नई दिल्ली:
देश के नए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई चौथा विश्वयुद्ध है और यह विश्वयुद्ध इसलिए है, क्योंकि यह बला अपना शैतानी सिर दुनिया में कहीं भी उठा सकती है।
प्रणब ने संसद के केंद्रीय कक्ष में भारत के नए राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद कहा, ...अभी युद्ध का युग समाप्त नहीं हुआ है। हम चौथे विश्वयुद्ध के बीच में हैं। तीसरा विश्वयुद्ध शीतयुद्ध था, परंतु 1990 के दशक की शुरुआत में जब यह युद्ध समाप्त हुआ, उस समय तक एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में बहुत गर्म माहौल था। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई चौथा विश्वयुद्ध है और यह विश्वयुद्ध इसलिए है, क्योंकि यह बुराई अपना शैतानी सिर दुनिया में कहीं भी उठा सकती है।
भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाड़िया ने प्रणब को राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई। इस दौरान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, एनडीए के कार्यवाहक अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता क्रमश: सुषमा स्वराज और अरुण जेटली, केंद्रीय मंत्री, प्रदेशों के राज्यपाल, राज्यों के मुख्यमंत्री, विभिन्न देशों के भारत स्थित राजदूत, सांसद और अन्य गणमान्य हस्तियां मौजूद थीं।
प्रणब ने कहा, दूसरे देशों को इसकी (आतंकवाद की) जघन्यता तथा खतरनाक परिणामों के बारे में बाद में पता लगा, जबकि भारत को इस युद्ध का सामना उससे कहीं पहले से करना पड़ रहा है। प्रणब ने कहा कि भारत के लोगों ने घावों का दर्द सहते हुए परिपक्वता का उदाहरण प्रस्तुत किया है। जो हिंसा भड़काते हैं और घृणा फैलाते हैं, उन्हें एक सच्चाई समझनी होगी। वर्षों के युद्ध के मुकाबले शांति के कुछ क्षणों से कहीं अधिक उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है। भारत आत्मसंतुष्ट है और समृद्धि के ऊंचे शिखर पर बैठने की इच्छा से प्रेरित है। यह अपने इस मिशन में आतंकवाद फैलाने वाले खतरनाक लोगों के कारण विचलित नहीं होगा।
काली भव्य अचकन और सफेद झक चूड़ीदार पैजामे में प्रणब मुखर्जी ने जैसे ही शपथ पूरी की, कक्ष में बैठे सभी लोगों ने मेजें थपथपाकर और तालियां बजाकर उनका स्वागत किया। सेना ने उन्हें 21 तोपों की सलामी दी, जिसकी आवाज केंद्रीय कक्ष में साफ सुनाई दे रही थी। बाद में घोड़े पर सवार राष्ट्रपति के अंगरक्षक उन्हें अपनी सुरक्षा में काली लिमोजिन कार में बैठाकर राष्ट्रपति भवन ले गए।
अपने भाषण में राष्ट्रपति ने कहा कि गरीबी के अभिशाप को खत्म करना है और युवाओं के लिए ऐसे अवसर पैदा करने हैं, जिससे वे हमारे भारत को तीव्र गति से आगे लेकर जाएं। भूख से बड़ा कोई अपमान नहीं है। सुविधाओं को धीरे-धीरे नीचे तक पहुंचाने के सिद्धांतों से गरीबों की न्यायसंगत आकांक्षाओं का समाधान नहीं हो सकता। हमें उनका उत्थान करना होगा, जो सबसे गरीब हैं, ताकि गरीबी शब्द आधुनिक भारत के शब्दकोष से मिट जाए।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा विकास वास्तविक लगे, इसके लिए जरूरी है कि हमारे देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को महसूस हो कि वह उभरते भारत की कहानी का एक हिस्सा है। बाद में उनके भाषण का हिन्दी अनुवाद उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने पढ़ा।
प्रणब ने कहा, मेरी राय में शिक्षा वह मंत्र है, जो भारत में अगला स्वर्ण युग ला सकता है। हमारे प्राचीनतम ग्रन्थों में समाज के ढांचे को ज्ञान के स्तंभों पर खड़ा किया गया है। हमारी चुनौती है, ज्ञान को देश के हर एक कोने में पहुंचाकर इसे एक लोकतांत्रिक ताकत में बदलना। भ्रष्टाचार की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कभी-कभी पद का भार व्यक्ति के सपनों पर भारी पड़ जाता है। भ्रष्टाचार एक ऐसी बुराई है, जो देश की मनोदशा में निराशा भर सकती है और इसकी प्रगति को बाधित कर सकती है। हम कुछ लोगों के लालच के कारण अपनी प्रगति की बलि नहीं दे सकते।
भाषण का अंत उन्होंने स्वामी विवेकानंद के सुप्रसिद्ध रूपक से किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत का उदय होगा। शरीर की ताकत से नहीं, बल्कि मन की ताकत से। विध्वंस के ध्वज से नहीं, बल्कि शांति और प्रेम के ध्वज से। अच्छाई की सारी शक्तियों को इकटठा करें। यह न सोचें कि मेरा रंग क्या है...हरा, नीला अथवा लाल, बल्कि सभी रंगों को मिला लें और सफेद रंग की प्रखर चमक पैदा करें, जो प्यार का रंग है। प्रणब ने राष्ट्रपति पद की शपथ अंग्रेजी में ली।
इससे पहले राष्ट्रपति भवन से चलकर निवर्तमान राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और प्रणब का काफिला संसद भवन परिसर पहुंचा। वहां पहुंचने पर कपाड़िया, अंसारी और मीरा कुमार ने उनका स्वागत किया और उन्हें साथ लेकर केंद्रीय कक्ष गए।
प्रणब ने संसद के केंद्रीय कक्ष में भारत के नए राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद कहा, ...अभी युद्ध का युग समाप्त नहीं हुआ है। हम चौथे विश्वयुद्ध के बीच में हैं। तीसरा विश्वयुद्ध शीतयुद्ध था, परंतु 1990 के दशक की शुरुआत में जब यह युद्ध समाप्त हुआ, उस समय तक एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में बहुत गर्म माहौल था। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई चौथा विश्वयुद्ध है और यह विश्वयुद्ध इसलिए है, क्योंकि यह बुराई अपना शैतानी सिर दुनिया में कहीं भी उठा सकती है।
भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाड़िया ने प्रणब को राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई। इस दौरान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, एनडीए के कार्यवाहक अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता क्रमश: सुषमा स्वराज और अरुण जेटली, केंद्रीय मंत्री, प्रदेशों के राज्यपाल, राज्यों के मुख्यमंत्री, विभिन्न देशों के भारत स्थित राजदूत, सांसद और अन्य गणमान्य हस्तियां मौजूद थीं।
प्रणब ने कहा, दूसरे देशों को इसकी (आतंकवाद की) जघन्यता तथा खतरनाक परिणामों के बारे में बाद में पता लगा, जबकि भारत को इस युद्ध का सामना उससे कहीं पहले से करना पड़ रहा है। प्रणब ने कहा कि भारत के लोगों ने घावों का दर्द सहते हुए परिपक्वता का उदाहरण प्रस्तुत किया है। जो हिंसा भड़काते हैं और घृणा फैलाते हैं, उन्हें एक सच्चाई समझनी होगी। वर्षों के युद्ध के मुकाबले शांति के कुछ क्षणों से कहीं अधिक उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है। भारत आत्मसंतुष्ट है और समृद्धि के ऊंचे शिखर पर बैठने की इच्छा से प्रेरित है। यह अपने इस मिशन में आतंकवाद फैलाने वाले खतरनाक लोगों के कारण विचलित नहीं होगा।
काली भव्य अचकन और सफेद झक चूड़ीदार पैजामे में प्रणब मुखर्जी ने जैसे ही शपथ पूरी की, कक्ष में बैठे सभी लोगों ने मेजें थपथपाकर और तालियां बजाकर उनका स्वागत किया। सेना ने उन्हें 21 तोपों की सलामी दी, जिसकी आवाज केंद्रीय कक्ष में साफ सुनाई दे रही थी। बाद में घोड़े पर सवार राष्ट्रपति के अंगरक्षक उन्हें अपनी सुरक्षा में काली लिमोजिन कार में बैठाकर राष्ट्रपति भवन ले गए।
अपने भाषण में राष्ट्रपति ने कहा कि गरीबी के अभिशाप को खत्म करना है और युवाओं के लिए ऐसे अवसर पैदा करने हैं, जिससे वे हमारे भारत को तीव्र गति से आगे लेकर जाएं। भूख से बड़ा कोई अपमान नहीं है। सुविधाओं को धीरे-धीरे नीचे तक पहुंचाने के सिद्धांतों से गरीबों की न्यायसंगत आकांक्षाओं का समाधान नहीं हो सकता। हमें उनका उत्थान करना होगा, जो सबसे गरीब हैं, ताकि गरीबी शब्द आधुनिक भारत के शब्दकोष से मिट जाए।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा विकास वास्तविक लगे, इसके लिए जरूरी है कि हमारे देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को महसूस हो कि वह उभरते भारत की कहानी का एक हिस्सा है। बाद में उनके भाषण का हिन्दी अनुवाद उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने पढ़ा।
प्रणब ने कहा, मेरी राय में शिक्षा वह मंत्र है, जो भारत में अगला स्वर्ण युग ला सकता है। हमारे प्राचीनतम ग्रन्थों में समाज के ढांचे को ज्ञान के स्तंभों पर खड़ा किया गया है। हमारी चुनौती है, ज्ञान को देश के हर एक कोने में पहुंचाकर इसे एक लोकतांत्रिक ताकत में बदलना। भ्रष्टाचार की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कभी-कभी पद का भार व्यक्ति के सपनों पर भारी पड़ जाता है। भ्रष्टाचार एक ऐसी बुराई है, जो देश की मनोदशा में निराशा भर सकती है और इसकी प्रगति को बाधित कर सकती है। हम कुछ लोगों के लालच के कारण अपनी प्रगति की बलि नहीं दे सकते।
भाषण का अंत उन्होंने स्वामी विवेकानंद के सुप्रसिद्ध रूपक से किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत का उदय होगा। शरीर की ताकत से नहीं, बल्कि मन की ताकत से। विध्वंस के ध्वज से नहीं, बल्कि शांति और प्रेम के ध्वज से। अच्छाई की सारी शक्तियों को इकटठा करें। यह न सोचें कि मेरा रंग क्या है...हरा, नीला अथवा लाल, बल्कि सभी रंगों को मिला लें और सफेद रंग की प्रखर चमक पैदा करें, जो प्यार का रंग है। प्रणब ने राष्ट्रपति पद की शपथ अंग्रेजी में ली।
इससे पहले राष्ट्रपति भवन से चलकर निवर्तमान राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और प्रणब का काफिला संसद भवन परिसर पहुंचा। वहां पहुंचने पर कपाड़िया, अंसारी और मीरा कुमार ने उनका स्वागत किया और उन्हें साथ लेकर केंद्रीय कक्ष गए।
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