प्रतीकात्मक तस्वीर
अकोला:
गौवंश हत्या बंदी कानून से महाराष्ट्र के किसान खासे नाराज़ हैं। शनिवार को राज्य के अकोला में किसानों ने बड़ी तादाद में कलेक्टर दफ्तर तक मोर्चा निकाला और सरकार से मांग की कि वह किसानों के लिए बेकार हो चुके उनके बैल उनसे ख़रीदें।
महाराष्ट्र में विपक्षी पार्टियों के साथ सरकार की सहयोगी आरपीआई को भी लगने लगा है कि बीमार बैल, बछड़ों को पालना पहले से ही कर्ज में डूबे किसान के बोझ को और बढ़ा सकता है। आरपीआई नेता रामदास अठावले ने कहा 'गौवंश हत्या बंदी कानून आर्थिक रूप से संगत नहीं है। इससे रोज़गार की समस्या तो पैदा हो ही रही है। बीमार पशुओं को पालना भी मुश्किल हो रहा है। अगर सरकार ने यह कानून वापस नहीं लिया तो हम विरोध करते रहेंगे।
अकोला में किसानों की रैली में नुमाइंदगी करते हुए भारिप बहुजन महासंघ के प्रकाश अंबेडकर ने कहा, 'सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि सरकार ने इन जानवरों की देखभाल के लिए कोई कदम नहीं उठाया है और ये किसानों के लिए बेकार हो चुके हैं। हमारी मांग है कि सरकार इन्हें बाज़ार में तय क़ीमत के मुताबिक ख़रीदे।'
ज़मीन पर हालात भी कुछ ऐसे ही हैं। अकोला के धोडरडी गांव में 45 साल के रामेश्वर घटाले, बेहद परेशान हैं। फसल पहले ही बर्बाद हो चुकी है। ऊपर से बैंक से लिया कर्जा चुकाना है। आठ साल से अपने बैलों से खेतों की जुताई की है, लेकिन अब बैल बूढ़े हो गए हैं। इनकी देखभाल में ही हर महीने 5000 रुपये खर्च हो रहे हैं। रामेश्वर के लिए मुश्किल हालात में बैल की देखभाल बूते से बाहर की बात है। उनका कहना है, 'ये 15,000 में बिक जाता, लेकिन अब इसके 2000 रुपये मिल रहे हैं। अगर मैं इसे बेच देता तो नया बैल ख़रीद सकता था या छोटा-मोटा कर्ज ले लेता... लेकिन अब हालात बेहद मुश्किल हैं।'
हालांकि गौवंश हत्या बंदी कानून को लागू करने वाली बीजेपी का कहना है कि सारे मुद्दों का ध्यान रखा जाएगा, किसानों को परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।
गौवंश हत्या बंदी कानून को लागू करते वक्त सरकार ने गौशाला से लेकर और कई उपायों की बात की थी, लेकिन हक़ीकत में कुछ हुआ नहीं है। ऐसे में मौसम की मार से बेज़ार किसानों को अपने बीमार और बूढ़े जानवर और बोझ सरीखे लगने लगे हैं।
महाराष्ट्र में विपक्षी पार्टियों के साथ सरकार की सहयोगी आरपीआई को भी लगने लगा है कि बीमार बैल, बछड़ों को पालना पहले से ही कर्ज में डूबे किसान के बोझ को और बढ़ा सकता है। आरपीआई नेता रामदास अठावले ने कहा 'गौवंश हत्या बंदी कानून आर्थिक रूप से संगत नहीं है। इससे रोज़गार की समस्या तो पैदा हो ही रही है। बीमार पशुओं को पालना भी मुश्किल हो रहा है। अगर सरकार ने यह कानून वापस नहीं लिया तो हम विरोध करते रहेंगे।
अकोला में किसानों की रैली में नुमाइंदगी करते हुए भारिप बहुजन महासंघ के प्रकाश अंबेडकर ने कहा, 'सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि सरकार ने इन जानवरों की देखभाल के लिए कोई कदम नहीं उठाया है और ये किसानों के लिए बेकार हो चुके हैं। हमारी मांग है कि सरकार इन्हें बाज़ार में तय क़ीमत के मुताबिक ख़रीदे।'
ज़मीन पर हालात भी कुछ ऐसे ही हैं। अकोला के धोडरडी गांव में 45 साल के रामेश्वर घटाले, बेहद परेशान हैं। फसल पहले ही बर्बाद हो चुकी है। ऊपर से बैंक से लिया कर्जा चुकाना है। आठ साल से अपने बैलों से खेतों की जुताई की है, लेकिन अब बैल बूढ़े हो गए हैं। इनकी देखभाल में ही हर महीने 5000 रुपये खर्च हो रहे हैं। रामेश्वर के लिए मुश्किल हालात में बैल की देखभाल बूते से बाहर की बात है। उनका कहना है, 'ये 15,000 में बिक जाता, लेकिन अब इसके 2000 रुपये मिल रहे हैं। अगर मैं इसे बेच देता तो नया बैल ख़रीद सकता था या छोटा-मोटा कर्ज ले लेता... लेकिन अब हालात बेहद मुश्किल हैं।'
हालांकि गौवंश हत्या बंदी कानून को लागू करने वाली बीजेपी का कहना है कि सारे मुद्दों का ध्यान रखा जाएगा, किसानों को परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।
गौवंश हत्या बंदी कानून को लागू करते वक्त सरकार ने गौशाला से लेकर और कई उपायों की बात की थी, लेकिन हक़ीकत में कुछ हुआ नहीं है। ऐसे में मौसम की मार से बेज़ार किसानों को अपने बीमार और बूढ़े जानवर और बोझ सरीखे लगने लगे हैं।
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