क्या कॉमर्शियल और निजी वाहनों के लिए डीजल की कीमतों में अंतर हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट

दिल्ली में प्रदूषण का मामला : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा, क्या छोटी और मध्यम कारों पर एक प्रतिशत ग्रीन सेस लगाया जा सकता है?

क्या कॉमर्शियल और निजी वाहनों के लिए डीजल की कीमतों में अंतर हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट

प्रतीकात्मक फोटो.

खास बातें

  • केंद्र से ग्रीन सेस पर तीन हफ्ते में जवाब देने को कहा गया
  • एक अप्रैल 2018 तक दिल्ली-एनसीआर में बीएस 6 ईंधन मिलने लगेगा
  • डीजल कारों के खरीदार को रोकने के लिए पर्याप्त कर नहीं लगाया जाता
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या वाणिज्यिक और निजी वाहनों के लिए डीजल की कीमत में अंतर किया जा सकता है? वर्तमान में डीजल की कीमत पेट्रोल के मुकाबले करीब 10 लीटर रुपये कम है. क्या छोटी और मध्यम कारों पर एक प्रतिशत ग्रीन सेस लगाया जा सकता है?

सरकार को डीजल की कीमतों और छोटी और मध्यम कारों पर ग्रीन सेस पर तीन हफ्तों के भीतर जवाब देने को कहा गया है. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 2000 सीसी की इंजन क्षमता वाले डीजल वाहनों पर एक फीसदी ग्रीन सेस है. कोर्ट चाहता है कि सरकार छोटी और मध्यम कारों पर एक प्रतिशत सेस लगाने पर विचार करे.

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केंद्र ने कोर्ट में कहा कि एक अप्रैल 2018 तक दिल्ली-एनसीआर में बीएस 6 ईंधन उपलब्ध होगा. सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि एक अप्रैल 2018 तक 13 महानगरों में बीएस 6 ईंधन शुरू हो. केंद्र का कहना है कि वह तेल कंपनियों से परामर्श करेगी और इसका जवाब देगी.

VIDEO : दिल्ली की हवा में प्रदूषण का जहर

इनवायरांमेंट पॉल्युशन (प्रवेंशन एंड कंट्रोल) अथॉरिटी (EPCA) ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि डीजल कारों के खरीदार को रोकने के लिए पर्याप्त रूप से कर नहीं लगाया जाता. डीजल एक प्रदूषणकारी ईंधन है, डीजल कारों को बंद किया जाना चाहिए.

मामले की सुनवाई  के दौरान ईपीसीए ने म्युनिसिपल कॉरपोरेशन पर सवाल किया और कहा कि मौजूदा सिस्टम में खामियां हैं और सलाना 390-537 करोड़ रुपये के ग्रीन सेस का नुकसान हो रहा है. दिल्ली में रोजाना 36000 ट्रक आते हैं और 700-2600 सेस उनसे चार्ज किया जाता है. पर्यावरण सेस इसलिए लगाया जाता है  कि प्रदूषण में कमी हो. मौजूदा सिस्टम में लोगों के हाथ में दिया गया है कि कौन से वाहन को छूट दी जाएगी और किन्हें छोड़ा जा सकता है और इस कारण जबर्दस्त गड़बड़ी है. ये बात साफ नहीं है कि मौटे तौर पर बड़ी संख्या में वाहन खाली क्यों राजधानी में घुसते हैं. ऐसे 10 हजार वाहन खाली क्यों घुसते हैं जबकि राजधानी दिल्ली में निर्माण उद्योग नहीं है.

ईपीसीए की रिपोर्ट में कहा गया है कि जो वाहन दिल्ली में घुस रहे हैं उनमें 23 फीसदी पूरा पर्यावरण टैक्स देते हैं जबकि 35 फीसदी ऐसे वाहन आते हैं जो आधा पर्यावरण सेस देते हैं जिन्हें खाली बताया जाता है. जो वाहन छूट वाले हैं वे 42 फीसदी हैं. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि राजधानी दिल्ली में 20 एंट्री पाइंट से 30292 वाहन दिल्ली में रोजाना आते हैं और कुल 124 पाइंट से 36000 कॉमर्शियल वाहन आते हैं और इस तरह  देखा जाए तो 2015 से लेकर 2017 के बीच कॉमर्शियल वाहनों की एंट्री में कोई फर्क नहीं आया. यानी पर्यावरण सेस से कोई डर पैदा नहीं हो पाया है.


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