सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र और UIDAI को आधार कानून में निजी कंपनियों को जोड़ने के मामले में नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने पुरानी याचिका के साथ टैग किया. ये जनहित याचिका सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी एसजी वोम्बाटकेरे और मानव अधिकार कार्यकर्ता बेजवडा विल्सन ने दायर की है. याचिका में कहा गया है कि सरकार ने इसके जरिए निजी कंपनियों की बैक डोर इंट्री कराई है.
शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 26 सितंबर, 2018 को केन्द्र की महत्वाकांक्षी आधार योजना को संवैधानिक रूप से वैध घोषित करते हुये इसके कुछ प्रावधानों को निरस्त कर दिया था. जिनमें आधार को बैंक खातों, मोबाइल फोन और स्कूलों में प्रवेश से जोड़ना शामिल था. सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के आधार संशोधित कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की.
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जुलाई में उच्चतम न्यायालय ने अध्यादेश के खिलाफ याचिका को केन्द्र और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण को नोटिस जारी किए थे. इसके तहत निजी प्रतिष्ठानों को भी आधार में शामिल किया गया है, लेकिन बाद में ये एक्ट भी बना दिया गया. न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने आधार एवं अन्य कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2019 और आधार (आधार सत्यापन सेवाओं का मूल्य) विनियमन, 2019 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर ये नोटिस जारी किये थे. यह अध्यादेश मार्च, 2019 में राजपत्र में प्रकाशित हुआ था जिसे बाद में एक्ट बना दिया गया.
याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस अध्यादेश और विनियमनों से नागरिकों को संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन होता है. याचिका में न्यायालय से यह घोषित करने का अनुरोध किया गया है कि निजी प्रतिष्ठानों, जिनकी आधार आंकड़ों तक पहुंच है, का यह लोक कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करें कि आधार नंबर और उपलब्ध आंकड़े अपने पास संग्रहित नहीं करें.
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याचिका में दावा किया गया है कि इन विनियमनों से संविधान में प्रदत्त निजता और संपत्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता है और इसलिए इसे असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया है. याचिका में कहा गया है कि यह अध्यादेश के माध्यम से निजी कंपनियों को पिछले दरवाजे से आधार की व्यवस्था तक पहुंच प्रदान करता है और शासन तथा निजी कंपनियों को नागरिकों की निगरानी की सुविधा प्रदान करने के साथ ही ये विनियमन उनकी व्यक्तिगत और संवेदनशील सूचना के वाणिज्यिक दोहन की अनुमति देता है.
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याचिका में कहा गया है कि नागरिकों से संबंधित आंकड़ों का व्यावसायीकरण संविधान में प्रदत्त उनके गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करता है.
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