प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
अपनी झुग्गी उजड़ गई तो बेघर होते ही विरेंद्र मिश्रा किराये पर आ गए। विरेंद्र अकेले नहीं इनके जैसे 201 लोग बीते 11 साल से किराये पर ही गुजारा कर रहे हैं।
साल 2003-2004 में सरिता विहार के इस फ्लाइओवर के चलते करीब 15 साल से बसा-बसाया आजाद कैंप उजड़ा था। लिहाजा सबको डीडीए की तरफ से डिमांड लेटर भी मिले। विरेंद्र बताते हैं कि हमें भरोसे में लेकर झुग्गी खाली करवाई गई, लेकिन अब विश्वासघात हो रहा है।
डिमांड लेटर के बदले अभिराज कुमार दास समेत 36 लोगों को लॉटरी के जरिए जमीन अलॉट की गई, पर जो जमीन मिली उसपर पहले से ही विवाद चल रहा था। अभिराज इसे डीडीए की धोखाधड़ी करार देते हैं। वे कहते हैं कि ये तो हमारे जैसों के साथ छलावा है।
साल 2010 में 59 लोग डीडीए के खिलाफ हाइकोर्ट गए। तीन साल बाद फैसला उनके हक़ में आया। लिहाजा इस बार 98 झुग्गीवासियों ने कोर्ट की शरण ली है। डीडीए इसपर बात करने को तैयार नहीं है।
साल 2003-2004 में सरिता विहार के इस फ्लाइओवर के चलते करीब 15 साल से बसा-बसाया आजाद कैंप उजड़ा था। लिहाजा सबको डीडीए की तरफ से डिमांड लेटर भी मिले। विरेंद्र बताते हैं कि हमें भरोसे में लेकर झुग्गी खाली करवाई गई, लेकिन अब विश्वासघात हो रहा है।
डिमांड लेटर के बदले अभिराज कुमार दास समेत 36 लोगों को लॉटरी के जरिए जमीन अलॉट की गई, पर जो जमीन मिली उसपर पहले से ही विवाद चल रहा था। अभिराज इसे डीडीए की धोखाधड़ी करार देते हैं। वे कहते हैं कि ये तो हमारे जैसों के साथ छलावा है।
साल 2010 में 59 लोग डीडीए के खिलाफ हाइकोर्ट गए। तीन साल बाद फैसला उनके हक़ में आया। लिहाजा इस बार 98 झुग्गीवासियों ने कोर्ट की शरण ली है। डीडीए इसपर बात करने को तैयार नहीं है।
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