राजकोट:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को अपने गुजरात के दो दिन के दौरे के पहले दिन राजकोट में एक विशाल रोड शो किया. रोड शो के बाद एक जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि 40 साल के बाद किसी प्रधानमंत्री का राजकोट आना हुआ है. आखिरी बार मोरारजी देसाई यहां आए थे.
उन्होंने कहा, ''उनके जीवन में राजकोट का विशेष महत्व है. अगर राजकोट ने मुझे गांधीनगर चुनकर नहीं भेजा होता तो आज देश ने मुझे दिल्ली नहीं भेजा होता. मेरा राजनीतिक जीवन का आरंभ राजकोट से हुआ है.''
उनकी सरकार इस देश के गरीबों के लिए समर्पित सरकार है. देश में करोड़ों की तादाद में दिव्यांगजन हैं. किसी परिवार में जब दिव्यांग का जन्म होता है तो पूरे परिवार का जीवन उस दिव्यांग के पालन-पोषण में लग जाता है.
उन्होंने कहा कि सरकार में रहते हुए उन्होंने दिव्यांगों के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं. दिव्यांग को न्यूनतम 25 अंकों में ही उत्तीर्ण माना जाएगा. ऐसा निर्णय हमने गुजरात की सरकार में रहते हुए किया.
दिल्ली में जाने पर न केवल दिव्यांग शब्द इजाद किया बल्कि दिव्यांगों की मदद के लिए नई तकनीक विकसित करवाईं. हर क्षेत्र की भाषा के मुताबिक तकनीक विकसित कराई और कानून बनाकर देश के सभी दिव्यांग बच्चों को एक ही भाषा और एक ही संकेत तकनीक विकसित कराने का काम करवाया.
उन्होंने कहा कि 1992 में सामाजिक अधिकारिता विभाग द्वारा दिव्यांगजनों को मदद देने का काम शुरू हुआ, लेकिन सरकार बनने से पहले तक केवल 55 ऐसे कार्यक्रम हुए जहां दिव्यांगजनों को संसाधन मुहैया कराए गए, जबकि जब से उनकी सरकार आई है तो केवल तीन साल के भीतर 5500 कार्यक्रम करके दिव्यांगजनों का तकनीक और संसाधन मुहैया कराए गए हैं.
उन्होंने कहा कि आज राजकोट में 18500 दिव्यांगजनों को संसाधन वितरित करके राज्य सरकार ने एक नया रिकॉर्ड बनाया है.
उन्होंने कहा, ''उनके जीवन में राजकोट का विशेष महत्व है. अगर राजकोट ने मुझे गांधीनगर चुनकर नहीं भेजा होता तो आज देश ने मुझे दिल्ली नहीं भेजा होता. मेरा राजनीतिक जीवन का आरंभ राजकोट से हुआ है.''
उनकी सरकार इस देश के गरीबों के लिए समर्पित सरकार है. देश में करोड़ों की तादाद में दिव्यांगजन हैं. किसी परिवार में जब दिव्यांग का जन्म होता है तो पूरे परिवार का जीवन उस दिव्यांग के पालन-पोषण में लग जाता है.
उन्होंने कहा कि सरकार में रहते हुए उन्होंने दिव्यांगों के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं. दिव्यांग को न्यूनतम 25 अंकों में ही उत्तीर्ण माना जाएगा. ऐसा निर्णय हमने गुजरात की सरकार में रहते हुए किया.
दिल्ली में जाने पर न केवल दिव्यांग शब्द इजाद किया बल्कि दिव्यांगों की मदद के लिए नई तकनीक विकसित करवाईं. हर क्षेत्र की भाषा के मुताबिक तकनीक विकसित कराई और कानून बनाकर देश के सभी दिव्यांग बच्चों को एक ही भाषा और एक ही संकेत तकनीक विकसित कराने का काम करवाया.
उन्होंने कहा कि 1992 में सामाजिक अधिकारिता विभाग द्वारा दिव्यांगजनों को मदद देने का काम शुरू हुआ, लेकिन सरकार बनने से पहले तक केवल 55 ऐसे कार्यक्रम हुए जहां दिव्यांगजनों को संसाधन मुहैया कराए गए, जबकि जब से उनकी सरकार आई है तो केवल तीन साल के भीतर 5500 कार्यक्रम करके दिव्यांगजनों का तकनीक और संसाधन मुहैया कराए गए हैं.
उन्होंने कहा कि आज राजकोट में 18500 दिव्यांगजनों को संसाधन वितरित करके राज्य सरकार ने एक नया रिकॉर्ड बनाया है.
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