
कोरोना काल में बीएचयू (BHU) में लापरवाही के कई किस्से सुनने और देखने को मिल रहे हैं. लेकिन इस बार जो कुछ हुआ शर्मसार करने वाला है. उसने लोगों को ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या बीएचयू एम्स का दर्जा पाने लायक भी है? बुधवार को बीएचयू के कर्मचारियों ने लापरवाही की सभी हदें पार करते हुए कोरोना संक्रमित मृतक की लाश लेने पहुंचे परिजनों को दूसरे की लाश सौंप दी. यह लापरवाही किसी और के साथ नहीं बल्कि स्वास्थ्य विभाग के दूसरे नंबर के अधिकारी के शव के साथ हुई.
बीएचयू कोविड हॉस्पिटल में अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी नौ अगस्त को बीमार होने पर बीएचयू में भर्ती हुए. इलाज के दौरान जांच में वे कोरोना पॉजिटिव आए. उनकी आज भोर में मृत्यु हो गई. इसी अस्पताल में पहले से एडमिट रिटायर्ड पीपीएस अधिकारी की मौत भी कोरोना से बुधवार की सुबह ही हुई. इसके बाद रिटायर्ड पीसीएस अधिकारी के परिजनों को सूचित कर बीएचयू ने कार्यवाही शुरू की. लिखा पढ़ी के बाद शव रिटायर्ड पीसीएस अधिकारी के परिजनों को सौंप दिया गया. उनके परिजनों के अनुसार कुछ दूर जाने पर मृतक की कद काठी को देखकर यह एहसास हुआ कि शव किसी और का है. परिजनों ने पीपीई किट खोलकर चेहरा देखा तो शव किसी और का मिला.
परिजनों के अनुसार वे हम बीएचयू वापस पहुंचे तो पता चला कि उन्हें दिया गया शव अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी का था जिनकी भोर में ही कोरोना से मौत हुई थी. परिजनों ने बताया कि उन्होंने फिर रिटायर्ड पीपीएस अधिकारी का शव ढूंढना शुरू किया तो पता चला कि वो किसी और को दे दिया गया और उसे लोग लेकर हरिश्चंद्र घाट भी जा चुके हैं. वहां पहुंचने पर देखा कि वे लोग शव का दाह संस्कार कर चुके थे.
रिटायर्ड अधिकारी का शव किसी और को नहीं बल्कि अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी के परिजनों को दिया गया था. उन्होंने हरिश्चंद्र घाट पर उनका अंतिम संस्कार कर दिया. बाद में जब उन्हें असलियत पता चली वे लोग फिर से बीएचयू गए और अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी के शव को लाकर अंतिम संस्कार किया.
इस घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग से जारी वक्तव्य में कहा गया है कि "बीएचयू के मर्चरी स्टाफ द्वारा डाक्टर जंग बहादुर के डेथ पेपर के साथ उनके रैपर पैक्ड डेड बॉडी के स्थान पर एक अन्य मृत व्यक्ति की रैपर पैक्ड बॉडी दे दी गई थी. कोरोना काल के प्रोटोकॉल के मुताबिक़ रैपर पैक्ड डेड बॉडी दिए जाने का प्रावधान है. हरिश्चंद्र घाट पर इस डेड बॉडी को लकड़ी की चिता पर दाह संस्कार के समय उक्त मृतक के परिजन पहुंचे और बताया कि यह डेड बॉडी उनके परिवार की है और शायद डॉक्टर जंग बहादुर की डेड बॉडी अभी मर्चरी में ही है. डॉक्टर जंग बहादुर के परिजनों ने मर्चरी पहुंचकर उनकी डेड बॉडी प्राप्त की तथा उसे विद्युत शवदाह गृह में ले जाकर अंतिम संस्कार किया. दूसरे मृत व्यक्ति के परिजनों ने घाट पर बिना किसी विरोध के जलती हुई चिता को स्वीकार किया और आगे अंतिम रीति रिवाज़ का संस्कार पूरा किया."
लेकिन रिटायर्ड पीपीएस अधिकारी के परिजन इस पूरे मामले से बेहद दुखी हैं. उन्होंने आरोप भी लगाया कि हमने तो चेहरा भी नहीं देखा. पता नहीं वो हमारे पिता जी की डेड बॉडी थी या नहीं. फिलहाल इस लापरवाही के बाद बीएचयू प्रशासन ने इस पर सफाई दी है और कहा है कि इस घटना की जांच कर दोषियों पर कार्रवाई होगी. दूसरी तरफ इस पूरे मामले पर मृतक रिटायर्ड पीपीएस अधिकारी के बेटे फूड विजिलेंस सेल डिपार्टमेंट में तैनात अनुपम श्रीवास्तव और उनके परिजन अस्पताल प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई की बात कर रहे हैं.
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