वित्तीय विवाद और अवैध फोन टैपिंग के आरोपों का सामना करने वाले छत्तीसगढ़ के पुलिस अधिकारी ने राज्य पुलिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की है जिसमें वर्तमान राजनीतिक नेताओं के इशारे पर शिकार और उत्पीड़न का आरोप लगाया गया है. इस याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार से पूछा कि अफसर एवं परिवारवालों के फोन टेप क्यों हो रहे हैं? कोर्ट ने कहा कि उसे फोन टेप की ज्यादा चिंता है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कहा कि फिलहाल अफसर के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं होगी. इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को चार नवंबर तक जवाब तलब किया है.
वहीं छत्तीसगढ़ की ओर से मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि उनके पास कोई निर्देश नहीं हैं लेकिन आगे से ऐसा नहीं होगा. उन्होंने कहा कि अफसर के खिलाफ दो मामलों में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है और ट्रायल चल रहा है. वो पहले हाईकोर्ट गए और अब इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट चले आए हैं.
वित्तीय विवाद और अवैध फोन टैपिंग के आरोपों का सामना करने वाले छत्तीसगढ़ के पुलिस अधिकारी ने राज्य पुलिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की है जिसमें वर्तमान राजनीतिक नेताओं के इशारे पर शिकार और उत्पीड़न का आरोप लगाया गया है. मुकेश गुप्ता, जो बीजेपी सरकार में राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) के पुलिस महानिदेशक और आर्थिक अपराध शाखा (EOW) के मुखिया थे. उन्हें इस साल सितंबर में हटा दिया गया था. मुकेश गुप्ता ने यह भी आरोप लगाया कि राज्य पुलिस उनकी दो बेटियों सहित पूरे परिवार की अवैध रूप से फोन टैप कर रही है.
ज्ञात हो कि पिछले महीने, ADG रैंक के लिए मुकेश गुप्ता को एक ही रैंक के दो अन्य पुलिस अधिकारियों के साथ पदावनत किया गया था. मुकेश गुप्ता ने रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के दौरान खुफिया विंग के आईजीपी का पद भी संभाला था. इस साल फरवरी में मुकेश गुप्ता के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गईं, जिसमें उन्होंने अवैध फोन टैपिंग, आधिकारिक दस्तावेजों से फर्जीवाड़ा करने और सबूत मिटाने का आदेश देकर राज्य की शक्ति का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था.
दर्ज एफआईआर के अनुसार, ये तब हुआ जब वह एसीबी और ईओडब्ल्यू के प्रमुख थे और छत्तीसगढ़ पीडीएस घोटाले की जांच कर रहे थे. तीसरे मामले में जो तीन महीने बाद दर्ज हुआ, मुकेश गुप्ता पर दुर्ग जिले के तत्कालीन एसपी के रूप में अपने प्रभाव का उपयोग कर कथित तौर पर भिलाई विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण में आवंटित भूमि प्राप्त करने के लिए गलत दस्तावेजों का उपयोग करने का आरोप लगाया गया था.
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