है।

बेग महाराष्ट्र के बीड़ जिले का रहने वाला है। उसे गैरकानूनी गतिविधियां निरोधक कानून और विस्फोटक पदार्थ कानून की विभिन्न धाराओं के तहत भी दोषी ठहराया गया है।

अदालत ने अभियोजन की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि यह पूरी सावधानी से योजना बना कर किया गया हमला था, ताकि जानमाल के अधिकतम नुकसान के जरिये लोगों को आतंकित किया जा सके। इसके अलावा हमले का उद्देश्य निर्वाचित सरकार के प्रति आम लोगों के भरोसे का डिगाना था। अदालत ने अभियोजन के इस आरोप को बरकरार रखा कि इस आतंकवादी हमले की योजना खास तौर पर इस प्रकार बनाई गई थी कि विदेशी नागरिकों को अधिक क्षति हो सके और सुरक्षा के मामले में भारत की छवि खराब हो सके।

लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य डेविड हेडली ने अपने सहयोगी तहव्वुर राणा के खिलाफ अमेरिकी अदालत में सुनवाई के दौरान अपनी गवाही में माना था कि उसने पुणे की लोकप्रिय जर्मन बेकरी की टोह और तस्वीरें ली थीं।

इस मामले में बेग और छह अन्य लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किए गए थे। इस मामले में पांच फरार आरोपी यासिन भटकल, मोहसिन चौधरी, रियाज भटकल, फैयाज कागजी और इकबाल भटकल हैं। जैबुद्दीन अंसारी उर्फ अबू जंदल के खिलाफ अन्य आतंकवादी मामलों में सुनवाई चल रही है, लेकिन उसे जर्मन बेकरी मामले में गिरफ्तार नहीं किया गया है। इस मामले में सभी आरोपी पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा या इंडियन मुजाहिद्दीन के सदस्य हैं।

महाराष्ट्र एटीएस ने बेग को 7 सितंबर 2010 को गिरफ्तार किया था। वह बीड जिले में उदगीर में साइबर कैफे चलाता था। अभियोजन के अनुसार जर्मन बेकरी में बम विस्फोट की साजिश मार्च 2008 में कोलंबो में रची गई थी, जब जैबुद्दीन अंसारी और फैयाज कागजी से मिलने कोलंबो गया था।

यह भी आरोप था कि बेग को विस्फोटक खरीदने और पाकिस्तान में आतंकवादी प्रशिक्षण लेने के इच्छुक मुस्लिम युवकों की यात्रा के लिए पैसे दिए गए थे।

अभियोजन के अनुसार, कोलंबो से लौटने के बाद बेग बीड जिले के उदगीर में रहने लगा। यहीं उसने एक साइबर कैफे शुरू की। उस पर आरोप है कि 25 अलग अलग ईमेल आईडी के जरिये वह फरार आरोपियों के संपर्क में था।

षड्यंत्र में शामिल अन्य आरोपियों के निर्देश पर बेग 31 जनवरी 2010 को पुणे गया था और लक्ष्य की टोह ली थी और विस्फोटक लगाने के लिए समय तय किया था। यासिन और बेग ने जर्मन बेकरी में एक टेबल के नीचे विस्फोटक लगाकर हमले को अंजाम दिया था।

सुनवाई के दौरान अभियोजन ने 103 गवाहों की जांच की। बचाव पक्ष ने अभियोजन के आरोपों को खारिज कर दिया और कहा कि बेग को मामले में फंसाया गया है तथा हमले के दिन आरोपी औरंगाबाद में था।

इस बीच, बेग के वकील अब्दुल रहमान ने कहा कि वह फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे।

फैसले के बाद उन्होंने संवाददाताओं से कहा,  ‘निश्चित रूप से, मैं उच्च न्यायालय में अपील करने जा रहा हूं। मुझे पूरा भरोसा है कि उच्च न्यायालय से मुझे न्याय मिलेगा।’

रहमान ने कहा कि बेग के साथ न्याय नहीं किया गया है, क्योंकि विस्फोट के समय न तो वह पुणे में था और न ही वह बम रखने के लिए जर्मन बेकरी गया था। उन्होंने कहा कि इस मामले के मुख्य षड्यंत्रकारियों को गिरफ्तार नहीं किया गया और अबू जंदल को भी अदालत नहीं लाया गया, जिसका नाम आरोप पत्र में है।

रहमान ने कहा,  पुलिस ने जंदल को मामले में एक षड्यंत्रकारी बताया, लेकिन उसे अदालत नहीं लाया गया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। षड्यंत्र रचने के लिए एक से अधिक लोगों की जरूरत पड़ती है। उन्होंने कहा, पुलिस का यह आरोप है कि फैयाज कागजी और मोहसिन चौधरी ने श्रीलंका में साजिश रची थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोई भी पुलिस अधिकारी या जांच अधिकारी यह पता लगाने के लिए श्रीलंका नहीं गया कि साजिश किस जगह पर रची गई थी।

(इनपुट एजेंसियों से भी)

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