विदेश मंत्री एस जयशंकर (External Affairs Minister S. Jaishankar )और अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन (US Secretary of Defense Lloyd Austin) के बीच शनिवार को करीब एक घंटे तक बातचीत चली. सूत्रों के मुताबिक, इस बातचीत में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक स्थिति और अफगान शांति वार्ता से जुड़े मुद्दों पर गहराई से बातचीत हुई.ऑस्टिन ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी शनिवार सुबह मुलाकात की थी.
सूत्रों का कहना है कि विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत की वर्तमान सुरक्षा चुनौतियों और दीर्घकालिक रणनीतिक आयामों के बारे में बात की.वार्ता में यूरोप और पश्चिम एशिया समेत वैश्विक परिस्थितियों पर भी वैचारिक आदान-प्रदान हुआ.अमेरिकी प्रतिनिधियों ने जापान और पूर्वी एशिया के अन्य देशों के साथ हुई हालिया वार्ता की जानकारी दी.
अफगानिस्तान पर थोड़ा विस्तृत बातचीत हुई. शांति वार्ता और अफगानिस्तान में मौजूदा स्थिति के जमीनी आकलन पर दोनों देशों ने अपना पक्ष रखा. इसके साथ ही अफगानिस्तान में क्षेत्रीय शक्तियों और पड़ोसियों के हितों और चिंताओं को भी साझा किया गया. विदेश मंत्री ने इस मुद्दे पर भारत से संपर्क की बाइडेन प्रशासन की पहल को सराहा.
सूत्रों के मुताबिक, चर्चा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक स्थिति पर केंद्रित रही. दरअसल, चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता के मद्देनजर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभरती स्थिति प्रमुख वैश्विक शक्तियों के बीच एक प्रमुख मुद्दा बन गई है. अमेरिका चीन की बढ़ती आक्रामकता पर अंकुश के लिए क्वॉड को सुरक्षा ढांचा बनाने का पक्षधर है. हाल ही में पीएम मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन समेत ऑस्ट्रेलिया-जापान समेत चार सदस्य देशों के अधिकारियों की पहली बैठक ऑनलाइन तरीके से पूरी हुई थी.
सूत्रों ने कहा कि अफगानिस्तान मुद्दे पर कुछ विस्तार से चर्चा हुई और शांति प्रक्रिया और जमीनी स्थिति पर आकलन का आदान-प्रदान किया गया। साथ ही क्षेत्रीय शक्तियों और पड़ोसियों की चिंताओं और हितों के बारे में भी बात हुई.ऑस्टिन ने एक मीडिया बयान में कहा कि भारत तेजी से बदल रहे अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में एक बहुत महत्वपूर्ण साझेदार है और अमेरिका क्षेत्र के लिए अपने रुख के मुख्य स्तम्भ के तौर पर भारत के साथ समग्र एवं प्रगतिशील रक्षा साझेदारी को लेकर प्रतिबद्ध है.हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सामने जब मुक्त एवं खुली क्षेत्रीय व्यवस्था को लेकर चुनौती पैदा हो गई है, तब समान सोच वाले देशों के बीच सहयोग भविष्य के लिए साझा दृष्टिकोण की सुरक्षा के लिए आवश्यक है.
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