2004 में छत्तीसगढ़ में एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या में फांसी की सजायाफ्ता सोनू सरदार की पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महज पारिस्थितजन्य सबूतों के आधार पर किसी शख्स को दोषी तो ठहराया जा सकता है, पर अधिकतम सजा यानी फांसी की सजा देना मुश्किल है। खासकर ऐसे हालात में जब इस मामले मे शामिल पांच आरोपियों में से तीन अभी तक फरार हों, एक नाबालिग हो।
ऐसे में राज्य सरकार की ये दलील सही नहीं है कि सोनू ही इस हत्याकांड का जिम्मेदार है। लिहाजा सरकार को ये साबित करना होगा कि सोनू के वार से ही पांच लोगों की मौत हुई। सोनू सरदार की फांसी पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है।
पिछले साल अप्रैल में राष्ट्रपति ने सोनू की दया याचिका को खारिज कर दिया था। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी फांसी की सजा को बरकरार रखा था। लेकिन पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐहतिहासिक फैसले में कहा था कि पुनर्विचार याचिका की सुनवाई खुली अदालत में होगी और जिनकी ये याचिका खारिज हो चुकी है।
उन्हें एक मौका और मिलेगा 2004 में हुआ छत्तीसगढ़ का ये मामला बेहद खास है क्योंकि इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने खुद के फैसले पर सवाल उठाए थे। राज्य सरकार को कहा था कि इस मामले में सिर्फ सोनू को ही गिरफ्तार किया गया, लेकिन ये साबित करना जरूरी है कि सोनू के वार से ही मौत हुई थी। फिलहाल सोनू सरदार को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत बरक़रार रहेगी और उसकी फांसी पर लगी रोक जारी रहेगी। मामले की अगली सुनवाई 10 फरवरी को होगी।
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