महामारी का कहर: पढ़ाई हुई ऑनलाइन, स्कूल बसों के हजारों ड्राइवर और अटेंडेंट बेरोजगार

स्कूलें शुरू नहीं होने से बस चालकों की उम्मीद टूटी, हज़ारों लोग बेरोजगार, दूसरा काम करने को हैं मजबूर

महामारी का कहर: पढ़ाई हुई ऑनलाइन, स्कूल बसों के हजारों ड्राइवर और अटेंडेंट बेरोजगार

प्रतीकात्मक फोटो.

मुंबई:

देश भर में कोरोना वायरस (Coronavirus) संक्रमण फैलने के बाद से ही स्कूलों की पढ़ाई ऑनलाइन (Online Education) कर दी गई है तो इसका असर स्कूल बसें (School Buses) चलाने वालों पर पड़ा है. दस महीनों से हज़ारों लोगों के पास रोज़गार नहीं है और आने वाले कुछ महीनों में भी हालात सुधरते नज़र नहीं आ रहे. स्कूल बस ऑनर एसोसिएशन के मुताबिक देश भर में करीब साढ़े पांच लाख स्कूल बसें हैं. एक बस में तीन लोग होते हैं. तो साढ़े पांच लाख बसों में काम करने वाले 15 लाख लोगों के रोजगार पर असर पड़ा है.

स्कूल वैन ड्राइवर रोशन शेख कहते हैं कि ''हमने कभी ज़िंदगी में नहीं सोचा कि हमारे साथ ऐसा होगा. बहुत तकलीफें आईं, इतना कुछ झेला, कभी-कभी रो भी दिए कि ऐसी मुसीबत कैसे हमारे ऊपर आ गई.'' करीब 10 सालों से स्कूल वैन में बच्चों को ले जाने का काम करने वाली रोशन शेख ने अगस्त 2019 में नई स्कूल वैन खरीदी, यह सोचकर कि उनकी ज़िंदगी बेहतर हो जाएगी.. लेकिन मार्च से लगे लॉकडाउन के बाद से सब कुछ बंद है. आमदनी हो नहीं रही है और बैंक वाले हर रोज़ फोन करके ईएमआई की मांग कर रहे हैं. रोशन ने नौ महीनों से कोई किस्त नहीं भरी है. 

यही हाल रेणुका और सिद्दीक शेख का भी है. रेणुका स्कूल बस में लेडी अटेंडेंट का काम करती थी, घर चल जाता था, लेकिन स्कूल बंद है तो अब लोगों के घरों में सफाई का काम कर रही हैं. तनख्वाह पहले से आधी हो गई है. वहीं 28 साल से बस चलाने वाले सिद्दीक शेख अब सब्ज़ी बेचने का काम कर रहे हैं.

रेणुका ने कहा कि ''कम से कम 8-9 महीने से कोई जॉब नहीं है. घर काम पर भी कोई बुला नहीं रहा है. हमारा घर इसी से चलता था. सात हज़ार किराया है घर का. कोई कर्ज़ भी नहीं देता है. बहुत मुश्किल से लॉकडाउन में घर चला है.'' स्कूल बस ड्राइवर सिद्दीक शेख कहते हैं कि ''10 महीने से नौकरी जाने के बाद से घर पर बैठा हूं. चार महीने किसी ने बाहर निकलने नहीं दिया, उसके बाद जब मास्क बेचने या सब्जी बेचने की कोशिश की तो पुलिस ने डंडे मारे, हमें क्या करना चाहिए.''

पढ़ाई ऑनलाइन शुरू होने के बाद अब मुंबई में हज़ारों स्कूल बसें सड़कों के किनारे खड़ी धूल खा रही हैं. ना ही इनके चालकों को कोई आर्थिक मदद मिली है और ना ही भविष्य में काम मिलने की उम्मीद है. स्कूल बस का परमिट केवल आठ साल का होता है. अप्रैल से स्कूल खुलने की उम्मीद में इंश्योरेंस और बाकी चीजों पर खर्च इन लोगों ने मार्च महीने में ही कर दिया था. बस मालिक नीलम सिंह ने बताया कि ''स्कूल तो पिछले मार्च से आने वाले जून महीने तक बंद हैं. पूरे 15 महीने हो जाते हैं. आपने छह महीने की राहत तो दी, लेकिन अब EMI भरें तो कैसे भरें.. आगे जो दिन आ रहे हैं, वो कैसे करें.''

स्कूल बस एसोसिएशन के अनुसार मुम्बई में करीब 50 हज़ार स्कूल बसें और वैन हैं. हर एक बस में ड्राइवर, जेंट्स और लेडी अटेंडेंट रहते हैं. करीब डेढ़ लाख लोगों के रोज़गार पर इसका असर पड़ा है. सरकार की ओर से कोई राहत नहीं मिली है. बस एसोसिएशन की ओर से केंद्र और राज्य सरकार को पत्र लिखकर राहत देने की मांग भी की लेकिन हुआ कुछ नहीं. 

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स्कूल बस ऑनर एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल गर्ग ने कहा कि ''सरकार ने हमारे लिए कुछ भी नहीं सोचा. यह कोई छोटी इंडस्ट्री नहीं है. देश भर में करीब 17 लाख बसें हैं जिसमें से साढ़े पांच लाख स्कूल बसें हैं जो सिर्फ स्कूल का बिज़नेस कर सकते हैं क्योंकि स्कूल परमिट है. एक बस में तीन लोग होते हैं. तो साढ़े पांच लाख बसों में काम करने वाले 15 लाख लोगों पर इसका असर पड़ा है.''