एक पार्टी द्वारा सही मामले को बिगाड़ने का जीता-जागता उदाहरण है ‘बोफोर्स’ मामला: पूर्व सीबीआई प्रमुख

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के पूर्व प्रमुख आर के राघवन ने कहा है कि ‘बोफोर्स’ मामला इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि किस तरह एक पार्टी की सरकार ने एक सही मामले की जांच को पलीता लगा दिया.

एक पार्टी द्वारा सही मामले को बिगाड़ने का जीता-जागता उदाहरण है ‘बोफोर्स’ मामला: पूर्व सीबीआई प्रमुख

1989 में बोफोर्स घोटाले के कारण कांग्रेस सरकार को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के पूर्व प्रमुख आर के राघवन ने कहा है कि ‘बोफोर्स' मामला इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि किस तरह एक पार्टी की सरकार ने एक सही मामले की जांच को पलीता लगा दिया, जिसके पास बहुत कुछ छिपाने को है. उन्होंने कहा कि अदालत में मामला न टिक पाने के लिए वे लोग दोषी हैं जिन्होंने 1990 के दशक में और 2004 से 2014 तक जांच एजेंसी को नियंत्रित किया. भ्रष्टाचार का यह मामला 1,437 करोड़ रुपये के हॉवित्जर तोप सौदे में कथित रिश्वत से जुड़ा है जिसकी वजह से 1989 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार को सत्ता से बाहर जाना पड़ा था.

स्वीडन की अस्त्र निर्माता कंपनी बोफोर्स के साथ इस सौदे पर 1986 में हस्ताक्षर हुए थे. आरोप था कि कंपनी ने नेताओं, कांग्रेस के नेताओं और नौकरशाहों को लगभग 64 करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी. चार जनवरी 1999 से 30 अप्रैल 2001 तक सीबीआई निदेशक के रूप में मामले की जांच करने वाले राघवन ने अपनी आत्मकथा ‘ए रोड वेल ट्रैवल्ड' में कांग्रेस की भूमिका के बारे में आलोचनात्मक रूप से लिखा है, लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि यह पुष्टि करना कठिन है कि क्या भुगतान वास्तव में पार्टी के लिए था. मामले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर भी आरोप थे. राघवन ने अपने आगामी संस्मरण में लिखा है, ‘‘यह संभव है कि कुछ भुगतान कांग्रेस पार्टी के लिए रहा हो. हालांकि, इसकी पुष्टि करना कठिन है.''

उन्होंने लिखा है, ‘‘बोफोर्स मामला इस बात का उदाहरण रहेगा कि किस तरह एक सही मामले को एक पार्टी की सरकार द्वारा जानबूझकर बिगाड़ा जा सकता है जिसके पास जनता से छिपाने के लिए बहुत कुछ है. दोष उन लोगों पर जाता है जिन्होंने 1990 के दशक में और 2004-14 के दौरान सीबीआई को नियंत्रित किया.'' वर्ष 1991-96 में जहां कांग्रेस नेता पी वी नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे, वहीं 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी. नवंबर 1990 से जून 1991 तक कांग्रेस के बाहरी समर्थन से चंद्रशेखर के नेतृत्व में अल्पमत की सरकार थी.

वर्ष 1988 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार के अंतर्गत प्रारंभिक जांच का जिक्र करते हुए राघवन ने कहा है कि यह सब स्वीडिश रेडियो और राष्ट्रीय दैनिक ‘हिन्दू' के खुलासों से जनता में उत्पन्न असंतोष की वजह से किया गया. उन्होंने लिखा है कि गहन जांच के सिवाय राजीव गांधी सरकार के पास कोई विकल्प नहीं था, लेकिन परोक्ष रूप से यह चीजों के छिपाने के लिए था. वर्ष 1991 में राजीव गांधी की हत्या के समय राघवन श्रीपेरंबदूर, तमिलनाडु में सुरक्षा प्रभारी थे. वह अब 79 वर्ष के हो गए हैं. उन्होंने वर्ष 2000 के दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट मैच फिक्सिंग मामले, चारा घोटाले और 2002 के गुजरात दंगों की भी जांच की थी. वह ‘बोफोर्स' मामले के अदालत में न टिक पाने के लिए कुछ ‘‘संदिग्ध न्यायिक निर्णयों'' और ‘‘न्यायिक असंवेदनशीलता'' को जिम्मेदार ठहराते हैं. सीबीआई ने मामले में उनकी देखरेख में अक्टूबर 1999 में आरोपपत्र दायर किया था.

उनका कहना है, ‘‘बेईमानी से धन बनाने वालों की तरकीब और ताकत बेहद प्रभावशाली थी. मामले में वे चीजों को सफलतापूर्वक छिपाने में कामयाब रहे, यह हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली पर एक दुखद टिप्पणी है.'' राघवन आरोपपत्र को ‘‘तार्किक और महत्वपूर्ण'' मानते हैं जिसमें राजीव गांधी आरोपी थे, लेकिन उनपर मुकदमा नहीं चल सका क्योंकि वह जीवित नहीं रहे. इसमें इटली के कारोबारी ओत्तावियो क्वात्रोच्चि, पूर्व रक्षा सचिव एस के भटनागर, प्रवासी भारतीय कारोबारी विश्वेश्वर नाथ चड्ढा उर्फ विन चड्ढा, तोप निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स और इसके तत्कालीन मुखिया मार्टिन एआर के भी नाम थे. फरवरी 2004 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने गांधी और भटनागर के खिलाफ आरोपपत्र को खारिज कर दिया.

इसके अगले साल 2005 में इसी अदालत ने हिन्दुजा बंधुओं के खिलाफ सभी आरोप खारिज कर दिए जो इस मामले तथा भ्रष्टाचार रोकथाम कानून के तहत अन्य मामलों में आरोपी थे. बाद में, 2011 में विशेष सीबीआई अदालत ने क्वात्रोच्चि को मामले में आरोपमुक्त कर दिया. 2018 में उच्चतम न्यायालय ने बोफोर्स मामले में आगे की जांच की सीबीआई की अपील को खारिज कर दिया और कहा कि विलंब के लिए बताए गए आधार उचित नहीं हैं. इस बात को स्वीकार करते हुए कि, सीबीआई इस मामले में और तेज गति से काम कर सकती थी, राघवन ने इस तर्क के साथ अपना बचाव किया कि एजेंसी को बहुत सी बाधाओं का सामना करना पड़ा.

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इस सवाल पर कि क्या राजीव गांधी को सीधे पैसा मिलने का कोई सबूत है, राघवन ने लिखा है कि उनका जवाब यही रहा है कि इस बारे में तनिक भी सबूत नहीं है, लेकिन क्वात्रोच्चि और हिन्दुजा बंधुओं को धन मिलने के बारे में बड़ा सवाल था और है जो दोनों ही गांधी परिवार के साथ संबंधों के लिए जाने जाते हैं. किताब ‘ए रोड वेल ट्रैवल्ड : एन ऑटोबायोग्राफी' का प्रकाशन वेस्टलैंड ने किया है जिसकी कीमत 599 रुपये है. प्रकाशकों ने एक बयान में कहा कि किताब में राघवन के करियर के विभिन्न पहलुओं का वर्णन है. भाषा नेत्रपाल मनीषामनीषा2110 1946 दिल्ली



(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)