देश की सबसे बड़ी रोज़गार योजना मनरेगा पर लाकडाउन का असर ( MNREGA work in lockdown) गहराता जा रहा है.यूपी के सोनभद्र ज़िले में ग्रामीण मनरेगा के तहत काम रोके जाने से आर्थिक संकट झेल रहे हैं. खेतों में काम कम है. इस मुश्किल घड़ी में मनरेगा जीने का एक अहम सहारा हो सकता था. सोनभद्र (Sonbhadra) ज़िले के केवाल गांव से एनडीटीवी की ग्राउंड रिपोर्ट यही हकीकत सामने लाती है. लॉकडाउन लगने के बाद से ही मनरेगा के तहत काम मिलना बंद हो गया है. इस पिछड़े गांव में 737 लोगों के पास मनरेगा के जॉब कार्ड हैं. लेकिन प्रशासन ने काम रोक दिया है, जिससे आर्थिक संकट बढ़ता जा रहा है.
केवाल गांव के 42 वर्षीय इंद्रदेव प्रवासी मजदूर हैं, वह गोरखपुर में एक निजी कंपनी में ऑपरेटर पद पर कार्य करते हैं. लॉकडाउन में किसी तरह जब वह अपने गांव पहुंचे तब मनरेगा में उन्होंने 50 दिनों तक गांव के एक तालाब में काम किया, जिससे उनको काफी मदद मिली, लेकिन इस साल लॉकडाउन में मनरेगा का काम गांव में बिल्कुल बंद है जिससे हम को काफी परेशानी हो रही है.
रोज़गार सेवक रामचंद्र ने NDTV से कहा, "28 अप्रैल से पहले 120 से 130 लोगों को मनरेगा के तहत काम दिया जा रहा था जो अब रुक गया है. इस लॉकडाउन में हमारे पास कोई सिक्योरिटी नहीं है. अभी मनरेगा में कोई काम नहीं हो रहा है.गौरतलब है कि यूपी में कोरोना पर काबू पाने के लिए लॉकडाउन जैसी पाबंदियां लगाई गई हैं. केवाल गांव की ही 30 वर्षीय उर्मिला ने पति के साथ जनवरी-फरवरी में मनरेगा के तहत गांव में बावली की खुदाई के दौरान 40 दिन काम किया लेकिन पेमेंट अभी तक नहीं मिला है.
उर्मिला देवी ने NDTV से कहा, "नरेगा में काम किए हैं, लेकिन पैसा नहीं मिला है. मुंशी कहते हैं खाता चेक करो. लेकिन मेरे खाता में अभी तक पैसा नहीं आया है. हम लोग परेशान हैं". केवाल गांव के कई प्रवासी मजदूर लॉकडाउन की वजह से रोज़गार खोने पर गांव वापस लौटे हैं. लेकिन यहां भी मनरेगा में काम बंद होने की वजह से आर्थिक संकट झेल रहे हैं.
ग्राम प्रधान दिनेश यादव ने कहा कि जो प्रवासी मज़दूर बाहर से आये हैं, उनके पास कोई काम नहीं है. अगर सरकार मनरेगा में काम शुरू कर देती तो लोग आर्थिक तंगी से बच जाते.
पिछड़े गावों में रोज़गार के बढ़ते संकट के बीच ग्रामीण विकास मंत्रालय ने आकड़े जारी कर दावा किया है कोविड महामारी के बावजूद महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत मई 2021 में 1.85 करोड़ लोगों को ज़ॉब वर्क मिला है. जो मई, 2019 में इसी अवधि के दौरान की गई काम की पेशकश की तुलना में 52% अधिक है. फ्रंट लाइन सहित सभी स्तरों पर ऑपरेटिंग स्टाफ के बीच मौत या संक्रमण के माध्यम से हताहतों की संख्या के बावजूद उपलब्धि हासिल की गई है.
गौरतलब है कि बड़े पैमाने पर रोजगार छिनने से कोरोना संकट के दौरान काम की मांग तेज़ी से बढ़ी है. सरकारी आकड़ों में हुई बढ़ोतरी ये दर्शाती है. लेकिन लॉकडाउन की वजह से बेरोज़गार हुए लोगों की तरफ से काम की मांगे बढ़ती जा रही है और सरकार को इस चुनौती से निपटने के लिए और बड़े स्तर पर पहल करना होगा.
सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराए जाने से न तो सरकारी कर्मचारी काम पर लौट पा रहे हैं और न ही ग्रामीणों को मनरेगा के तहत काम मिल पा रहा है. हालिया पंचायत चुनाव के कारण भी ज्यादातर पंचायतों के विकास कार्य ठप हैं.
(सोनभद्र से प्रभात कुमार और लखनऊ से अलोक पांडेय के इनपुट के साथ)
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