सांकेतिक तस्वीर
नई दिल्ली:
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए सस्ती दर पर बेचे जाने वाले चावल के लिए धान की सरकारी खरीद और मिलिंग (दराई) के काम में 50,000 करोड़ रुपये से अधिक की कथित अनियमितता की बात कही है।
संसद में मंगलवार को पेश सीएजी रिपोर्ट में खामियों को रेखांकित किया गया है। इसमें बिना सत्यापन के किसानों को समर्थन मूल्य के रूप में करीब 18,000 करोड़ रुपये का भुगतान तथा चावल मिलों को अनुचित लाभ दिए जाने की बात शामिल हैं।
सीएजी ने अप्रैल 2009 से मार्च 2014 के बीच की अवधि की ऑडिट के बारे में कहा, 'इन कमियों के कारण भारत सरकार के खाद्य सब्सिडी खर्च में इजाफा हुआ, जिसे टाला जा सकता था।' सीएजी ने रिपोर्ट में अनियमितता से जुड़े नौ बड़े मामलों का जिक्र किया है जो कुल मिलाकर 40,564.14 करोड़ रुपये की गड़बड़ी को बताता है। इसके अलावा कई छोटे मामले हैं, जिनमें 10,000 करोड़ रुपये से अधिक की अनियमितताएं पायी गयी हैं। इससे कुल मिलाकर राशि 50,000 करोड़ रुपये से अधिक बनती है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने कहा कि कीमत में उप-उत्पादों का मूल्य शामिल नहीं कर धान की दराई के लिए 3,743 करोड़ रुपये मूल्य का लाभ मिलों को दिया गया। हालांकि सरकार ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि जो दर का भुगतान किया गया है, उसमें चावल का छिलका और भूसी जैसे उत्पाद के मूल्य शामिल थे।
सरकार ने कहा कि दराई की लागत और उप-उत्पादों का मूल्य के अध्ययन और दिसंबर तक नई दर के बारे में सुझाव देने के लिए ट्रैफिक कमीशन से कहा गया था। इसके आधार पर सरकार क्षई शुल्क में संशोधन का निर्णय करेगी, जिसमें 2005 से कोई बदलाव नहीं हुआ है।
सीएजी ने 'केंद्रीय पूल के लिए धान की खरीद और मिलिंग' शीषर्क से संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है, 'मिलिंग शुल्क में संशोधन में देरी तथा धान (चावल) को अपने कब्जे में रखे जाने के मामले में खराब व्यवस्था से न केवल चावल मिलों को बेजा लाभ हुआ, बल्कि व्यापक एवं बड़े पैमाने पर उनके द्वारा धान एवं चावल की डिलीवरी नहीं हुई।'
संसद में मंगलवार को पेश सीएजी रिपोर्ट में खामियों को रेखांकित किया गया है। इसमें बिना सत्यापन के किसानों को समर्थन मूल्य के रूप में करीब 18,000 करोड़ रुपये का भुगतान तथा चावल मिलों को अनुचित लाभ दिए जाने की बात शामिल हैं।
सीएजी ने अप्रैल 2009 से मार्च 2014 के बीच की अवधि की ऑडिट के बारे में कहा, 'इन कमियों के कारण भारत सरकार के खाद्य सब्सिडी खर्च में इजाफा हुआ, जिसे टाला जा सकता था।' सीएजी ने रिपोर्ट में अनियमितता से जुड़े नौ बड़े मामलों का जिक्र किया है जो कुल मिलाकर 40,564.14 करोड़ रुपये की गड़बड़ी को बताता है। इसके अलावा कई छोटे मामले हैं, जिनमें 10,000 करोड़ रुपये से अधिक की अनियमितताएं पायी गयी हैं। इससे कुल मिलाकर राशि 50,000 करोड़ रुपये से अधिक बनती है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने कहा कि कीमत में उप-उत्पादों का मूल्य शामिल नहीं कर धान की दराई के लिए 3,743 करोड़ रुपये मूल्य का लाभ मिलों को दिया गया। हालांकि सरकार ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि जो दर का भुगतान किया गया है, उसमें चावल का छिलका और भूसी जैसे उत्पाद के मूल्य शामिल थे।
सरकार ने कहा कि दराई की लागत और उप-उत्पादों का मूल्य के अध्ययन और दिसंबर तक नई दर के बारे में सुझाव देने के लिए ट्रैफिक कमीशन से कहा गया था। इसके आधार पर सरकार क्षई शुल्क में संशोधन का निर्णय करेगी, जिसमें 2005 से कोई बदलाव नहीं हुआ है।
सीएजी ने 'केंद्रीय पूल के लिए धान की खरीद और मिलिंग' शीषर्क से संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है, 'मिलिंग शुल्क में संशोधन में देरी तथा धान (चावल) को अपने कब्जे में रखे जाने के मामले में खराब व्यवस्था से न केवल चावल मिलों को बेजा लाभ हुआ, बल्कि व्यापक एवं बड़े पैमाने पर उनके द्वारा धान एवं चावल की डिलीवरी नहीं हुई।'
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