नई दिल्ली:
2008 के मालेगांव ब्लास्ट मामले में विशेष लोक अभियोजक रोहिणी सालियान ने ये आरोप लगाकर सनसनी फैला दी थी कि एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही उनसे कथित रूप से केस में अपना रुख नरम रखने को कहा जा रहा है।
साल 2008 में उत्तरी महाराष्ट्र के मुस्लिम बहुल शहर मालेगांव में हुए धमाके की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) कर रही है जिसने इस धमाके के लिए हिंदूवादी चरमपंथी गुट को जिम्मेदार ठहराया था।
हालांकि एनआईए ने इस बात से इनकार किया है कि सालियान को ऐसा कोई निर्देश दिया गया है, उन्होंने एनडीटीवी से कहा, 'मैंने जो कहा है सच कहा है और जरूरत पड़ी तो इसे साबित भी कर सकती हूं। उन्होंने बताया कि नरम रुख रखने का आदेश मई-जून 2014 में आया था। एनआईए के सभी अधिकारियों ने उनसे कहा था कि आदेश ऊपर से आए हैं।
लेकिन साथ ही सालियान ने एक और चौंकाने वाला आरोप लगाया कि केस को सुप्रीम कोर्ट में भी कमजोर करने की कोशिश की जा रही है, जहां आरोपियों ने अपने खिलाफ मकोका हटाए जाने की मांग की है जिससे उन्हें जमानत मिल सके।
उन्होंने बताया, 'इस साल जनवरी में जब महाराष्ट्र के वरिष्ठ वकील मरियार पुट्टम मकोका को बरकरार रखने की जिरह करने लगे तो राज्य में केंद्र सरकार के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने उन्हें रोक दिया और कहा कि मामले में वह खुद जिरह करेंगे।'
सालियान का कहना है, अनिल सिंह मामले में कभी उपस्थित नहीं रहे और ना ही उन्हें केस के तथ्यों की जानकारी है।'
सालियान का यह भी आरोप है कि अगले ही दिन केंद्र के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी पुट्टम को एनआईए के लिए जिरह करने से रोक दिया। उन्होंने बताया, 'फिर जब पुट्टम महाराष्ट्र की तरफ से जिरह करने लगे तो अनिल सिंह ने उन्हें रोक कर कहा कि इसकी जरूरत नहीं है, मैं पहले ही जिरह कर चुका हूं।' सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद ही पुट्टम मामले में जिरह कर सके।
सालियान ने कहा, 'मरियार पुट्टम के साथ जो भी हुआ, उसके बाद हम इस केस में संतोषजनक रूप से बहस नहीं कर सकते।'
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि उन पर मकोका लगाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। सालियान ने कहा कि इससे स्पष्ट हो जाता है कि ये सब क्यों हो रहा है।
वहीं इन आरोपों पर तुषार मेहता ने एनडीटीवी से कहा, 'इस केस में किसी को भी जिरह करने से नहीं रोका गया। सबने अपनी बहस पूरी की। पूरी जिरह फैसले में दर्ज है।'
साल 2008 में उत्तरी महाराष्ट्र के मुस्लिम बहुल शहर मालेगांव में हुए धमाके की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) कर रही है जिसने इस धमाके के लिए हिंदूवादी चरमपंथी गुट को जिम्मेदार ठहराया था।
हालांकि एनआईए ने इस बात से इनकार किया है कि सालियान को ऐसा कोई निर्देश दिया गया है, उन्होंने एनडीटीवी से कहा, 'मैंने जो कहा है सच कहा है और जरूरत पड़ी तो इसे साबित भी कर सकती हूं। उन्होंने बताया कि नरम रुख रखने का आदेश मई-जून 2014 में आया था। एनआईए के सभी अधिकारियों ने उनसे कहा था कि आदेश ऊपर से आए हैं।
लेकिन साथ ही सालियान ने एक और चौंकाने वाला आरोप लगाया कि केस को सुप्रीम कोर्ट में भी कमजोर करने की कोशिश की जा रही है, जहां आरोपियों ने अपने खिलाफ मकोका हटाए जाने की मांग की है जिससे उन्हें जमानत मिल सके।
उन्होंने बताया, 'इस साल जनवरी में जब महाराष्ट्र के वरिष्ठ वकील मरियार पुट्टम मकोका को बरकरार रखने की जिरह करने लगे तो राज्य में केंद्र सरकार के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने उन्हें रोक दिया और कहा कि मामले में वह खुद जिरह करेंगे।'
सालियान का कहना है, अनिल सिंह मामले में कभी उपस्थित नहीं रहे और ना ही उन्हें केस के तथ्यों की जानकारी है।'
सालियान का यह भी आरोप है कि अगले ही दिन केंद्र के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी पुट्टम को एनआईए के लिए जिरह करने से रोक दिया। उन्होंने बताया, 'फिर जब पुट्टम महाराष्ट्र की तरफ से जिरह करने लगे तो अनिल सिंह ने उन्हें रोक कर कहा कि इसकी जरूरत नहीं है, मैं पहले ही जिरह कर चुका हूं।' सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद ही पुट्टम मामले में जिरह कर सके।
सालियान ने कहा, 'मरियार पुट्टम के साथ जो भी हुआ, उसके बाद हम इस केस में संतोषजनक रूप से बहस नहीं कर सकते।'
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि उन पर मकोका लगाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। सालियान ने कहा कि इससे स्पष्ट हो जाता है कि ये सब क्यों हो रहा है।
वहीं इन आरोपों पर तुषार मेहता ने एनडीटीवी से कहा, 'इस केस में किसी को भी जिरह करने से नहीं रोका गया। सबने अपनी बहस पूरी की। पूरी जिरह फैसले में दर्ज है।'
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