उत्तर प्रदेश सरकार की ओर अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल 17 जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने पर विवाद और गहरा गया है. सूत्रों के मुताबिक बीजेपी के अनुसूचित वर्ग के नेताओं ने नाराजगी जाहिर की है. उनके मुताबिक बीजेपी ने हमेशा ने इस कदम का विरोध किया. सपा सरकारों ने दो बार ऐसा करने की कोशिश की थी तब बीजेपी ने इसका विरोध किया था. भाजपा हमेशा से कहती आई थी कि सपा ऐसा कर ओबीसी कोटे का पूरा लाभ यादवों को दिलाना चाहती है. अब भाजपा खुद ऐसा कर सपा के जाल में फंस रही है.
साथ ही सूत्रों के मुताबिक उन्होंने कहा, हाईकोर्ट का फैसला दो साल बाद लागू कराने की बात कहना लचर दलील है. सूची में नई जातियों को शामिल करने का अधिकार सिर्फ संसद के पास है. अनुसूचित जाति का कोटा बढ़ाए बिना नई जातियों को जोड़ने से मौजूदा जातियों के हितों को चोट पहुंचेगी. उधर, यूपी सरकार के मुताबिक वह सिर्फ हाईकोर्ट का फैसला लागू कर रही है.
वहीं केंद्र सरकार ने भी मंगलवार को कहा कि उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार को निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना, अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल 17 समुदायों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल नहीं करना चाहिए था. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान कहा था ‘यह उचित नहीं है और राज्य सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए.' शून्यकाल में यह मुद्दा बीएसपी के सतीश चंद्र मिश्र ने उठाया. उन्होंने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल 17 समुदायों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का उत्तर प्रदेश सरकार का फैसला असंवैधानिक है क्योंकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की सूचियों में बदलाव करने का अधिकार केवल संसद को है.
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गहलोत ने साथ ही कहा था कि किसी भी समुदाय को एक वर्ग से हटा कर दूसरे वर्ग में शामिल करने का अधिकार केवल संसद को है. उन्होंने कहा ‘पहले भी इसी तरह के प्रस्ताव संसद को भेजे गए लेकिन सहमति नहीं बन पाई. राज्य सरकार को समुचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए अन्यथा ऐसे कदमों से मामला अदालत में पहुंच सकता है.'
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