अरविंद केजरीवाल और नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली कमेटी ने एम्स के पूर्व सीवीओ संजीव चतुर्वेदी को दिल्ली सरकार में भेजने से इनकार किया तो यह सवाल खड़ा हुआ कि क्या एक मुख्यमंत्री की मांग को इस तरह ठुकराना जायज़ है। केजरीवाल ने पिछले साल दिल्ली में सरकार बनाने के बाद एम्स के पूर्व सीवीओ चतुर्वेदी को अपने ओएसडी के तौर पर मांगा, लेकिन मामला लटका रहा।
उत्तराखंड में कूलिंग आफ सर्विस के लिए कहा
पिछली 21 जून को अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट यानी एसीसी ने चतुर्वेदी को दिल्ली भेजने के प्रस्ताव को ठुकराते हुए उन्हें अपने मूल काडर उत्तराखंड में जाकर 3 साल कूलिंग ऑफ सर्विस करने को कहा है। लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान ही ऐसे कई अफसर रहे हैं जिन्हें ऐसे ही प्रतिनियुक्ति यानी डेप्युटेशन के मामले में कूलिंग ऑफ की शर्त से छूट दी गई है।
शर्तों में ढील देकर 14 अफसरों को मिली छूट
एनडीटीवी इंडिया के पास उन अर्ज़ियों की लिस्ट है जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों ने पिछले 2 साल में डेप्युटेशन के लिए केंद्र सरकार से मांग की। कार्मिक मंत्रालय के नियमों के मुताबिक किसी भी अफसर को डेप्युटेशन पर जाने के लिए दो शर्तों को पूरा करना जरूरी है। पहली शर्त उसके अपने मूल काडर वाले राज्य और जिस राज्य में वह जा रहा है उन दोनों ही सरकारों को कोई आपत्ति न हो और दूसरी यह कि अधिकारी की नौकरी 9 साल से कम न हो और 18 साल से अधिक न हो। लेकिन मई 2014 से फरवरी 2016 तक 39 अधिकारियों में से 19 अधिकारी ऐसे थे जो डेप्युटेशन के लिए कार्मिक मंत्रालय की ओर से बनाई गई इन शर्तों को पूरा नहीं करते थे। लेकिन फिर भी उनमें से 14 अधिकारियों को प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट ने छूट दी और उनकी डेप्युटेशन की अर्ज़ी मंजूर की गई।
चतुर्वेदी पर फैसला उलट
चतुर्वेदी पर मोदी सरकार का फैसला इसके उलट है और इससे नाराज़ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार को निशाना बनाते हुए ट्वीट किया। अपने ट्वीट में केजरीवाल ने कहा, 'मुख्यमंत्री की ओर से अपने स्टाफ के लिए मांगे गए किसी अफसर को लेकर कभी मनाही नहीं की गई। हर कदम पर रोड़े अटकाए जा रहे हैं।'
चतुर्वेदी के लिए कूलिंग ऑफ पीरियड जरूरी नहीं
अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट ने अपने ऑर्डर में कहा है कि चतुर्वेदी को पहले उत्तराखंड में अपने मूल काडर में जाकर कूलिंग ऑफ पीरियड सर्व करना चाहिए। यानी तीन साल उत्तराखंड में नौकरी करनी चाहिए, लेकिन कार्मिक मंत्रालय के ही 26 मई 2014 के एक आदेश से साफ होता है कि चतुर्वेदी के लिए कूलिंग ऑफ पीरियड सर्व करना जरूरी नहीं था क्योंकि पीएस या ओएसडी के तौर पर काम करने के लिए अफसरों को कूलिंग ऑफ से छूट मिलती रही है।
इस आदेश में कार्मिक मंत्रालय ने लिखा है – “तीनों ऑल इंडिया सर्विस के अधिकारियों को – जो बिना अपना कूलिंग ऑफ पीरियड सर्व किए ओएसडी या पीएस के तौर पर नियुक्त किए गए हों – अपना कार्यकाल खत्म करने के बाद वापस अपने मूल काडर में जाना होगा। ऐसे अधिकारियों को इन पदों पर नियुक्त करते समय यह बताकर उनकी सहमति ली जाएगी ......”
जानबूझकर प्रस्ताव लटकाया
संजीव चतुर्वेदी ने इस आदेश को अदालत में एक साक्ष्य के तौर पर पेश किया और अदालत ने भी अपने आदेश में इसे उद्धृत किया है। चतुर्वेदी ने अदालत से कहा कि उनके साथ ज्यादती हो रही है और जानबूझकर दिल्ली सरकार में जाने पर उनके प्रस्ताव पर कोई फैसला नहीं किया जा रहा। जबकि केंद्र सरकार ने अपने आदेश में यह कहा कि चतुर्वेदी की मांग पर पिछले साल उनका मूल काडर हरियाणा से बदलकर उत्तराखंड किया गया है और अपने नए पेरेंट काडर में उन्होंने एक दिन भी नौकरी नहीं की है। उन्हें वहां जाकर खुद को वहां कि स्थिति से अवगत कराना चाहिए। इसलिए उनके लिए कूलिंग ऑफ की शर्त अनिवार्य है।
पांच अफसरों की सूची सौंपी
लेकिन चतुर्वेदी ने कम से कम 5 ऐसे अफसरों की लिस्ट भी अदालत को दी है जो डेप्युटेशन पर थे और उन्हें बिना कूलिंग ऑफ के एक प्रतिनियुक्ति से दूसरी प्रतिनियुक्ति में भेजा गया। मिसाल के तौर पर गुजरात काडर के आईएएस मोहम्मद शाहिद 2009 से 2014 तक केंद्र सरकार में डेप्युटेशन पर रहे और फिर बिना किसी कूलिंग ऑफ के उत्तराखंड में हरीश रावत के पर्सनल स्टाफ में चले गए। इसी तरह असम-मेघालय काडर के आईएएस मनिंदर सिंह 2013-15 तक केंद्र सरकार में रहे फिर बिना कूलिंग ऑफ सर्व किए सीधे चंडीगढ़ चले गए।
मध्य प्रदेश काडर के ई रमेश कुमार इंटर काडर डेप्युटेशन के तहत आंध्र प्रदेश में थे फिर जून 2014 में केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय में रहे। उन्हें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर लाया गया। उन्होंने भी कोई कूलिंग ऑफ पीरियड सर्व नहीं किया।
मंत्रियों की मांग पर दिए जाते हैं पसंदीदा अफसर
प्रशासनिक मामलों के जानकार कहते हैं कि संजीव चतुर्वेदी का मामला तो एक लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए मुख्यमंत्री को ओएसडी देने का था जिस पर वैसे भी तकनीकी पेंच आड़े नहीं आने चाहिए थे। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी इस बात को माना कि मुख्यमंत्री या दूसरे मंत्रियों की मांग पर उनकी पसंद के अफसरों को आसानी से उपलब्ध करा दिया जाता है। दीक्षित ने इसे केजरीवाल और मोदी सरकार की आपसी खींचतान से भी जोड़ा।
चतुर्वेदी के मामले में केंद्र सरकार ने पूरे 16 महीने तक लटकाए रखने के बाद फैसला सुनाया और इस बीच अदालत को चार बार आदेश जारी करने पड़े। ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं जहां उनकी प्रतिनियुक्ति दिल्ली सरकार में हो सकती थी लेकिन मोदी सरकार ने उन्हें वापस उत्तराखंड भेजने का फैसला किया है।
उत्तराखंड में कूलिंग आफ सर्विस के लिए कहा
पिछली 21 जून को अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट यानी एसीसी ने चतुर्वेदी को दिल्ली भेजने के प्रस्ताव को ठुकराते हुए उन्हें अपने मूल काडर उत्तराखंड में जाकर 3 साल कूलिंग ऑफ सर्विस करने को कहा है। लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान ही ऐसे कई अफसर रहे हैं जिन्हें ऐसे ही प्रतिनियुक्ति यानी डेप्युटेशन के मामले में कूलिंग ऑफ की शर्त से छूट दी गई है।
शर्तों में ढील देकर 14 अफसरों को मिली छूट
एनडीटीवी इंडिया के पास उन अर्ज़ियों की लिस्ट है जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों ने पिछले 2 साल में डेप्युटेशन के लिए केंद्र सरकार से मांग की। कार्मिक मंत्रालय के नियमों के मुताबिक किसी भी अफसर को डेप्युटेशन पर जाने के लिए दो शर्तों को पूरा करना जरूरी है। पहली शर्त उसके अपने मूल काडर वाले राज्य और जिस राज्य में वह जा रहा है उन दोनों ही सरकारों को कोई आपत्ति न हो और दूसरी यह कि अधिकारी की नौकरी 9 साल से कम न हो और 18 साल से अधिक न हो। लेकिन मई 2014 से फरवरी 2016 तक 39 अधिकारियों में से 19 अधिकारी ऐसे थे जो डेप्युटेशन के लिए कार्मिक मंत्रालय की ओर से बनाई गई इन शर्तों को पूरा नहीं करते थे। लेकिन फिर भी उनमें से 14 अधिकारियों को प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट ने छूट दी और उनकी डेप्युटेशन की अर्ज़ी मंजूर की गई।
चतुर्वेदी पर फैसला उलट
चतुर्वेदी पर मोदी सरकार का फैसला इसके उलट है और इससे नाराज़ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार को निशाना बनाते हुए ट्वीट किया। अपने ट्वीट में केजरीवाल ने कहा, 'मुख्यमंत्री की ओर से अपने स्टाफ के लिए मांगे गए किसी अफसर को लेकर कभी मनाही नहीं की गई। हर कदम पर रोड़े अटकाए जा रहे हैं।'
An officr requested by a CM for his personal staff was never denied earlier. Hurdles being created at each step
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) June 25, 2016
चतुर्वेदी के लिए कूलिंग ऑफ पीरियड जरूरी नहीं
अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट ने अपने ऑर्डर में कहा है कि चतुर्वेदी को पहले उत्तराखंड में अपने मूल काडर में जाकर कूलिंग ऑफ पीरियड सर्व करना चाहिए। यानी तीन साल उत्तराखंड में नौकरी करनी चाहिए, लेकिन कार्मिक मंत्रालय के ही 26 मई 2014 के एक आदेश से साफ होता है कि चतुर्वेदी के लिए कूलिंग ऑफ पीरियड सर्व करना जरूरी नहीं था क्योंकि पीएस या ओएसडी के तौर पर काम करने के लिए अफसरों को कूलिंग ऑफ से छूट मिलती रही है।
इस आदेश में कार्मिक मंत्रालय ने लिखा है – “तीनों ऑल इंडिया सर्विस के अधिकारियों को – जो बिना अपना कूलिंग ऑफ पीरियड सर्व किए ओएसडी या पीएस के तौर पर नियुक्त किए गए हों – अपना कार्यकाल खत्म करने के बाद वापस अपने मूल काडर में जाना होगा। ऐसे अधिकारियों को इन पदों पर नियुक्त करते समय यह बताकर उनकी सहमति ली जाएगी ......”
जानबूझकर प्रस्ताव लटकाया
संजीव चतुर्वेदी ने इस आदेश को अदालत में एक साक्ष्य के तौर पर पेश किया और अदालत ने भी अपने आदेश में इसे उद्धृत किया है। चतुर्वेदी ने अदालत से कहा कि उनके साथ ज्यादती हो रही है और जानबूझकर दिल्ली सरकार में जाने पर उनके प्रस्ताव पर कोई फैसला नहीं किया जा रहा। जबकि केंद्र सरकार ने अपने आदेश में यह कहा कि चतुर्वेदी की मांग पर पिछले साल उनका मूल काडर हरियाणा से बदलकर उत्तराखंड किया गया है और अपने नए पेरेंट काडर में उन्होंने एक दिन भी नौकरी नहीं की है। उन्हें वहां जाकर खुद को वहां कि स्थिति से अवगत कराना चाहिए। इसलिए उनके लिए कूलिंग ऑफ की शर्त अनिवार्य है।
पांच अफसरों की सूची सौंपी
लेकिन चतुर्वेदी ने कम से कम 5 ऐसे अफसरों की लिस्ट भी अदालत को दी है जो डेप्युटेशन पर थे और उन्हें बिना कूलिंग ऑफ के एक प्रतिनियुक्ति से दूसरी प्रतिनियुक्ति में भेजा गया। मिसाल के तौर पर गुजरात काडर के आईएएस मोहम्मद शाहिद 2009 से 2014 तक केंद्र सरकार में डेप्युटेशन पर रहे और फिर बिना किसी कूलिंग ऑफ के उत्तराखंड में हरीश रावत के पर्सनल स्टाफ में चले गए। इसी तरह असम-मेघालय काडर के आईएएस मनिंदर सिंह 2013-15 तक केंद्र सरकार में रहे फिर बिना कूलिंग ऑफ सर्व किए सीधे चंडीगढ़ चले गए।
मध्य प्रदेश काडर के ई रमेश कुमार इंटर काडर डेप्युटेशन के तहत आंध्र प्रदेश में थे फिर जून 2014 में केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय में रहे। उन्हें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर लाया गया। उन्होंने भी कोई कूलिंग ऑफ पीरियड सर्व नहीं किया।
मंत्रियों की मांग पर दिए जाते हैं पसंदीदा अफसर
प्रशासनिक मामलों के जानकार कहते हैं कि संजीव चतुर्वेदी का मामला तो एक लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए मुख्यमंत्री को ओएसडी देने का था जिस पर वैसे भी तकनीकी पेंच आड़े नहीं आने चाहिए थे। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी इस बात को माना कि मुख्यमंत्री या दूसरे मंत्रियों की मांग पर उनकी पसंद के अफसरों को आसानी से उपलब्ध करा दिया जाता है। दीक्षित ने इसे केजरीवाल और मोदी सरकार की आपसी खींचतान से भी जोड़ा।
चतुर्वेदी के मामले में केंद्र सरकार ने पूरे 16 महीने तक लटकाए रखने के बाद फैसला सुनाया और इस बीच अदालत को चार बार आदेश जारी करने पड़े। ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं जहां उनकी प्रतिनियुक्ति दिल्ली सरकार में हो सकती थी लेकिन मोदी सरकार ने उन्हें वापस उत्तराखंड भेजने का फैसला किया है।
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