तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई की 36 वर्षीय सीता देवी लोगों को 'जिंदगी देने' का काम कर रही हैं. सीता को 'ऑक्सीजन वुमैन' के रूप में पहचान मिली है. इस वर्ष मई में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान केसों के बढ़ने के कारण चेन्नई के अस्पताल जब ऑक्सीजन बेड्स की कमी का सामना कर रहे थे और गंभीर मरीजों को लिए एंबुलेंसों की लंबी लाइन लग रही थीं, तब ऑक्सीजन सिलेंडर फिट किया हुआ सीता का नीले रंग का ऑटोरिक्शा, सरकारी राजीव गांधी अस्पताल के बाहर खड़ा रहता था. इस ऑटो ने कई लोगों की जान बचाई है.सीता के वाहन ने इन मरीजों को तब तक 'ठिकाना' दिया जब तक उनके लिए बेड का इंतजाम नहीं हो गया. कई बार ऑक्सीजन की कमी होने की स्थिति में उन्होंने एंबुलेंस के मरीजों को भी सिलेंडर दिया. सीता कहती हैं, 'हमने उस समय सांस के लिए 'संघर्ष कर रहे' 300 से अधिक लोगों की जान बचाई. इस दौरान न तो कोई सवाल पूछा गया और न ही किसी से कोई पैसा लिया गया.'
चेन्नई की सड़कों पर पली-बढ़ी एक कुली की बेटी, सीता सोशल वर्कर हैं और स्ट्रीट चिल्ड्रन की शिक्षा में मदद कर रही हैं. निजी क्षति ने उन्हें ऑक्सीजन ऑटो के जरिये कोरोना पॉजिटिव मरीजों की मदद के लिए प्रेरित किया. दरअसल, सीता की मां, 65 वर्षीय आर. विजया की मौत 1 मई को ऑक्सीजन की कमी के कारण हो गई थी. वह रात में कई घंटों तक राजीव गांधी कॉलेज हॉस्पिटल में एंबुलेंस में संघर्ष करती रहीं. बाद में उन्हें स्टेनले हॉस्पिटल में वेंटीलेटर के साथ बेड मिल गया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. पांच घंटों में ही उनकी मौत हो गई. मां की मौत के बाद सीता ने अपने ऑटो के जरिये उसी स्थान पर जीवनदायक ऑक्सीजन उपलब्ध कराने का फैसला किया जहां मां जिंदगी के लिए संघर्ष कर रही थी. वे बताती हैं, 'मां की मौत के बाद, मैंने निर्णय किया कि ऑक्सीजन की कमी के कारण किसी की भी मौत नहीं होनी चाहिए. ऑक्सीजन की तुरंत जरूरत है और मैंने इस बारे में उस दिन फैसला लिया था.'
सीता के ऑटो ने किस तरह इलाज के पहले उसकी बुजुर्ग मां की मदद की, इस बारे में एक महिला ने बताया, 'हम एक दिन पहले से ऑक्सीजन के लिए संघर्ष कर रहे थे लेकिन हमें नहीं मिल रही थी. हमें एंबुलेंस भी नहीं मिली हालांकि उन्होंने कहा था कि यह दो या तीन घंटे में आ जाएगी. हमने काफी मुश्किल झेली. बहुत बहुत धन्यवाद. हम इसे कभी भूल नहीं पाएंगे.' हालांकि पिछले कुछ सप्ताह से अस्पतालों में ऑक्सीजन का संकट खत्म हो गया है लेकिन सीता, डिस्चार्ज हुए उन मरीजों की मदद कर रही है जिन्हें घर तक जाने के लिए भी ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ रही है. वे अस्पताल से कोरोना केयर सेंटर तक मरीजों को पहुंचाने में भी सहायता कर रही है. उन्होंने घर में इलाज ले रहे मरीजों की मदद के लिए कुछ और सिलेंडर और ऑक्सीजन कंसनट्रेटर्स भी खरीदे हैं.
चेन्नई के अन्ना नगर इलाके में विग्नेश के पिता करीब एक माह अस्पताल में गुजारने के बाद घर लौटे हैं. इलाज में करीब दो लाख रुपये खर्च करने के कारण यह परिवार वित्तीय परेशानी से जूझ रहा है. विग्नेश के पिता को किसी भी अनहोनी से न गुजरना पड़े, इसलिए सीता ने उन्हें एक ऑक्सीजन कंसनट्रेटर और एक सिलेंडर फ्री में उपलब्ध कराया. विग्नेश कहते हैं, 'ईमानदारी से कहूं तो वे हमारे लिए जीवनरक्षक हैं. हम दो लाख या एक लाख 65 हजार रुपये का एक कंसनट्रेटर खरीदने की स्थिति में नहीं थे. इससे पहले हम एक कंसनट्रेटर के लिए रोज, एक हजार रुपये का भुगतान कर रहे थे, इसका मतलब है हमने कुल 12 से 15 हजार रुपये चुकाए.' कोरोना की दूसरी लहर ने जब हेल्थ केयर सिस्टम को बुरी तरह प्रभावित किया था और कई लोगों को जान गंवानी पड़ी थी, उस समय सीता देवी ने समय पर ऑक्सीजन उपलब्ध कराकर जरूरतमंदों की जिंदगी को 'नई सांस' दी. वे लोगों के लिए प्रेरणा हैं और रोल मॉडल है.
लॉटोलैंड आज का सितारा श्रृंखला में हम आम लोगों और उनके असाधारण कार्यों के बारे में जानकारी देते हैं. लॉटोलैंड सीता देवी के कार्य के लिए एक लाख रुपये की सहायता प्रदान करेगा.
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