प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
शीर्ष उपभोक्ता अदालत ने बीमा की राशि का दावा करने के लिए फर्जी दस्तावेज सौंपने के कारण एक महिला पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया है. राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने शिकायत को खारिज करने के लिए राज्य आयोग के निर्णय को बरकरार रखा. साथ ही एनसीडीआरसी ने राजस्थान निवासी सुमनबाई रमेश गायकवाड़ को जुर्माने की राशि उसके उपभोक्ता कानूनी सहायता खाते में जमा करने के लिए कहा. पीठासीन सदस्य न्यायमूर्ति अजित भरिहोक की अगुआई वाली पीठ ने कहा कि यह साफ है कि याचिकाकर्ता (सुमनबाई) ने फर्जी दस्तावेज सौंप कर जालसाजी करने की कोशिश की. इसलिए पैनल याचिकाकर्ता पर 50,000 रूपये का जुर्माना लगाती है और उसे यह राशि उपभोक्ता कानूनी सहायता खाते (एनसीडीआरसी) में जमा करने का आदेश दिया जाता है.
शिकायत के अनुसार, सुमनबाई के पति रमेश गायकवाड़ के पास एलआईसी की, पांच पांच लाख रुपये की दो बीमा पालिसी थीं. रमेश की चार सितंबर 2005 को दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. उसकी पत्नी द्वारा किया गया बीमा का दावा इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि रमेश ने अपने स्वास्थ्य के बारे में जानकारी छिपा कर पॉलिसी ली थी. सुमनबाई के वकील ने एनसीडीआरसी में दावा किया कि डॉक्टर की दलील विश्वास योग्य नहीं है. उसने कहा कि गायकवाड़ की मौत के बाद वर्ष 2005 में एलआईसी के सवालों का जवाब देते हुए डॉक्टर ने लिखा कि बीमित व्यक्ति ने वर्ष 2008 में उससे परामर्श किया. इसलिए उसकी दलील भरोसेमंद नहीं है.
बहरहाल, एनसीडीआरसी ने कहा कि यह स्पष्ट है कि सुमनबाई के वकील ने सवालों की फर्जी प्रति पेश की जिसमें उसने संख्या 3 को बदल कर 8 कर दिया और रिकार्ड की फोटोकापी पेश की. एनसीडीआरसी ने कहा कि याचिकाकर्ता ने बीमा कंपनी के साथ जालसाजी की और दो दिसंबर 2005 की तारीख वाली प्रश्नावली की मूल प्रति में संख्या 3 को बदल कर 8 कर दिया जिससे 3 जुलाई 2003 की तारीख बदल कर 8 जुलाई 2003 हो गई. एनसीडीआरसी के अनुसार, दस्तावेज की फोटो प्रति दाखिल की गई.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
शिकायत के अनुसार, सुमनबाई के पति रमेश गायकवाड़ के पास एलआईसी की, पांच पांच लाख रुपये की दो बीमा पालिसी थीं. रमेश की चार सितंबर 2005 को दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. उसकी पत्नी द्वारा किया गया बीमा का दावा इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि रमेश ने अपने स्वास्थ्य के बारे में जानकारी छिपा कर पॉलिसी ली थी. सुमनबाई के वकील ने एनसीडीआरसी में दावा किया कि डॉक्टर की दलील विश्वास योग्य नहीं है. उसने कहा कि गायकवाड़ की मौत के बाद वर्ष 2005 में एलआईसी के सवालों का जवाब देते हुए डॉक्टर ने लिखा कि बीमित व्यक्ति ने वर्ष 2008 में उससे परामर्श किया. इसलिए उसकी दलील भरोसेमंद नहीं है.
बहरहाल, एनसीडीआरसी ने कहा कि यह स्पष्ट है कि सुमनबाई के वकील ने सवालों की फर्जी प्रति पेश की जिसमें उसने संख्या 3 को बदल कर 8 कर दिया और रिकार्ड की फोटोकापी पेश की. एनसीडीआरसी ने कहा कि याचिकाकर्ता ने बीमा कंपनी के साथ जालसाजी की और दो दिसंबर 2005 की तारीख वाली प्रश्नावली की मूल प्रति में संख्या 3 को बदल कर 8 कर दिया जिससे 3 जुलाई 2003 की तारीख बदल कर 8 जुलाई 2003 हो गई. एनसीडीआरसी के अनुसार, दस्तावेज की फोटो प्रति दाखिल की गई.
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