मुख्यमंत्री येदियुरप्पा और कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार को आरोपी बनाकर केस फिर से शुरु करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता NGO को ये बताने को कहा कि उसने इस केस में क्या कानूनी कदम उठाए हैं. CJI एसए बोबडे ने कहा कि याचिकाकर्ता समाज परिवर्तन समुदाय इस मामले में पहले शामिल नहीं था. वो हाईकोर्ट में भी पक्षकार नहीं थे. दो हफ्ते में ये बताएं कि उन्होंने इस केस में कानूनी कार्रवाई आगे बढाने के लिए क्या किया.
बीएस येदियुरप्पा और डीके शिवकुमार इस मामले में एक साथ हैं. याचिकाकर्ता की ओर से प्रशांत भूषण ने कोर्ट से कहा कि दबाव में मूल याचिकाकर्ताओं ने केस को वापस ले लिया. उन्हें हाईकोर्ट में पक्षकार नहीं बनाया गया. भ्रष्टाचार के मामले में उन्होंने लोकायुक्त को शिकायत दी थी. ऐसे मामलों में तीसरा पक्ष भी अपील कर सकता है और पक्षकार बन सकता है. वहीं येदियुरप्पा की ओर से कहा कि याचिकाकर्ता का इस केस से कोई लेना देना नहीं है.
उन्होंने हाईकोर्ट के केस को रद्द करने के बाद शिकायत दी. इस केस में कुछ नहीं बचा है. मामला येदियुरप्पा और डीके शिवकुमार का है. शिवकुमार जब येदियुरप्पा सरकार के मंत्री थे तब ज़मीन घोटाले में दोनों अभियुक्त बनाए गए थे. पिछले साल जुलाई में कोर्ट ने कहा था कि वो तय ये तय करेगा कि तीसरा पक्ष मामले में दखल दे सकता है या नहीं.
यह मामला 13 मई, 2010 को पूर्वी बेंगलुरु के बेनीगानहल्ली में लगभग साढ़े चार एकड़ के डिमोनेटाइजेशन से संबंधित है, कथित रूप से शिवकुमार को फायदा पहुंचा रहा था. येदियुरप्पा तब मुख्यमंत्री थे और शिवकुमार सरकार में मंत्री थे. 1986 में NGEF लेआउट के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया था. शिवकुमार ने इसे 2003 में खरीदा था.
सामाजिक कार्यकर्ताओं टीजे अब्राहम और कबलेगौड़ा ने विशेष लोकायुक्तकोर्ट के समक्ष अलग-अलग शिकायतें दर्ज कीं, भ्रष्टाचार का आरोप लगाया. इसके बाद लोकायुक्त ने इस मामले में चार्जशीट दाखिल की. उसी को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसने 18 दिसंबर, 2015 को येदियुरप्पा, शिवकुमार और एक हामिद अली, जो दक्षिण बेंगलुरु में सब-रजिस्ट्रार के रूप में काम कर रहे थे, के खिलाफ कार्यवाही को रद्द कर दिया.
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हाईकोर्ट के निर्देश को चुनौती देते हुए कबलेगौड़ा और अब्राहम SC पहुंच गए, जबकि राज्य सरकार या लोकायुक्त ने इसके खिलाफ अपील नहीं की. इस बीच समाज परिवर्तन समुदाय ने कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दाखिल कर पक्षकार बनाने की मांग की और कहा कि सरकार दोनों याचिकाकर्ताओं को प्रलोभन देकर केस वापस करा सकती है. 2017 में अब्राहम ने केस को वापस ले लिया और बाद में कबलेगौडा ने केस को वापस ले लिया.
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