नई दिल्ली:
गरीब आदमी के पास इलाज के लिए सरकारी अस्पताल ही एकमात्र आसरा होते हैं, लेकिन कई बार वे भी मुंह मोड़ते दिखाई देते हैं। एनडीटीवी की इस रिपोर्ट का असर हुआ है।
दिल्ली सरकार ने कहा है कि वह बबलू के इलाज का खर्च उठाएगी। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन ने एनडीटीवी से कहा कि हमारे हेल्थ सिस्टम में कई खामियां हैं।
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वैसे, ज़रा सोचिए, आपका कोई अपना बेहद करीबी बीमार हो और आपके पास इलाज के लिए पैसे भी न हों और कोई मदद करने के लिए भी तैयार न हो, यहां तक की वे सरकारी अस्पताल जो गरीब और रूरतमंदों की मदद के लिए बने हैं। वे भी मदद से इनकार कर दें। ज़रा सोचिए एक बार के लिए कि आपकी क्या हालत होगी। जो आप सोचकर भी घबरा जाएंगे, वे लोग झेल रहे हैं। अस्पतालों की पड़ताल करती एनडीटीवी की यह रिपोर्ट आपको सच से रू-ब-रू कराएगी।
35 साल की मधुलिका को एक डॉक्टर की तलाश है। एक अस्पताल की, जहां उसके पति बबलू का इलाज हो सके। 38 साल के बबलू को ब्रेन ट्यूमर था। 2011 में एम्स में सर्जरी हुई और ट्यूमर निकाल दिया गया, लेकिन हाल ही में करीब 20 दिन पहले उसके ललाट पर एक गुमड़ निकल आया। उसे लगातार चक्कर आने लगे और फिर उसकी टांगें जवाब दे गईं। अब वह बिस्तर पर है। अपने शहर गया में उसे डॉक्टरों ने बताया कि ये गुमड़ खतरनाक है और इसका स्पेशलाइज्ड डॉक्टरों से फौरन इलाज ज़रूरी है। तो मधुलिका दिल्ली पहुंच गई।
वे फिर से एम्स पहुंचे। डॉक्टर बबलू के इलाज को तैयार हैं, लेकिन पहले एक एमआरआई रिपोर्ट चाहते हैं। एम्स में एमआरआई कराने की वेटिंग लिस्ट सात महीने की है। तो बीते दो हफ्तों से मधुलिका भागदौड़ कर रही हैं कि कहीं एमआरआई हो जाए।
किसी प्राइवेट अस्पताल में एमआरआई का खर्च करीब 12000 रुपये आता है। परिवार इस हैसियत में नहीं है कि इतने रुपये जुटा सके। सिर्फ सरकारी अस्पताल ही उनके लिए उम्मीद हैं। 18 तारीख की सुबह हमने उनके साथ जाने का फैसला किया।
शुरुआत हमने सुपर स्पेशियलिटी राम मनोहर लोहिया अस्पताल से की। हाथ में इलाज के कागज लिए, हम ओपीडी के डॉक्टर के पास पहुंचते हैं। वह हमें देखता तक नहीं और हमें फौरन दूसरे विभाग में भेज दिया जाता है। हमारे कुछ मान मनुहार करने से डॉक्टर बाहर आकर मरीज को देखने को तैयार हो जाता है। इसके बाद वह कहते हैं कि पहले इनका ऑपरेशन एम्स में हुआ है। इन्हें वहीं ले जाइये, इनके लिए यहां पर कोई इलाज नहीं है।
बस इतना ही और डॉक्टर यह कहते हुए निकल गया कि उसे दूसरे मरीज देखने हैं। हम अब एंबुलेंस से दूसरे अस्पताल लोकनायक जयप्रकाश पहुंचते हैं। वहां भी वही कवायद।
एनडीटीवी: इनका ऑपरेशन एम्स में हुआ है। प्राइवेट अस्पताल में MRI इलाज करवाने के लिए पैसे नहीं हैं, कृपया इन्हें देखें कि क्या हो गया है?
डॉक्टर : हम यहां कुछ नहीं कर सकते।
एनडीटीवी: क्या आप सिर्फ एमआरआई नहीं करवा सकते
डॉक्टर : लंबा समय लगेगा, आप जाकर सीएमओ से बात करें, यहां तीन महीने की वेटिंग है।
एनडीटीवी : ये लोग इलाज का खर्चा नहीं उठा सकते, इलाज के लिए हमने अपनी जमीन भी बेच दी। एमआरआई बाहर बहुत महंगा है।
सीएमओ से बात करने पर वह बोले कि हम यहां एमआरआई नहीं कर सकते, आपको न्यूरो विभाग के डॉक्टर से बात करने की जरूरत है, सोमवार को आना।
इसके बाद हम जीबी पंत अस्पताल पहुंचते हैं, जहां हमें कहा जाता है कि कोई और अस्पताल देखें- क्योंकि यहां इतने कॉम्प्लिकेटेड केस का इलाज नहीं है।
डॉक्टर : यहां इलाज के लिए किसी अस्पताल के रिफरेंस की जरूरत होती है। आप इन्हें एलएनजेपी, सफदरजंग या एम्स ले जाएं। यहां इनका इलाज नहीं होगा।
एनडीटीवी: क्या आप सिर्फ MRI कर सकते हैं।
डॉक्टर : MRI के लिए आपको सिर्फ इस अस्पताल का मरीज होना जरूरी है।
एनडीटीवी: एम्स में महीनों इंतजार करना होगा।
डॉक्टर : हम कुछ नहीं कर सकते आप इन्हें एम्स ले जाएं।
इसके बाद हम गुरु तेगबहादुर अस्पताल जाते हैं जहां डॉक्टर हमें जैसे डराने लगते हैं।
डॉक्टर : यह घटिया अस्पताल है आप यहां क्यों आ गए, अगर मरीज का खयाल है तो आप इन्हें कहीं और ले जाएं। हम 3-4 मरीज एक बेड पर रखते हैं। हमारे पास आपके मरीज के लिए बैड और इलाज नहीं है।
हमारी आखिरी उम्मीद सफ़दरजंग अस्पताल ही बची, लेकिन वहां भी हमारा नसीब खोटा निकला।
एनडीटीवी: डॉक्टर इन्हें MRI की जरूरत है। हमने अपनी सारी जमीन बेच दी। अब हमारे पास पैसे नहीं है।
डॉक्टर : कृपया इस बात को समझ लें सीटी स्कैन और एमआरआई यहां नहीं होता। इसके लिए आपको प्राइवेट अस्पताल जाना होगा।
एनडीटीवी: प्लीज सर हमें बताएं कि हम क्या करें। हम कई अस्पतालों में जा चुके हैं।
डॉक्टर : न्यूरो विभाग में जाएं, देखें कि डॉक्टर इन्हें एडमिट करना चाहते हैं या नहीं।
न्यूरो डॉक्टर के पास जाते हैं तो वह कहते हैं कि आप यहां क्यों आए हैं, इमरजेंसी में जाइये।
एनडीटीवी: इमरजेंसी वालों ने ही हमें यहां भेजा है। MRI?
डॉक्टर : मंगलवार को आएं, हमारे हेड ऑफ डिपार्टमेंट आपके केस में फैसला लेंगे।
मधुलिका पर बबलू की पूरी जिम्मेदारी है। वह उन्हें खिलाती हैं, साफ-सफ़ाई करती हैं, नहलाती हैं, साथ ही अपनी बूढ़ी सास और अपने तीन बच्चों का ख्याल भी रखती हैं।
उन्होंने अपनी ज़मीन बेच दी है और अब वह बची-खुची बचत के सहारे चल रहे हैं। कुछ रिश्तेदारों की भी मदद मिल रही है, क्योंकि बबलू ही परिवार में अकेला कमाने वाले हैं।
यह सिर्फ बहुत जटिल मामलों की बात नहीं है, जिसमें अस्पताल मना करते हैं। एनडीटीवी की टीम ने देखा कि अस्पतालों में मरीजों की अनदेखी एक आम चलन बन गया है। उनकी भी अनदेखी हो रही है, जिन्हें फौरन इलाज की ज़रूरत है। मामूली-मामूली बातों पर उन्हें लौटा दिया जाता है।
बबलू के लिए एनडीटीवी ने उदय फाउंडेशन से संपर्क किया और उनका MRI हो चुका है, लेकिन इन अस्पतालों में अभी भी कई मरीज हैं, जिन्हें तुरंत इलाज की जरूरत है और लेकिन उन्हें नहीं मिल पा रहा है।
दिल्ली सरकार ने कहा है कि वह बबलू के इलाज का खर्च उठाएगी। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन ने एनडीटीवी से कहा कि हमारे हेल्थ सिस्टम में कई खामियां हैं।
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वैसे, ज़रा सोचिए, आपका कोई अपना बेहद करीबी बीमार हो और आपके पास इलाज के लिए पैसे भी न हों और कोई मदद करने के लिए भी तैयार न हो, यहां तक की वे सरकारी अस्पताल जो गरीब और रूरतमंदों की मदद के लिए बने हैं। वे भी मदद से इनकार कर दें। ज़रा सोचिए एक बार के लिए कि आपकी क्या हालत होगी। जो आप सोचकर भी घबरा जाएंगे, वे लोग झेल रहे हैं। अस्पतालों की पड़ताल करती एनडीटीवी की यह रिपोर्ट आपको सच से रू-ब-रू कराएगी।
35 साल की मधुलिका को एक डॉक्टर की तलाश है। एक अस्पताल की, जहां उसके पति बबलू का इलाज हो सके। 38 साल के बबलू को ब्रेन ट्यूमर था। 2011 में एम्स में सर्जरी हुई और ट्यूमर निकाल दिया गया, लेकिन हाल ही में करीब 20 दिन पहले उसके ललाट पर एक गुमड़ निकल आया। उसे लगातार चक्कर आने लगे और फिर उसकी टांगें जवाब दे गईं। अब वह बिस्तर पर है। अपने शहर गया में उसे डॉक्टरों ने बताया कि ये गुमड़ खतरनाक है और इसका स्पेशलाइज्ड डॉक्टरों से फौरन इलाज ज़रूरी है। तो मधुलिका दिल्ली पहुंच गई।
वे फिर से एम्स पहुंचे। डॉक्टर बबलू के इलाज को तैयार हैं, लेकिन पहले एक एमआरआई रिपोर्ट चाहते हैं। एम्स में एमआरआई कराने की वेटिंग लिस्ट सात महीने की है। तो बीते दो हफ्तों से मधुलिका भागदौड़ कर रही हैं कि कहीं एमआरआई हो जाए।
किसी प्राइवेट अस्पताल में एमआरआई का खर्च करीब 12000 रुपये आता है। परिवार इस हैसियत में नहीं है कि इतने रुपये जुटा सके। सिर्फ सरकारी अस्पताल ही उनके लिए उम्मीद हैं। 18 तारीख की सुबह हमने उनके साथ जाने का फैसला किया।
शुरुआत हमने सुपर स्पेशियलिटी राम मनोहर लोहिया अस्पताल से की। हाथ में इलाज के कागज लिए, हम ओपीडी के डॉक्टर के पास पहुंचते हैं। वह हमें देखता तक नहीं और हमें फौरन दूसरे विभाग में भेज दिया जाता है। हमारे कुछ मान मनुहार करने से डॉक्टर बाहर आकर मरीज को देखने को तैयार हो जाता है। इसके बाद वह कहते हैं कि पहले इनका ऑपरेशन एम्स में हुआ है। इन्हें वहीं ले जाइये, इनके लिए यहां पर कोई इलाज नहीं है।
बस इतना ही और डॉक्टर यह कहते हुए निकल गया कि उसे दूसरे मरीज देखने हैं। हम अब एंबुलेंस से दूसरे अस्पताल लोकनायक जयप्रकाश पहुंचते हैं। वहां भी वही कवायद।
एनडीटीवी: इनका ऑपरेशन एम्स में हुआ है। प्राइवेट अस्पताल में MRI इलाज करवाने के लिए पैसे नहीं हैं, कृपया इन्हें देखें कि क्या हो गया है?
डॉक्टर : हम यहां कुछ नहीं कर सकते।
एनडीटीवी: क्या आप सिर्फ एमआरआई नहीं करवा सकते
डॉक्टर : लंबा समय लगेगा, आप जाकर सीएमओ से बात करें, यहां तीन महीने की वेटिंग है।
एनडीटीवी : ये लोग इलाज का खर्चा नहीं उठा सकते, इलाज के लिए हमने अपनी जमीन भी बेच दी। एमआरआई बाहर बहुत महंगा है।
सीएमओ से बात करने पर वह बोले कि हम यहां एमआरआई नहीं कर सकते, आपको न्यूरो विभाग के डॉक्टर से बात करने की जरूरत है, सोमवार को आना।
इसके बाद हम जीबी पंत अस्पताल पहुंचते हैं, जहां हमें कहा जाता है कि कोई और अस्पताल देखें- क्योंकि यहां इतने कॉम्प्लिकेटेड केस का इलाज नहीं है।
डॉक्टर : यहां इलाज के लिए किसी अस्पताल के रिफरेंस की जरूरत होती है। आप इन्हें एलएनजेपी, सफदरजंग या एम्स ले जाएं। यहां इनका इलाज नहीं होगा।
एनडीटीवी: क्या आप सिर्फ MRI कर सकते हैं।
डॉक्टर : MRI के लिए आपको सिर्फ इस अस्पताल का मरीज होना जरूरी है।
एनडीटीवी: एम्स में महीनों इंतजार करना होगा।
डॉक्टर : हम कुछ नहीं कर सकते आप इन्हें एम्स ले जाएं।
इसके बाद हम गुरु तेगबहादुर अस्पताल जाते हैं जहां डॉक्टर हमें जैसे डराने लगते हैं।
डॉक्टर : यह घटिया अस्पताल है आप यहां क्यों आ गए, अगर मरीज का खयाल है तो आप इन्हें कहीं और ले जाएं। हम 3-4 मरीज एक बेड पर रखते हैं। हमारे पास आपके मरीज के लिए बैड और इलाज नहीं है।
हमारी आखिरी उम्मीद सफ़दरजंग अस्पताल ही बची, लेकिन वहां भी हमारा नसीब खोटा निकला।
एनडीटीवी: डॉक्टर इन्हें MRI की जरूरत है। हमने अपनी सारी जमीन बेच दी। अब हमारे पास पैसे नहीं है।
डॉक्टर : कृपया इस बात को समझ लें सीटी स्कैन और एमआरआई यहां नहीं होता। इसके लिए आपको प्राइवेट अस्पताल जाना होगा।
एनडीटीवी: प्लीज सर हमें बताएं कि हम क्या करें। हम कई अस्पतालों में जा चुके हैं।
डॉक्टर : न्यूरो विभाग में जाएं, देखें कि डॉक्टर इन्हें एडमिट करना चाहते हैं या नहीं।
न्यूरो डॉक्टर के पास जाते हैं तो वह कहते हैं कि आप यहां क्यों आए हैं, इमरजेंसी में जाइये।
एनडीटीवी: इमरजेंसी वालों ने ही हमें यहां भेजा है। MRI?
डॉक्टर : मंगलवार को आएं, हमारे हेड ऑफ डिपार्टमेंट आपके केस में फैसला लेंगे।
मधुलिका पर बबलू की पूरी जिम्मेदारी है। वह उन्हें खिलाती हैं, साफ-सफ़ाई करती हैं, नहलाती हैं, साथ ही अपनी बूढ़ी सास और अपने तीन बच्चों का ख्याल भी रखती हैं।
उन्होंने अपनी ज़मीन बेच दी है और अब वह बची-खुची बचत के सहारे चल रहे हैं। कुछ रिश्तेदारों की भी मदद मिल रही है, क्योंकि बबलू ही परिवार में अकेला कमाने वाले हैं।
यह सिर्फ बहुत जटिल मामलों की बात नहीं है, जिसमें अस्पताल मना करते हैं। एनडीटीवी की टीम ने देखा कि अस्पतालों में मरीजों की अनदेखी एक आम चलन बन गया है। उनकी भी अनदेखी हो रही है, जिन्हें फौरन इलाज की ज़रूरत है। मामूली-मामूली बातों पर उन्हें लौटा दिया जाता है।
बबलू के लिए एनडीटीवी ने उदय फाउंडेशन से संपर्क किया और उनका MRI हो चुका है, लेकिन इन अस्पतालों में अभी भी कई मरीज हैं, जिन्हें तुरंत इलाज की जरूरत है और लेकिन उन्हें नहीं मिल पा रहा है।
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