दिल्ली नगर निगम पर संसद में बिल पास हो चुका है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
भारत कुल 28 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों से मिलकर बना हुआ है. भारत के संघीय ढांचे का अध्ययन दिलचस्प है, खासकर केंद्रशासित प्रदेशों का. हालांकि, मौजूदा वक्त में दो केंद्रशासित प्रदेश राजनीतिक चर्चा का केंद्र बने हुए हैं. पहली देश की राजधानी दिल्ली जोकि एक केंद्रशासित प्रदेश भी है. वहीं, दूसरा है चंडीगढ़, जिसके तीन चेहरे हैं. तो आइए जानते हैं इन दोनों शहरों पर क्या है विवाद और क्या है इसकी जड़.
दिल्ली पर क्या है चर्चा
दरअसल, दिल्ली नगर निगम को लेकर एक बड़ा बदलाव संसद के रास्ते लागू होने जा रहा है. दिल्ली नगर निगम के तीन हिस्से हैं- उत्तरी दिल्ली नगर निगम, दक्षिणी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली नगर निगम. लेकिन केंद्र सरकार इन तीनों नगर निगमों को एक करना चाहती है, संसद में इसके लिए दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक, 2022 को पारित कर दिया गया है. इस हफ्ते इस बिल को लोकसभा और राज्यसभा में पास कर दिया गया है.
विधेयक के अनुसार, दिल्ली के एकीकृत नगर निगम में सीट की संख्या 250 से अधिक नहीं होगी और एक विशेष अधिकारी को एकीकरण कानून के तहत निकाय की पहली बैठक होने तक इसके कार्य की देखरेख के लिए नियुक्त किया जा सकता है.
इस मामले पर भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच बड़ी खींचातानी चल रही है. गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में इस बिल पर चर्चा करते हुए आप सरकार पर आरोप लगाया कि वो एमसीडी से 'सौतेली मां' जैसा व्यवहार करती है. इसपर जवाब में आप सांसद संजय सिंह ने पलटवार किया कि 'बीजेपी ने 2014 के बाद से दिल्ली को कभी 325 करोड़ से ज्यादा का फंड दिया ही नहीं है.' आप का यह भी कहना है कि चूंकि एमसीडी के चुनाव होने हैं, इसलिए केंद्र सरकार उसके पहले यह पूरा मसला खड़ा कर रही है.
दिल्ली नगर निगम का इतिहास और विवाद
1958 में दिल्ली नगर निगम की स्थापना हुई थी. इसके पहले एमसीडी या दिल्ली म्युनिसिपल कमेटी होती थी. दिल्ली नगर निगम अधिनियम संबंधी विधेयक संसद के 28 दिसंबर 1957 की तारीख को दोनों सदनों में पारित होने के बाद राष्ट्रपति ने इसे अपनी मंजूरी दी थी. दिल्ली नगर निगम ने 7 अप्रैल, 1958 से काम करना शुरू किया.
एमसीडी के अलावा दिल्ली में दो और निकाय हैं- एनडीएमसी यानी नई दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन और दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड.
साल 2012 में शीला दीक्षित की वर्तमान सरकार ने एमसीडी को तीन हिस्सों में बांट दिया- उत्तरी दिल्ली नगर निगम, दक्षिणी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली नगर निगम. अब केंद्र की मोदी सरकार इन तीनों निगमों को एक कर रही है.
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दरअसल, ये तीनों निगम घाटे में चल रहे हैं. इनका साझा खर्च 53,000 करोड़ है, लेकिन इनकी कमाई 32,000 करोड़ से कुछ ऊपर ही है, यानी कि ये निगम 21,000 करोड़ के घाटे में चल रहे हैं. इससे कर्मचारियों को वक्त पर न वेतन मिल रहा है, न पेंशन. कॉन्ट्रैक्टरों को उनकी देनदारी नहीं दी जा रही है. हड़ताल हो रहे हैं और फंडिंग को लेकर बीजेपी और आप में सालों से बहसबाजियां होती रही हैं.
दिल्ली नगर निगमों में 280 वार्ड्स हैं, तीन मेयर हैं, तीन कमिश्नर हैं, 12 अतिरिक्त कमिश्नर हैं. हर निगम की कमेटियां भी अलग हैं. इससे खर्चा बहुत ज्यादा है. बीजेपी इन निगमों को मिलाने के पीछे प्रशासकीय कठिनाइयों, खर्चों और स्रोतों में कटौती का हवाला दे रही है. जब निगम को तीन हिस्सों में बांटा गया था, तब भी प्रशासन और नियामक कठिनाइयों की ही बात कही गई थी.
हालांकि, विवाद का केंद्रबिंदु इसपर भी आकर ठहरता है कि एमसीडी का एकीकृत होने के बाद दिल्ली सरकार के समानांतर एमसीडी एक ज्यादा बड़ी शक्ति बन जाएगी.
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चंडीगढ़ किसका?
चंडीगढ़ को नेहरु ने कभी आजाद भारत के प्रतीक की तरह देखा था. चंडीगढ़ के तीन चेहरे इसलिए क्योंकि यह खुद तो एक केंद्रशासित प्रदेश है ही- पंजाब और हरियाणा-दोनों राज्यों की राजधानी भी है.
विवाद इसलिए पैदा हुआ है क्योंकि पंजाब इसे अकेली अपनी राजधानी के तौर पर देखना चाहता है. हरियाणा इससे बौखलाया हुआ है, और शहर पर अपना दावा ठोंक रहा है. और तो और अब केंद्र भी यहां अपने नियम लागू करने की योजना में है. पंजाब-हरियाणा अपनी-अपनी विधानसभाओं में चंडीगढ़ को लेकर प्रस्ताव पेश कर रहे हैं.
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चंडीगढ़ का इतिहास
चंडीगढ़ का अस्तित्व आजादी के बाद आया. उस वक्त के पंजाब की राजधानी लाहौर हुआ करती थी, लेकिन बंटवारे के बाद लाहौर पाकिस्तान में चला गया. इसके बाद कुछ वक्त तक के लिए शिमला को पंजाब की अस्थायी राजधानी बनाया गया. फिर चंडीगढ़ को बकायदा ला कॉर्बूज को बुलाकर इसे नए शहर के तौर पर डिजाइन किया गया. 1953 में चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाया गया. 1966 में एक बार फिर पंजाब पुनर्गठन एक्ट के तहत पंजाब का विभाजन हुआ और हरियाणा बना. उस वक्त भाषा के आधार पर हुए विभाजन में हरियाणा की राजधानी भी चंडीगढ़ ही रखी गई.
दोनों राज्यों की संयुक्त सीमा पर बसे इस शहर का बड़ा हिस्सा पंजाब में तो उसके मुकाबले छोटा हिस्सा हरियाणा के हिस्से में आया. तबसे चंडीगढ़ को पूरी तरह से पंजाब को देने के लिए कई बार प्रस्ताव आ चुके हैं.
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विवाद क्यों शुरू हुआ है?
दरअसल, केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ को लेकर एक आदेश जारी किया है कि केंद्रशासित प्रदेश के तौर पर चंडीगढ़ के सरकारी कर्मचारियों पर केंद्र के कर्मचारियों के समान ही कानून-नियम लागू होंगे. इससे कर्मचारियों को वेतन, पेंशन को लेकर बहुत फायदा होगा, लेकिन पंजाब सरकार इसे अपने अधिकार क्षेत्र में दखल के तौर पर देख रही है.
पंजाब का तर्क ये है कि चूंकि सालों पहले चंडीगढ़ को लेकर लोंगोवाल का समझौता हुआ था, जिसके तहत यह वादा किया गया था कि चंडीगढ़ को आगे चलकर पूरी तरह पंजाब को दे दिया जाएगा. वहीं, इसके बदले में पंजाब में जो हिंदीभाषी गांव-क्षेत्र बचे हुए हैं, वो हरियाणा को दे दिया जाएगा.
वहीं, हरियाणा का तर्क ये है कि चंडीगढ़ मूल रूप से उसकी जमीन पर है और यह पहले अंबाला जिले में आता था, इसलिए इसपर पहला हक उसका है.
तो मज़मून ये कि शहरों की सियासत में केंद्र के साथ तीन सरकारें नई शक्तियां और नए मानचित्र तैयार कर रही हैं.
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