देश में तरक्की की रफ्तार तेज़ करने के चक्कर में मोदी सरकार के दो मंत्रालयों में ठन गई है। एक ओर पर्यावरण मंत्रालय कहता है कि वह डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स के रास्ते से ‘रोड ब्लॉक’ हटाने की कोशिश कर रहा है। वहीं, दूसरी ओर आदिवासी मामलों के मंत्रालय ने कड़े शब्दों में कहा है कि पर्यावरण मंत्रालय उसके (आदिवासी मामले मंत्रालय के) अधिकारों में अतिक्रमण कर रहा है। आदिवासी मामलों के मंत्रालय ने पर्यावरण मंत्रालय पर आरोप लगाया है कि वह आदिवासियों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए वन अधिकार कानून (एफआरए) की अनदेखी ही नहीं कर रहा, बल्कि उसे कमज़ोर भी कर रहा है।
आदिवासी मामलों के मंत्रालय के सचिव हृषिकेष पांडा ने पर्यावरण सचिव अशोक लवासा को लिखी चिट्ठी में कड़े शब्दों में कहा है कि एफआरए को लागू कराना और उसके पालन पर नज़र रखना आदिवासी मामलों के मंत्रालय का काम है, पर्यावरण मंत्रालय का नहीं। चिट्ठी में पांडा ने लिखा है कि इसके बावजूद पर्यावरण मंत्रालय ने पिछली 28 अक्टूबर को एक आदेश जारी कर एफआरए को कमज़ोर करने की कोशिश की है जो गैर-कानूनी है।
गौरतलब है कि पर्यावरण मंत्रालय की ओऱ से अक्टूबर में जारी किए गए सर्कुलर में सड़क, रेल और दूसरे एकरेखीय प्रोजेक्ट और माइनिंग के कुछ मामलों में रियायत देने की बात कही गई है। इसे आदिवासियों के लिए बने वन अधिकार कानून (एफआरए) की अनदेखी माना जा रहा है जिसके तहत वन भूमि में प्रोजेक्ट के लिए आदिवासियों की सहमति ज़रूरी है।
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