श्रीलंका में वर्ष 2009 के गृहयुद्ध के दौरान कथित रूप से तमिलों के खिलाफ हुए अत्याचारों के विरोध में कोलंबो जाकर राष्ट्रकुल (कॉमनवेल्थ) देशों के सम्मेलन में भाग नहीं लेने का दबाव झेल रहे प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह समझौता फॉर्मूला के तहत तमिल-बहुल जाफना को भी अपने यात्रा कार्यक्रम में शामिल कर सकते हैं।
बताया जाता है कि विदेश मंत्रालय ने उत्तरी श्रीलंका के जाफना को भी यात्रा कार्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव रखा है, ताकि उनके अपने मंत्रियों सहित तमिलनाडु के नेताओं द्वारा श्रीलंका यात्रा के लिए किए जा रहे विरोध से बने असमंजस को खत्म किया जा सके। तमिलनाडु के नेता नहीं चाहते कि प्रधानमंत्री तमिलों की 'भावनाओं का सम्मान' करते हुए 15 नवंबर को होने वाले सम्मेलन में शामिल नहीं हों।
तमिलों को शांत करने का यह उपाय तब सूझा, जब तमिलनाडु से ही आने वाले मनमोहन सिंह के कैबिनेट के मंत्री ईएनएस नचिअप्पन ने कहा कि प्रधानमंत्री को जाफना भी ज़रूर जाना चाहिए। वाणिज्य राज्यमंत्री नचिअप्पन ने कहा था, "श्रीलंका में तमिलों के पुनर्वास पर भारत 56,000 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है... प्रधानमंत्री को वहां जाकर देखना चाहिए कि वह (रकम) वहां पहुंच भी रहा है या नहीं... मेरा अनुरोध है कि वह जाफना और कोलंबो जाएं, लोग इस यात्रा का स्वागत करेंगे..."
दूसरी ओर, बताया जाता है कि तमिलनाडु से ही आने वाले तीन अन्य मंत्री - पी चिदंबरम, जयंती नटराजन तथा जीके वासन - प्रधानमंत्री की यात्रा के विरुद्ध हैं। सूत्रों के अनुसार, चिदंबरम प्रधानमंत्री के स्थान पर किसी सरकारी प्रतिनिधि को भेजे जाने के पक्ष में हैं।
सूत्रों का कहना है कि विदेश मंत्रालय तथा प्रधानमंत्री कार्यालय राष्ट्रकुल देशों के सम्मेलन में प्रधानंमत्री के स्वयं भाग लेने को लेकर उत्सुक हैं, क्योंकि उनका मानना है कि भारत को श्रीलंका में तमिलों के भले के लिए श्रीलंका से संबंध बनाए रखने चाहिए।
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