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This Article is From Jul 25, 2019

बच्चों के यौन उत्पीड़न के खिलाफ जागरूकता के लिए सिनेमाघरों में दिखाई जाएगी क्लिप

सुप्रीम कोर्ट ने समाज में बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के खिलाफ जागरूकता लाने के लिए यह आदेश दिया

बच्चों के यौन उत्पीड़न के खिलाफ जागरूकता के लिए सिनेमाघरों में दिखाई जाएगी क्लिप
अब सिनेमाघरों में बच्चों के यौन उत्पीड़न के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए क्लिप दिखाया जाएगा.
नई दिल्ली:

बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों को लेकर अब देश भर के सिनेमाघरों में छोटी सी क्लिप दिखाई जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने समाज में बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के खिलाफ जागरूकता लाने के लिए यह आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न टेलीविजन चैनलों पर भी बच्चों के यौन उत्पीड़न के खिलाफ नियमित रूप से क्लिप दिखाने के लिए कहा है. साथ ही इस मामले में चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर देने के लिए भी कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों आदि प्रमुख स्थानों पर बच्चों के यौन उत्पीड़न के विरुद्ध जागरूकता फैलाने के लिए कहा है.

सुप्रीम कोर्ट देश भर में बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर स्वतः संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई कर रहा है.

केंद्र सरकार देश के हर जिले में विशेष पॉक्सो कोर्ट बनाएगी जहां 100 से ज्यादा पॉक्सो मामले लंबित हैं. इन अदालतों के लिए फंड केंद्र सरकार देगी. केंद्र सरकार 60 दिन में यह कोर्ट बनाएगी. देश भर में बच्चों से रेप के मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट मित्र ने कहा कि सिर्फ दिल्ली में ही विशेष पॉक्सो अदालत बनाई गई हैं. दिल्ली की साकेत कोर्ट में बच्चों से संबंधित यौन उत्पीड़न को लेकर दो अदालतों का गठन हो सकता है. बच्चों के लिए फ्रेंडली माहौल बनाया जा सकता है. आर्किटेक्चर में भी बच्चों के हिसाब से बदलाव किया जा सकता है, JJ एक्ट और पॉक्सो एक्ट में इसका प्रावधान है.

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दिल्ली में एक विशेष जज के पास एक साल में करीब 400 केस सुनवाई के लिए आते हैं, इसलिए उन पर केसों का बोझ रहता है. CJI ने कोर्ट मित्र से पूछा कि पूरे देश में जिले के हिसाब से पॉक्सो के अंतर्गत कितने मामले दर्ज हैं, इसकी जानकारी है? इस पर कोर्ट मित्र ने कहा कि हर जिले में नंबर अलग-अलग है, लेकिन हर जिले में औसतन 250 केस हैं.

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यानी देशभर के हर जिले में एक साल में 250 मामले बच्चों से यौन उत्पीड़न के दर्ज होते हैं. जिलों में स्पेशल जज नहीं हैं तो ट्रायल कोर्ट को ये दिए जाते हैं. फोरेंसिक रिपोर्ट के अभाव में ही केस 6-9 महीने लेट हो जाता है. कोर्ट मित्र ने कहा DNA टेस्ट लैब ज्यादातर जिलों में नहीं हैं. कई मामलों में तो ऐसा होता है कि FSL ये कहता है कि सैंपल डैमेज हो चुका है, लिहाजा इसकी जांच नहीं हो सकती.

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